इस्लाम में नारी

इस्लामिक साहित्य में स्त्रीयों के प्रति मानसिकता को प्रदर्शित करते कुछ उदाहरण :

अत्याचार करने और कष्ट देने की सूची में औरत सदैव ऊपर रही है . ( इसका अनुमान आधुनिक युग में भी लगाया जा सकता है ) क्योंकि हजरत अली के कथनानुसार औरत की खस्लत (प्रवृत्ति , स्वाभाव) में अत्याचार करना, कष्ट देना और लड़ाई और झगड़े को पैदा करना ही होता है . नहजुल बलागा  में है :-

………. वास्तव में जानवरों के जीवन का उद्देश्य पेट भरना है फाड़ खाने वाले जंगली जानवरों के जीवन का उद्देश्य दूसरों पर हमला करके चीरना फाड़ना है और औरतों का उद्देश दुनिया की जिन्दगी का बनाव सिंगार और लड़ाई झगड़े पैदा करना होता है . मोमिन वह हैं जो घमण्ड से दूर रहते हैं . मोमिन वह हैं जो महरबान हैं मोमिन वह हैं जो खुदा से डरते हैं .

जहाँ हजरत अली ने औरत को लड़ाई झगडा फ़ैलाने और  पैदा करने वाला बताया है वहीं रसूल ए  खुदा ने इर्शाद फरमाया :
‘ औरतें शैतानों की रस्सियाँ हैं “

अर्थात औरतें कल अक्ल (मंद बुद्धि नाकिसुल अक्ल ) होने के कारण शैतान के कब्जे (चंगुल ) में शीघ्र आ जाती हैं और शैतान उस मंद बुद्धि औरत के हाथों दुनिया में लड़ाई झगडा (दंगा फसाद ) फैलाने  (अर्थात खुदा के बन्दों पर अत्याचार करने ) का काम लेता है और हजरत अली के विचारानुसार मर्द वह होता है जो औरत के लड़ाई झगड़े फ़ैलाने के बावजूद भी खुदा से डरता रहता है और औरत जैसी कमजोर जाति पर मजबूत होने की वजह से अत्याचार  नहीं करता और न ही कष्ट देता है .

बहरहाल हज़रत अली ने औरत को जहाँ लड़ाई झगडा फैलाने वाला बताया है वहीं पुरी तरह से (सरापा) आफत (मुसीबत ) ही बताया है

“औरत सरापा (पूरी तरह से ) आफत (मुसीबत ) हैं और इससे ज्यादा आफत यह है की उसके बिना कोई चारा नहीं (अर्थान गुजारा नहीं )

अर्थात औरत के साथ होने आया न होने …….. दोनों हालातों में मर्द के लिए मुसीबत ही मुसीबत है . शायद इसी लिए मर्द इस पुरी तरह से मुसीबत औरत को अपने गले से लगा लेता है . ताकि मुसीबत के साथ साथ शरीर से चिमटने और लिपटने पर स्वाद और आनन्द भी मिलता रहे . हजरत अली ने इर्शाद फरमाया :

“औरत एक बिच्छु है लिपट जाते तो (उसके जहर में ) स्वाद है “

लेकिन जी तरह बिच्छु अपनी आदत के अनुसार  डंक मारे बिना नहीं रह सकता . उसी तरह औरत भी लड़ाई झगडा फैलाये बिना नहीं रह सकती अर्थात (कुछ को छोड़कर  अधिकतर ) औरत की खस्लत में अत्याचार करना , ढोंग मचाना कष्ट देना और शत्रुता फैलाना इत्तियादी कूट कूट कर भरा होता है . ऐसी ही औरतों के लिएय रसूल ए खुदा ने इर्शाद फ़रमाया
“ जो औरतें अपने पति को दुनिया में तकलीफ पहुँचती हैं हरें उससे कहती हैं तुझ पर खुदा की मार अपने पति को कष्ट न पहुंचा यह मर्द तेरे लिए नहीं ही तू इसले लायक नहीं , वह शीग्र ही तुझ से जुदा होकर हमारी तरफ आ जायेगा .
अर्थात अपने पति को कष्ट देने वाली औरत स्वर्ग नहीं पहुँच सकती

इस्लाम और सेक्स डॉ. मोहम्मद तकी अली आबिदी (स्वर्ण पदक )

क्या कहें ! बस यही कह सकते हैं कि भगवान्  ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दें .

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