वर्णपरिवर्तन के ऐतिहासिक उदाहरण: डॉ सुरेन्द्र कुमार

वर्णव्यवस्था में वर्णपरिवर्तन के ऐतिहासिक उदाहरण

    भारतीय इतिहास में वर्णपरिवर्तन या वर्णपतन के सैंकड़ों ऐतिहासिक उदाहरण मिलते हैं जिनसे वर्णव्यवस्था में वर्णपरिवर्तन की स्वतन्त्रता तथा वर्णपतन की दण्डात्मकता का परिज्ञान होता है। यहां कुछ प्रमुख उदाहरण दिये जा रहे हैं-

(अ) व्यक्तिगत वर्णपरिवर्तन के ऐतिहासिक उदाहरण

  1. मनुस्मृति के प्रवक्ता मनु स्वायंभुव के कुल में भी वर्ण-परिवर्तन हुए हैं। ब्राह्मण वर्णधारी महर्षि ब्रह्मा का पुत्र मनु स्वायंभुव स्वयं भी राजा बनने के कारण, ब्राह्मण से क्षत्रिय बना। मनुस्मृति के आद्यरचयिता इसी मनु स्वायंभुव के बड़े पुत्र राजा प्रियव्रत के दस पुत्र थे जो जन्म से क्षत्रिय थे। उनमें से सात क्षत्रिय राजा बने। तीन ने ब्राह्मण वर्ण को स्वीकार किया और तपस्वी बने। उनके नाम थे-महावीर, कवि और सवन (भागवतपुराण अ0 5)।
  2. दासी का पुत्र ‘कवष ऐलूष’ शूद्र परिवार का था। वह विद्वान् ब्राह्मण बनके मन्त्रद्रष्टा ऋषि कहलाया। इस ऋषि द्वारा अर्थदर्शन किये गये सूक्त आज भी ऋग्वेद के दशम मण्डल में (सूक्त 31-33) मिलते हैं, जिन पर ऋषि के रूप में इसी का नाम अंकित है। (ऐतरेय ब्राह्मण 2.19; सांयायन ब्राह्मण 12.1-3)
  3. इसी प्रकार शूद्रा का पुत्र कहा जाने वाला वत्स काण्व भी पढ़-लिख कर ऋग्वेद के मन्त्रों का अर्थद्रष्टा ऋषि बना। (पंच0 ब्रा0 8.6.1; 14.6.6)
  4. सत्यकाम जाबाल अज्ञात कुल का था। वह अपनी सत्यवादिता एवं प्रखर बुद्धि के कारण महान् और प्रसिद्ध ऋषि बना। (बृहदारण्यक उप0 4.1.6; छान्दोग्य उप0 4.4-6; पंचविश ब्राह्मण 8.6.1)।
  5. निन कुल-परिवार में उत्पन्न हुआ मातंग अपनी विद्वत्ता के कारण ब्राह्मण एवं ऋषि बना। (महाभारत, अनु0 3.19)
  6. (कुछ कथाओं के अनुसार) वाल्मीकि निन कुल में उत्पन्न हुए, किन्तु वे ब्रह्मर्षि और महाकवि बने। (स्कंद पुराण, वै0 21)।
  7. विदुर दासी के पुत्र थे। वे महात्मा बने और राजा धृतराष्ट्र के महामन्त्री रहे। (महाभारत, आदिपर्व 100, 101, 135-137 अ0)
  8. पांचाल-राजा भर्याश्व का एक पुत्र मुद्गल राजा था, जो क्षत्रिय था। बाद में यह और इसके वंशज ब्राह्मण बन गये। इसके वंशज ब्राह्मण आज भी ‘मौद्गल ब्राह्मण’ कहलाते हैं (भागवतपुराण-9.21; वायु पुराण 99.198)
  9. कान्यकुज के राजा विश्वरथ राज्य को त्याग कर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने और फिर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके अनेक पुत्रों में से कुछ क्षत्रिय ही रहे तो कुछ ब्राह्मण बन गये, जो आज कौशिक ब्राह्मण कहाते हैं। (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड 51-56 अध्याय)।
