इस ईश्वर की अनात्म जड़ मूर्ति पूजा ने राष्ट्र व समाज को, इस आर्यावर्त देश भारत को, जिसे विदेशी लोग सोने की चिडिय़ा के नाम से पुकारते थे, जिसके ज्ञान-विज्ञान के कारण इसको विश्व का गुरु माना जाता था, उस राष्ट्र की आज अत्यन्त गरीब देशों में गिनती है। चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार में इसकी गिनती प्रथम दर्जे के देशों में की जाती है, क्योंकि गरीबी का मुख्य कारण महाभारत के उपरान्त अविद्या के उपरोक्त लक्षणों में फँसकर अन्धविश्वास के कारण राजाओं, महाराजाओं तथा अन्य धनवान् तथा सामान्य व्यक्तियों ने भी राष्ट्र की सम्पत्तियों का बहुत बड़ा हिस्सा इन पत्थर के भगवानों के मन्दिरों में समर्पित कर दिया तथा विदेशी लुटेरे आक्रमणकारी मन्दिरों से इक_े किये धन को लूटते रहे। मुहम्मद गजनवी ने सत्रह बार हमला कर देश को लूटा। अकेले सोमनाथ के मन्दिर से जो धन लूटा गया, इस विषय में इतिहासवेत्ता आचार्य चतुरसेन के ही शब्दों में सुनें-अनेक राजा, रानी, राजवंशी, धनी, कुबेर, श्रीमंत, साहूकार यहाँ महीनों पड़े रहते थे और अनगिनत धन, रत्न, गाँव, धरती सोमनाथ के चरणों में चढ़ा जाते थे।
उसी अवर्णनीय, अतुलनीय वैभव से युक्त सोमनाथ के पतन की करुण कथा और मुहम्मद गजनवी के सत्रहवें आक्रमण की क्रूर कहानी ‘सोमनाथ’ पुस्तक में इस प्रकार वर्णित है- अब मुहम्मद ने कृष्ण स्वामी से धन, रत्नकोष की चाबियाँ तलब की। अछता-पछता कर कृष्ण स्वामी ने देवकोष मुहम्मद को समर्पण कर दिया। उस देवकोष की सम्पदा को देखकर मुहम्मद की आँखें फैली की फैली रह गईं। भूगर्भ स्थित कढ़ाओं, टोकरों में स्वर्ण, रत्न, हीरे, मोती, लाल, मणी, माणिक्य आदि भरे पड़े थे। उस दौलत का कोई अन्त नहीं था। उस अतुल सम्पदा को देखकर महमूद हर्ष से अपनी दाढ़ी नोंचने लगा। उसने तुरन्त कोषों को पेटियों में बन्द करवाकर अपने शिविरों में भेजना आरम्भ किया। अस्सी मन वजनी ठोस सोने की जंजीर जिसमें महाघण्ट लटकता था, तोड़ डाली। किवाड़ों चौखटों और छतों से चाँदी पत्तर उखाड़ लिये गये। कंगूरों से स्वर्ण पत्र उखाड़ लिये गये। मणिमय स्तम्भों (खम्भों) पर जड़े रत्न उखाडऩे में उसके हजारों बर्बर सैनिक जुट गये। सोने, चाँदी के सभी पात्र ढेर कर उसने हजारों ऊँटों पर लाद लिए। यह है अधूरा वर्णन महमूद के एक आक्रमण का, ऐसे-ऐसे आक्रमण उसने एक नहीं, दो नहीं, अपितु सत्रह बार किये और एक महमूद गजनवी नहीं, अनेक हमलावर यहाँ आये। मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गौरी, तैमूर लंग, चंगेज खाँ, लगभग तीन सौ वर्षों तक अंग्रेज इस राष्ट्र को लूटते व चूसते रहे, जिस प्रकार व्यक्ति ईक्षुदण्ड (गन्ने) को चूसकर खोई को फैंक देता है। आज भी हम उन्हीं अंग्रेजों की शिक्षा संस्कृृति के गुलाम होकर उनकी अंग्रेजी भाषा में अपनी शिक्षा पद्धति को अपनाये हुए हैं, जबकि अन्य स्वतन्त्र देश अपनी ही स्वदेशीय भाषा में ही शिक्षा प्रदान करते हैं। किन-किनके नाम गिनवाये जायें? इस देश में बल, वीरता, तेज व शौर्य की कमी नहीं थी। यहाँ पर विश्वासघात तथा उपरोक्त अविद्या अन्धकार ने इस राष्ट्र को कालग्रस्त कर दिया। आज भी इस देश में हजारों ऐसे प्राचीन मन्दिर उपस्थित हैं, जहाँ राष्ट्र की अरबों-खरबों की सम्पत्ति दबी हुई है, जिसके प्रयोग से राष्ट्र का विकास कर अरब जनसंख्या वाले इस विशाल राष्ट्र की गरीबी को दूर किया जा सकता है।
