उपासक प्रभु के तेज से तेजस्वी हो दूसरों को भी तेजस्वी करता है

ओउम्
उपासक प्रभु के तेज से तेजस्वी हो दूसरों को भी तेजस्वी करता है
डा. अशोक आर्य
जो मनुष्य सदा प्रभु की उपासना करता है, वह प्रभु के तेज से अत्यधिक तेजस्वी हो जाता है । प्रभु प्रार्थना से वह वसुमान व पवित्र हो जाता है, वह दीप्त हो जाता है तथा दूसरों को भी पवित्र करता है । इस तथ्य पर ही ऋग्वेद क यह मन्त्र प्रकाश डाल रहा है : –
आयस्तेअग्नइधतेअनीकंवसिष्ठशुक्रदीदिवःपावक।
उतोनएभिस्तवथैरिहस्याः॥ ऋ07.1.8

हे वासिष्ट अर्थात् अतिश्येन वसुओं में उत्तम | वसुओं को उतम माना गया है किन्तु इस मन्त्र में वसुओं से भी उतम के रूप में सम्बोधन करते हुए कहा है कि हे सब वस्तुओं से सम्पन्न ,अत्यन्त पवित्र , दीप्त व सब को पवित्र करने वाले सब के अग्रणी प्रभो ! जो आप का बनता है अथवा जो आप को अपना मानता है अथवा जो आप का भक्त होता है ,वह ही बल व तेज को सदा दीप्त करता है , उसका ही बल व तेज दीप्त होता है , बढता है । वास्तव में तेजस्वी व्यक्ति सदा आप ही के तेज को प्राप्त करता है तथा उस तेज से ही वह स्वयं भी तेजस्वी बनता है ,दीप्त होता है ।
इस से स्पष्ट होता है कि मन्त्र परमपिता को सब प्रकार के वसुओं भी उतम बताया है तथा कहा है कि प्रभु उसे पूरी तरह से अपना बना लेता है , जो उस प्रभु को अपना बनाने का यत्न करता है | प्रभु भक्त को इश्वर सदा अपने पास स्थान है |
परम पिता परमात्मा के आशीर्वाद से ही प्रभु भक्त सशक्त होता है , उसका बल व तेज निरंतर दीप्त होता चला जाता है , प्रचंड होता चला जाता है | इससे प्रभु भक्त का बल और तेज बढ़ करा अन्यतम दीप्ती को प्राप्त होता है |
२ स्तवन में प्रभु को पुकारें
हम जो आप के लिये स्तोत्रों का प्रयोग करते हैं , आपके स्तवन में जो गाते हैं, उन के माध्यम से , उनके द्वारा आप यहां हमारे जीवन में आइये, प्रवेश करिये । हे प्रभॊ ! हम आप को जितना ही अपने जीवन में धारण कर सकेंगे, उतना ही हम तेजस्वी बनेंगे । इस लिये हम आप को अधिकतम धारण करने के यत्न करते हैं । जब हम आप को अधिकतम धारण कर लेंगे तो हम वसुमान बनेंगे , हम पवित्र बनेंगे तथा हम दीप्त होंगे । इस के साथ ही साथ ओरों को भी हम एसा ही बनाने का प्रयास करेंगे, यत्न करेंगे । इस लिये हमारी यह ही प्रार्थना है कि हम आपका स्तवन करते हुये, आप का गुणगान करते हुये, आपका स्मरण करते हुये आपको अपने मे धारण करें ।
इसा सब से एक बात जो स्पष्ट होती है कि प्रभु स्तवन ही सब शक्तियों का आधार है , प्रभु स्तवन से ही सब शक्तियां प्राप्त होती हैं , सब प्रकार के तेज व सब प्रकार की शक्तियों को हम प्राप्त करते हैं और वसुकों से भी उतम बनाते हैं |

डा. अशोक आर्य

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