  10. इसी प्रकार दीर्घतमा नामक ऋषि के कई पुत्र थे, उनमें से कुछ ब्राह्मण बने तो कुछ क्षत्रिय। उनके वंशजों को ‘वालेय ब्राह्मण’ और ‘वालेय क्षत्रिय’ कहा जाता है। (विष्णुपुराण 4.18; भागवत पुराण 9.20)।
  11. चक्रवर्ती क्षत्रिय राजा मनु वैवस्वत (सातवां मनु) का नाभानेदिष्ट नामक पुत्र ब्राह्मण बना (ऐतरेय ब्राह्मण 5.14)। उसके लिए ‘ब्राह्मण’ संबोधन प्राप्त होता है (महाभारत 1.75.3)। यह ऋग्वेद के 1.61-62 सूक्तों का मन्त्रद्रष्टा ऋषि है (ऐतरेय ब्राह्मण 5. 14)।
  12. क्षत्रिय राजा मनु के इसी पुत्र का पुत्र नाभाग (किसी के मतानुसार दिष्ट राजा का पुत्र) वैश्य बना (भागवत0- 9.2.23, 28; मार्कण्डेय0 128.32; विष्णु0 4.1.19)। मुनि प्रभाति ने इसे पुनः क्षत्रिय वर्ण की दीक्षा दी थी।
  13. क्षत्रिय मनु वैवस्वत के पुत्र नरिष्यन्त के वंश में उत्पन्न देवदत्त का एक पुत्र अग्निवेश्य हुआ। यह ‘कनीन’ और ‘जातूकर्ण्य’ नामक ब्राह्मण ऋषि प्रसिद्ध हुआ। ब्राह्मणों में ‘आग्निवेश्य’ वंशीय ब्राह्मण इसी के वंशज हैं। (भागवत0-9.2.19; ब्रह्माण्ड0 3.47.49)
  14. वैवस्वत मनु के सूर्यवंश प्रवर्तक ज्येष्ठपुत्र राजा इक्ष्वाकु के वंश में पच्चीसवीं पीढ़ी में युवनाश्व राजा का ‘हरित’ नामक पुत्र हुआ। यह क्षत्रिय से ब्राह्मण बन गया। ‘हारित’ ब्राह्मणों का वंश इसी से प्रचलित हुआ (विष्णु0 4.3.5; ब्रह्माण्ड0 4.1.85)।
  15. चन्द्रवंशी चक्रवर्ती सम्राट् ययाति के दूसरे पुत्र पुरु के वंश में अप्रतिरथ राजा का पुत्र कण्व हुआ। उसका पुत्र मेधातिथि (दूसरा नाम प्रस्कण्व) ब्राह्मण बना। ‘काण्वायन’ ब्राह्मण इसी मेधातिथि के वंशज हैं। ये सभी ब्राह्मण वर्ण में दीक्षित हो गये थे (विष्णु0 4.19.2,20; भागवत0 9.20.1)
  16. वीतहव्य नामक एक प्रसिद्ध राजा ब्राह्मण बन गया था। भृगु ऋषि ने इस राजा को ब्राह्मणत्व की दीक्षा दी थी (महाभारत, अनुशासन पर्व, अ0 30.57-58)
  17. राजा प्रतीप के तीन पुत्र हुए-देवापि, शान्तनु और महारथी। इनमें से देवापि ब्राह्मण बन गया और शान्तनु तथा महारथी (बाल्हीक) क्षत्रिय राजा बने। (महाभारत, आदि0 94.61; विष्णु0 4.22.7; भागवत0 9.22.14-17)।

ऐसे वर्णपरिवर्तन के उदाहरणों से प्राचीन भारतीय इतिहास भरा पड़ा है। ये उदाहरण मनु की और वैदिक वर्णव्यवस्था की पुष्टि करते हैं कि वह कर्म पर आधारित थी, जन्म पर नहीं।

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