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टी.वी. चैनलों की मनमानी राष्ट्र के लिये घातक

टी.वी. चैनलों की मनमानी राष्ट्र के लिये घातक

प्रस्तुत सम्पादकीय प्रो. धर्मवीर जी के द्वारा उनके निधन से पूर्व लिखा था। इसे यथावत् प्रकाशित किया जा रहा है।

-सम्पादक

सामान्य रूप से कोई किसी के देश में घुस नहीं सकता। सीमा पर सेना की कड़ी सुरक्षा रहती है। यात्रियों को आने-जाने के लिये अनुमति लेनी पड़ती है। वायुयान, जलयान भी एक-दूसरे की अनुमति के बिना किसी दूसरे की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकते, परन्तु इस विज्ञान के युग में आकाश से होने वाले आक्रमण को हम नहीं रोक पा रहे हैं।

दूरदर्शन विज्ञान का वरदान है, समस्त ज्ञान-विज्ञान मनुष्य के लिये है, परन्तु उसका सदुपयोग या दुरुपयोग मनुष्य की इच्छानुसार होता है। अतः समाचार की यह नवीन विधा भी प्रयोगकर्त्ता की इच्छा पर निर्भर करती है।

आज भारत में एक हजार के लगभग टी.वी. चैनल हैं, इनका वर्गीकरण किया जाय तो मुख्य रूप से समाचार प्रसारित करने वालों की संख्या अधिक है। इसके अतिरिक्त सिनेमा, खेल, मनोरञ्जन, धार्मिक, वैज्ञानिक, मार्केटिंग, इन सभी चैनलों में विज्ञापन की भरमार रहती है। इनके द्वारा भारी आय, इनके संचालकों को होती है। संचालक अधिक से अधिक विज्ञापन प्रसारित करने का प्रयास करते हैं। जो कार्यक्रम जितने लोकप्रिय होते हैं, उनको उतने ही अधिक विज्ञापन मिलते हैं। फिर अधिक से अधिक लोग किस समय, कौन-सा कार्यक्रम देखते हैं, उस समय अधिक विज्ञापन प्रसारित होते हैं। इस प्रकार कभी कोई व्यक्ति कोई विशेष कार्यक्रम या समाचार देखना चाहे तो उसे पहले अधिक से अधिक विज्ञापन देखने होंगे। जैसे समाचार दर्शक को प्रभावित करते हैं, उसी प्रकार विज्ञापन भी देखने वाले को प्रभावित करते हैं। जैसे व्यापार के विस्तार के लिये विज्ञापन सशक्त माध्यम है, वैसे ही विचारों के प्रचार-प्रसार के लिये भी टी.वी. चैनल सशक्त माध्यम हैं। इनके प्रभावकारी होने का कारण ये है कि अन्य सब माध्यम केवल पढ़ने या सुनने तक ही सीमित थे, परन्तु इसमें पढ़ना, सुनना, देखना, इन सबके साथ सक्रिय भागीदारी भी दिखाई देती है, जिससे दर्शक तत्काल प्रभावित होता है।

दृश्य मनुष्य के मन को सीधे प्रभावित करते हैं। घटना का प्रत्यक्ष घटित होना दीखता है। अतः उसे व्यक्ति सहज स्वीकार कर लेता है। इस कारण जो बात चैनल पर दिखाई जा रही है या बोली जा रही है, मनुष्य उससे प्रभावित होकर अपना विचार उसके अनुकूल बना लेता है। यह टी.वी. का तात्कालिक लाभ है। इस पर कही गई बात यदि गलत और तथ्यहीन है तो उसके चैनल पर आने तक पहली घटना का प्रभाव परिणाम में बदल चुका होता है।

इसके उदाहरण के रूप में उन छोटी-छोटी घटनाओं को ले सकते है, जिनका स्थानीय प्रभाव तो बहुत थोड़ा या छोटा सा है, परन्तु टी.वी. चैनलों के समाचार के रूप में उसका प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाता है। बंगाल के किसी निजी विद्यालय में व्यक्तिगत राग-द्वेष के कारण किसी ईसाई साध्वी से दुर्व्यवहार होता है, परन्तु टी.वी. पर देश देखता है कि भारत में ईसाई समुदाय प्रताड़ना और आतंक का शिकार हो गया है। किसी पागल ने चर्च की खिड़की पर पत्थर मारकर काँच तोड़ दिया और संवाददाता ने इसे समाचार बना दिया। जैसे ही ये घटना नमक-मिर्च लगाकर टी.वी. पर प्रसारित होती है तभी अमेरिकन चर्च से घोषणा होती है- ‘भारत में चर्च पर आक्रमण हो रहे हैं।’ इस प्रकार के उदाहरण हम प्रतिदिन देख सकते हैं।

रोहित वेमुला की घटना- उसकी आत्महत्या उसकी व्यक्तिगत निराशा का परिणाम था, परन्तु टी.वी. के समाचारों ने उसे साम्प्रदायिक रूप देकर देश तथा समाज में भय और आतंक का वातावरण बनाने का प्रयास किया।

इसी प्रकार मुरादाबाद में एक मुस्लिम को मारने की घटना। देश में प्रतिदिन के घटनाक्रम में ऐसी अनेक घटनाएँ घटित होती हैं। किसी की हानि, हत्या अनुचित है, परन्तु एक हत्या को साम्प्रदायिक बताकर दूसरे पर मौन रहना कहाँ का न्याय है? हमारे विचारों की बेईमानी की इसमें बड़ी भूमिका रहती है।  गोधरा काण्ड के बाद मुसलमानों की हत्या को तो बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है, परन्तु रेल के डिब्बे को जलाकर जिनको मारा गया, उनकी चर्चा पर इन समाचार दिखाने वालों की जीभ हिलती भी नहीं थी।