यही नहीं, इस ‘अनात्मसु-आत्मख्यातिरविद्या’ दोष के कारण से जिस राष्ट्र में सीता, सावित्री, अनुसूया तथा गार्गी जैसी विदुषी पतिव्रता महिलाएँ हुईं तथा महाराणा प्रताप के कनिष्ठ भ्राता शक्ति की पुत्री देवी किरणमयी ने जैसे अपने सतीत्व की रक्षा के लिए बादशाह अकबर जैसे योद्धा को नवरत्तन-रोजा के मेले में पृथ्वी पर पटककर उसके मुख से पैर पकड़वाकर यह कहलवाया कि तुम मेरी धर्म बहन हो, मुझे क्षमा कर दो।
उसी राष्ट्र में जो किसी समय विद्या, बल व चरित्र के गुणों के कारण विश्व का गुरु कहलाता था, केचन (कुछ) धर्मद्रोही लोगों ने पत्थर के देवताओं के लिए इस राष्ट्र की निर्मल गंगा के समान पवित्र बहन, बेटियों को देव-दासियों के रूप में मन्दिरों में स्थापित कर ‘प्रवृत्ते भैरवीचक्रे सर्ववर्णा द्विजातीय’ का कथन करके दुराचार का जो नग्न नाच तथा बहन-बेटियों की चरित्रहनन का अनेक मन्दिरों में जो दुष्कृत्य किया जाता रहा, उसे लेखनी लिखने में समर्थ नहीं है। इसके पूर्ण विवरण के लिये सत्यार्थप्रकाश का ग्यारहवाँ समुल्लास तथा आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित ‘सोमनाथ मन्दिर की लूट’ नामक पुस्तक का अध्ययन करें।
इसके अतिरिक्त इस पत्थर के देवताओं के भोग और प्रसन्न करने के बहाने मांस-लोलुप मन्दिर के पुजारियों ने अपनी जिह्वा के रसास्वादन हेतु पशुओं को ही नहीं, मनुष्यों तक की बलि प्रथा आरम्भ करवाई, जिसके कारण राष्ट्र में वैदिक धर्म के विरुद्ध नास्तिक जैन व बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। मेरे मन के एक कोने में यह भी बैठा हुआ है कि वेदविरुद्ध पत्थर की एकदेशीय मूर्ति को भगवान मानने के कारण ही १४०० वर्ष पूर्व इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ है, क्योंकि इस्लाम के आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य मन्दिरों की मूर्तियाँ तोडऩा रहा है। आज भी राजस्थान के अनेक मुस्लिम परिवार सैकड़ों-सैकड़ों गउओं का पालन करते हैं, केवल मात्र कट्टरपंथी मुस्लिम गोहत्या करते हैं। वे लोग भी हिन्दुओं की सहायता से ही इस घृणित पापकर्म में लिप्त हैं। आज भी देश में सैंकड़ों मन्दिरों तथा कलकत्ता की काली देवी के समक्ष प्रतिदिन निर्दोष, बेजुबान हजारों पशुओं की बलि दी जाती है और वर्तमान की खबर सुनो! जो समाज को दिशा-निर्देश देने वाले अभिनेता माने जाते हैं, वे भी इस वैज्ञानिक युग में उपरोक्त अविद्या के अन्धविश्वास में फँसकर समाज को विपरीत दिशा में ले जा रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन बीमार (अस्वस्थ) हो गये थे। उनके स्वास्थ्य के सुधार हेतु झोटे (भैंसे) की बलि दी गई थी।
