स्तुता मया वरदा वेदमाता-14

मन्त्र में प्रथम गुण बताया था परिवार को साथ रखने के लिये मनुष्य को अपना दिल बड़ा रखना चाहिए। दूसरी बात मन्त्र में कही है परिवार के सभी सदस्य एक सूत्र में बंधे होने चाहिए अधूरी बात। एक सूत्र में बंधे होने का अभिप्राय एक केन्द्र से बन्धे होना है। सब सदस्यों का परिवार के मुखिया से जुड़ा होना अपेक्षित है। जहाँ भी दो या दो से अधिक मनुष्य एक साथ रहते हैं, उनका एक साथ रहना तभी सभव है जब वे किसी एक के निर्देशन में कार्य करते हों। एक व्यक्ति के आदेश का सभी पालन करते हों। जहाँ कोई नेता नहीं होता, वह परिवार या समाज नष्ट हो जाता है। जहाँ एक परिवार में अनेक नेता होते हैं, वह परिवार भी नष्ट हो जाता है। नेता एक हो, सभी उसका आदर करते हों, सभी उसका आदेश मानते हों, वही परिवार सुख से रह सकता है और उन्नति कर सकता है।

परिवार में एक मुखिया का होना आवश्यक है, वहीं पर मुखिया द्वारा सभी सदस्यों का ध्यान रखना, सब की चिन्ता करना, सबकी उन्नति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। हमारे परिवारों में असन्तोष के अनेक कारण होते हैं, उनमें एक कारण होता है किसी सदस्य के विचारों को न रखा जाना। जहाँ तक परिवार में जो छोटे सदस्य होते हैं, उनके विषय में सोच लिया जाता है, वे ठीक नहीं सोच सकते, उनके पास न ज्ञान होता है, न अनुभव। यह बात सामान्य रूप से ठीक है। परन्तु परिवार के सभी सदस्य सुख-दुःख का अनुभव करते हैं तथा उन्हें भी अच्छा-बुरा लगता है, अतः सभी सदस्यों के विचारों को अवश्य सुना जाना चाहिए।

छोटे सदस्यों को समझना कठिन होता है परन्तु उनके महत्त्व को समझने और उनके समान को बनाये रखने के लिए उन्हें भी समझाने का प्रयत्न करना चाहिए। परिवार की सामान्य चर्चा में सभी सदस्यों की भागीदारी होने से परिवार के सदस्य में उत्तरदायित्व की भावना विकसित होती है। बड़ों का कर्त्तव्य है कि वे परिवार के सदस्यों में आत्मविश्वास व योग्यता उत्पन्न करें। उनके अन्दर योग्यता उत्पन्न करेंगे और कार्य का उत्तरदायित्व सौपेंगे तो उनके अन्दर आत्मविश्वास उत्पन्न होगा। परिवार के किसी सदस्य से भूल या गलती होने पर उसे डराना-धमकाना नहीं चाहिए। दण्डित करने के स्थान पर उसे अवसर देना चाहिए कि उससे भूल हुई है। यदि मनुष्य को अनुभव हो कि उससे भूल हुई है तो उसके अन्दर प्रायश्चित्त और पश्चाताप की भावना उत्पन्न हो सकती है। यही भावना मनुष्य को सावधान करती है और उसे दुबारा गलती करने से रोकती है। जो बालक हठी बनते हैं, उनके लिए कठोर दण्ड उन्हें अधिक धृष्ट बना देता है। ऐसी परिस्थिति में बड़े लोग स्वयं को दण्डित करके उनके मन को कोमल बनाने का प्रयत्न करते हैं। परिवार में सदस्यों के  अन्दर सद्भाव उत्पन्न करने के लिय सदस्यों में संवाद का होना आवश्यक है। संवाद को बनाये रखने के लिए परिवार में यज्ञ, भोजन, मनोरञ्जन, विचार-विमर्श के कार्य किये जाते हैं। पृथक् संवाद करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, यदि घर में धार्मिक आयोजन नियमित होते रहते हैं, नित्य सन्ध्या-हवन होता है। विद्वान्, अतिथि, संन्यासी, महात्माओं का घर में आगमन होता रहता है तो परिवार के सदस्यों के मन में धार्मिक व्यक्तियों व धर्म के प्रति आदर भाव उत्पन्न होता है। सदस्यों को पृथक् शिष्टाचार का उपदेश देने की आवश्यकता नहीं रहती। बड़ों को वैसा करते देखते हैं, स्वयं भी करने लगते हैं। जो विचार माता-पिता नहीं दे सकते, वे विचार परिवार के सदस्य विद्वानों से वार्तालाप करके प्राप्त कर लेते हैं। अतः परिवार में श्रेष्ठ पुरुषों का आवागमन परिवार को संयुक्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आज जब संयुक्त परिवार की प्रथा टूट रही है और एकल परिवार अपनी आजीविका व्यापार, मजदूरी, नौकरी से समय नहीं निकाल पाते तो घरों में धार्मिक कर्त्तव्यों की न्यूनता स्वाभाविक है परन्तु धार्मिक कर्त्तव्यों के अभाव में परिवार को साथ रखने में कठिनाई अवश्य होगी। परिवार में संवाद बनाये रखने का सहज उपाय है। दैनिक सन्ध्या-यज्ञ परिवार में संवाद और एकत्व बनाये रखने का सबसे आसान उपाय है। सन्ध्या के बाद ईश्वराक्ति के, धार्मिक विचारों के भजन गाये जा सकते हैं। दिनभर के क्रिया कलापों पर चर्चा की जा सकती है, यदि दिन में इस कार्य का समय न मिले तो यह कार्य सांयकाल या सोने से पूर्व किया जा सकता है। आज समाज में बहुत सारे लोग शिकायत करते हैं, परिवार के बच्चों में संस्कार नहीं है, संस्कार तो अच्छे काम करने से बनते हैं। अच्छे कार्य करने से परिवार के बालकों में अच्छे संस्कार आते हैं और बुरे कार्य से बच्चों पर बुरे संस्कार पड़ते हैं। घर में अच्छे कार्य न करके बालकों में अच्छे संस्कारों की आशा करना व्यर्थ है। धार्मिक कार्यों से परिवार में सन्तोष का भाव उत्पन्न होता है, दान देते रहने से सहयोग की प्रवृत्ति बनी रहती है। संसार में कभी भी, किसी की भी इच्छायें पूर्ण नहीं हो पाती। अतः इच्छाओं को रोककर अपने साधनों में से मनुष्य अन्यों की सहायता करता है, तब उसके इस कार्य से मनुष्य के मन में लोभ और असन्तोष की भावनाओं पर नियन्त्रण करना आता है। इस प्रकार परिवार को एक केन्द्र से बान्ध कर चलने से नई पीढ़ी का निर्माण करने का अवसर मिलता है, मन्त्र में सब सदस्यों के मिलकर प्रयत्न करने के लिये निर्देश दिया है।

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