दैनिक जागरण, १६ नवम्बर, २०१४ एटा उत्तरप्रदेश थाना क्षेत्र सिढ़पुरा के गाँव चान्दपुर में प्रात: शनिवार के दिन दिल दहलाने वाली घटना हुई। एक अन्धविश्वासी बाप ने अपने तीन वर्षीय मासूम बेटे की बलि दे दी तथा खून से सने हाथों से मन्दिर में दुर्गा एवं शंकर की मूर्तियों का तिलक किया एवं खून के हाथों के छापे भी लगाए। जब तक विज्ञान विरुद्ध अन्धविश्वासी धर्म के आधार पर समाज चलेगा, तब तक इन भयंकर कुकृत्यों को रोका नहीं जा सकता। जब तक महापुरुषों को ईश्वर का अवतार माना जायेगा, तब तक रामपालदास, रामरहीम, आशाराम तथा नित्यानन्द जैसे अनेक चरित्रहीन लोग ईश्वर का अवतार लेते रहेंगे, अत: अवतार प्रथा पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए।
जिस प्रकार वर्तमान समय में रामपालदास के आश्रम बरवाला (हिसार) से अवैध हथियारों का जखीरा, शिक्षित कमाण्डो, अश्लील सामग्री, नशीले पदार्थ, विदेशी शराब, ए.के. सैंतालीस जैसे भयंकर हथियार, तेजाब व पेट्रोल बम्ब, माँ-बहन-बेटियों के चरित्रहनन हेतु बहनों के नग्र चित्रों के लिये उनके स्नानागारों में अप्रत्यक्ष रूप से कैमरे फिट करना, बेसुध कर बहन-बेटियों का चरित्रहनन करना आदि अवैध कार्य इसके बरवाला (हिसार) स्थित आश्रम में होते रहे, उसी प्रकार करौंथा (रोहतक) स्थित इसके आश्रम में भी होते रहे हैं, जिसके प्रत्यक्ष गवाह उस समय के सभी समाचार पत्र हैं।
१२ जून, २००६ में इस स्वयंभू भगवान् तथा इसके अनुयायियों ने सोनू नामक एक होनहार युवक की गोली मारकर हत्या की तथा लगभग साठ व्यक्तियों को गोलियों से घायल किया। २०१३ में करौंथा (रोहतक) आश्रम के निकट इसके अनुयायियों तथा पुलिस की गोलियों से संदीप (शाहपुर, आर्य बाल भारती स्कूल, पानीपत), आचार्य उदयवीर (आर्य गुरुकुल लाढौत, रोहतक) तथा बहन प्रोमिला देवी करौंथा (रोहतक) की गोली मारकर हत्या कर दी गई तथा लगभग ११० व्यक्तियों को गोलियों से घायल किया गया। इसके अतिरिक्त हरियाणा पुलिस ने अनेक खाप पंचायतों के नेताओं तथा आर्यसमाज, जिसकी स्थापना १८७५ में हुई थी तथा जिसके संस्थापक एवं अनुयायी १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर आज तक राष्ट्रहित एवं समाजहित के सभी बड़े आन्दोलनों में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं, उसके कार्यकत्ताओं को भी लाठियों की चोटों से भंयकर रूप से घायल किया। २०१३ में भी करौंथा स्थित इसके आश्रम में उपरोक्त सभी अवैध सामग्री की जाँच पड़ताल इसको तथा इसके अनुयायियों को बचाने के लिए नहीं की गई तथा इसको पंजाब की तर्ज पर दूसरा भिण्डरावाला बनाने का कार्य किया। उन सबकी गहराई से जाँच होनी चाहिए। उसके उपरान्त भी उस समय की शासित पार्टी के राजनेताओं के ये वक्तव्य कि ‘हरियाणा की वर्तमान सरकार ने सूझबूझ, शान्ति व धैर्य से काम नहीं लिया।’ हमें पढक़र खेद व आश्चर्य होता है। उस समय के शासित राजनेता आत्म अवलोकन नहीं करते कि उस समय किस प्रकार से निहत्थे, निर्दोष लोगों को तथा साधु-संन्यासियों को लाठियों से घायल कर गोलियों से मृत्यु शैय्या पर पहुँचाया था।
वर्तमान समय में हरियाणा सरकार ने अत्यन्त सूझबूझ, शान्ति तथा धैर्य का प्रमाण देते हुए इतने बड़े ऑपरेशन के उपरान्त भी किसी को भी हताहत नहीं होने देना। वर्तमान मुख्यमन्त्री खट्टर साहब की सरकार की साधुवादिता व दूरदर्शिता है, अतएव हरियाणा सरकार साधुवाद की पात्र कही जाएगी।
हृदय की गहराई से राष्ट्र के इस अधोपतन का दु:ख विशेषकर महाभारत के उपरान्त किसी एक व्यक्ति ने अनुभव किया है तो वे एकमात्र ऋषि दयानन्द हैं। जब वे यमुना नदी के तट पर समाधि में बैठे हुए थे, तब इस राष्ट्र की एक बेटी अपने गोदी के लाल के शव को नदी में बहाने के लिए तट पर पहँुची। शव को पानी में डालने की आवाज से ऋषि जी की समाधि टूट गई। उन्होंने देखा कि एक बच्चे के शव को नदी में बहाकर उसके शरीर के एकमात्र कफन को उतार कर एक बहन वापिस जा रही है। ऋषि ने आवाज देकर बहन को निकट बुलाकर पूछा-बहन! तुमने बच्चे के शव से कफन क्यों उतार लिया? उस समय बहन की आँखों में अश्रुधारा बहने लगी और बोली- बाबा, तुम्हें सांसारिक दु:ख-सुखों का ज्ञान नहीं है और न ही मेरे दु़:खों का आपके पास कोई समाधान है, अत: आप यह क्यों पूछ रहे हो? तब बाबा दयानन्द ने कहा-बहन, यह तो बताना ही पड़ेगा। तब बेटी ने दु:खी हृदय से कहना आरम्भ किया- बाबा, यह मेरा इकलौता पुत्र था, बीमार हो गया और पैसे के अभाव मेें मैं इसका इलाज नहीं करवा सकी, जिसके कारण इसकी मृत्यु हो गई। बाबा, इसके शरीर को ढँकने के लिए मेरे पास केवल मात्र एक यही साड़ी है। इसमें से आधी साड़ी को फाडक़र मैंने अपने लाल के लिए कफन तैयार किया था। बाबा, यदि मैं इस कफन को वापिस नहीं ले जाती हँू तो मैं इस शरीर को कैसे ढँक पाऊँगी और अपनी लाज की रक्षा कैसे कर पाऊँगी? यह कहकर बहन फफक-फफक कर रोने लग गई। जिस दयानन्द की आँखों में अपने प्यारे चाचा की मृत्यु तथा लाड़ली बहन की असमय मृत्यु पर एवं धन-धान्य से सम्पन्न घर-परिवार एवं स्नेहमयी माता-पिता के त्यागने पर दु:ख नहीं हुआ, परन्तु इस घटना ने उनके हृदय को अत्यन्त व्यथित कर दिया और कहा- मैंने पारसमणि पत्थर सुना है, लेकिन होता नहीं है, यदि कोई पारसमणि पत्थर था तो यह आर्यावर्त देश ही था, जिसको छूकर विश्व के कंकर, पत्थर के सदृश गरीब देश धनधान्य से सम्पन्न हो गये। हा, आज उस सोने की चिडिय़ा कहे जाने वाले राष्ट्र की यह दूरावस्था हो गई है कि यहाँ की बहन-बेटियों और माताओं को अपनी लाज की रक्षा के लिये वस्त्र भी नसीब नहीं तथा संस्कार के लिए समिधाएँ (लकडिय़ाँ) तथा कफन तक उपलब्ध नहीं है। पाठक मन्थन करें कि उस समय उस राष्ट्रभक्त ऋषि के हृदय में वेदना की क्या सभी सीमाएँ पार नहीं कर गई होंगी?
मैं राष्ट्र के कर्णधारों, राष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, जिस पर आज पूर्ण भारत विश्वास कर रहा है, उनसे अपील करता हँू कि वे निम्रलिखित विषय पर गंभीरता से कदम उठायें। कुछ समय पूर्व रेडियो, टी.वी. तथा समाचार-पत्रों में एक बहस चली थी कि साम्प्रदायिक हिंसा पर लोकसभा में बहस होनी चाहिये। मेरा इस विषय में यह कथन है कि वृक्ष के पत्तों और डालियों पर पानी छिडक़ने से वह लाभ नहीं होता जो कि वृक्ष की मूल जड़ों में पानी देने से होता है, अत: भारत सरकार लोकसभा में प्रत्येक धर्म के एक-एक, दो-दो उच्च कोटि के विद्वानों को बुलाये और एक-एक विद्वान् से अपने-अपने धर्म की विशेषताओं की व्याख्या सुने तथा तदुपरान्त यह निश्चय करे कि कौन धर्म विज्ञानसम्मत, तर्कपूर्ण तथा युक्तियुक्त है तथा यह भी निश्चय करे कि किस धर्म का प्रादुर्भाव किस सन् या संवत् में हुआ? मान लो, किसी धर्म या सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव दो-ढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ है तो दो-ढाई हजार वर्ष से पहले भी तो उस धर्म के बिना मानव तथा प्राणिमात्र का कार्य चल रहा था, तो चिन्तन किया जाये कि आज उसके बिना कार्य क्यों नहीं चल सकता? इसी प्रकार जाति, भाषा पर भी बहस होनी चाहिये। वैसे तो जितनी अधिक भाषाओं का ज्ञान मनुष्य को होगा, उतना ही ज्ञान-विज्ञान की वृद्धि में लाभ होगा, उसके उपरान्त भी राष्ट्र में एक ऐसी भाषा तो अवश्य ही होनी चाहिये, जिसे राष्ट्र के जन पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक बोल सकें और समझ सकें। जब राष्ट्र का एक धर्म होगा, एक जाति होगी, एक भाषा होगी, सभी हाथों को काम होगा, सबके लिये देश में अपनी शिक्षा, अपनी संस्कृति होगी, तब महाराज अश्वपति के समान इस देश का राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा देश के अन्य राजनेता यह घोषणा करने में समर्थ होंगे कि-
न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न च मद्यप:।
नानाहिताग्रिर्नानाविद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुत:।।
मेरे समस्त देश में कोई चोर नहीं है, कोई कंजूस व अदानी नहीं है, कोई शराबी नहीं है, यज्ञ व सन्ध्या न करने वाला कोई नहीं है, मूर्ख कोई नहीं है। जब कोई चरित्रहीन पुरुष ही नहीं है, तो स्त्री के दुराचारिणी होने का प्रश्र ही नहीं उठता। ऐसा होने पर न ही साम्प्रदायिक दंगे होंगे, न कोई रेप केस होगा, न ही भ्रष्टाचार होगा, न ही देश का धन विदेश में जायेगा तथा न काला बाजारी ही होगी।
अब लेख के अन्त में उपरोक्त वेदमन्त्रों में जो रहस्य है, वह प्रकाशित करना चाहँूगा। वेदमन्त्र में कहा है कि जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों के स्वरूप को साथ-साथ जानता है, वह विद्वान् अविद्या द्वारा मृत्यु से तैरकर विद्या द्वारा अमृत पद (मोक्ष) को प्राप्त करता है। प्रश्र यहाँ पर यह पैदा होता है और इस मन्त्र में यही रहस्य है कि जब अविद्या से दु:ख की प्राप्ति होती है तो उससे मृत्यु से कैसे पार हो सकता है? इसका उत्तर व रहस्य यह है कि जो इस अनित्य संसार को जिसे वेद ने अविद्या कहा है, उसको वैसा ही अनित्य मानकर आचरण करता है तथा अविद्या के दूसरे लक्षण अपवित्र शरीर व भौतिक पदार्थ को अपवित्र मानता है तो ऋषि पतञ्जलि के अनुसार-‘शौचात्स्वाङजुगुप्सा परैरसंसर्ग:’ वैराग्यवान् व्यक्ति अपने शरीर की गन्दगी और अपवित्रता को देखकर तद्वत् अन्य के शरीर को भी अपवित्र देखकर अन्य के शरीर के संसर्ग से बच जाता है और पवित्र ईश्वर की तरफ उन्मुख हो जाता है। तीसरे, अविद्या के लक्षण काम, क्रोध, लोभ तथा अहंकार आदि के परिणामों को समझकर वैराग्यवान् योगी व्यक्ति इस अविद्या से बच जाता है।
इसी प्रकार चौथे विद्या के लक्षण अनात्म जड़ पदार्थ को आत्मा मानने के उपरोक्त दोषों को समझकर योगी-सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकत्र्ता ईश्वर की ही उपासना करता है। अत: अविद्या के इन लक्षणों क ो जानकर योगी अविद्या से मृत्यु को पार कर जाता है तथा विद्या के द्वारा ऋषि पतञ्जलि के अनुसार-
‘तप: स्वाध्यायेश्वर-प्रणिधानानि क्रियायोग:’
तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर के प्रति अपने-आपको समर्पित करके योग लीन हो अमृत पद मोक्ष को प्राप्त करता है। उपरोक्त वेदमन्त्र इस रहस्य द्वारा ‘मृत्योर्मामृतं गमय:’ मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है।