हिन्दू एकत्र होकर उत्सव करते हैं, तो अल्पसंख्यकों पर आतंक स्थापित करना माना जाता है और अल्पसंख्यकों द्वारा नारा लगाने और शस्त्र दिखाने में सहनशीलता की बात की जाती है। एक अल्पसंख्यक बीमारी या नशे में मर जाय तो सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की उपेक्षा माना जाता है, परन्तु केदारनाथ जैसी दुर्घटना में पन्द्रह हजार लोग मारे गये, तब किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने सहायता पहुँचाने का विचार नहीं किया। हिन्दू यदि कहता है कि देश के प्रति अल्पसंख्यकों को निष्ठावान होना चाहिए, तो इसे हिन्दुओं के कड़वे बोल कहा जाता है और मुसलमान, ईसाई देश-विरोधी बात करता है तो उसे अपनी परम्परा का पालन करना बताया जाता है।

इस प्रकार के अनर्गल मिथ्या विचारों के द्वारा दृश्य-तन्त्र जन मानस को प्रभावित करते हैं। इन समाचार संस्थाओं द्वारा राजनैतिक पार्टी, किसी विचारधारा या किसी व्यक्ति विशेष को इस तरह प्रचारित किया जाता है कि उसकी वास्तविकता का दर्शक को पता ही नहीं चल पाता।

दृश्य समाचारों पर जो समाचार दिखाये जाते हैं, उनका चयन उनकी इच्छा से होता है। जो समाचार इनकी रीति-नीति के अनुकूल नहीं होते, वे कितने भी महत्त्वपूर्ण हों, उनको चैनल पर नहीं दिखाया जाता। इसको बहुत बार फेसबुक, व्हाट्सैप, ट्विटर आदि के माध्यम से जाना जा सकता है। इसके साथ इन चैनलों पर होने वाले साक्षात्कार और संवाद भी प्रायोजित ही होते हैं तथा अपने विचारों को प्रस्तुत करने वाले और उन विचारों का समर्थन करने वाले लोगों को ही इसमें भाग लेने के लिये बुलाया जाता है। इन समाचार चैनलों का अधिकांश नियन्त्रण विदेशी व्यक्ति या विदेशी संस्थाओं के हाथ में है। वे जैसा चाहते हैं, वैसी बातों को प्रसारित करते हैं। जिन्हें अपना विरोधी समझते हैं, उनकी बातों को दबा देते हैं या दूसरा रंग देकर प्रस्तुत करते हैं। दृश्य समाचारों ने छपे समाचार पत्रों को पीछे छोड़ दिया है। या तो उन तक समाचार समय पर पहुँचते नहीं हैं और यदि पहुँचते हैं तो देर से पहुँचते हैं। टी.वी. पर समाचार घटते हुए दीखते हैं या घटने के तुरन्त बाद दीख जाते हैं, पर समाचार पत्र में तो अगले दिन आयेंगे। इस कारण दृश्य समाचारों का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है।

दृश्य समाचार-तन्त्र की बढ़ती व्यापकता को देखते हुए इनकी प्रामाणिकता बनाये रखने और इनके दुरुपयोग को रोकने के लिये नियम बनाने और नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है, जिससे उस माध्यम से देश की सुरक्षा पर किसी प्रकार का संकट न हो तथा देश की सामाजिक एकता का ताना-बाना छिन्न-भिन्न न हो।

इस सन्दर्भ में हमें ध्यान रखना चाहिये कि जब इन्हीं चैनलों ने समाचार दिखाने के नाम पर भारतीय सेना की कार्यवाही को प्रसारित किया, जिससे देश की सेना को कार्यवाही करने में अधिक कठिनाई आई और हमारे लोगों को अधिक संख्या में प्राण भी गंवाने पड़े, क्योंकि हमारी सैन्य योजना का शत्रु को समाचार के माध्यम से तत्काल पता चल जाता था और शत्रु अपने बचाव और लड़ने वालों पर आक्रमण करने में प्रभावी रहता था। समाचार के नाम पर ऐसी मूर्खता करने की अनुमति कोई सरकार और देश नहीं दे सकता, परन्तु हमारे यहाँ इसको रोकने का प्रयास नहीं होने से देश और समाज की बहुत हानि हो रही है। अतः जैसे दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्रों के लिये नियम और नीति बनी हुई है, वैसा ही प्रभावी नियम दृश्य संस्थानों के लिये बनाने की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर इनकी स्वेच्छाचारिता को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

संचार माध्यमों से निम्नलिखित कार्य होते हैं-

प्रथम समाचार हमारी जानकारी बढ़ाते हैं। इस जानकारी से मनुष्य अपने को अद्यतन करता है। घटना की जानकारी प्रत्येक मनुष्य को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती है। वर्तमान घटनाक्रम आगे बनने वाले इतिहास का वर्तमान होता है। जैसे सत्य इतिहास उज्ज्वल भविष्य का आधार होता है, उसी प्रकार वर्तमान सत्य समाचार, सत्य इतिहास का आधार होता है। समाचारों की अप्रामाणिकता जहाँ इतिहास को भ्रष्ट करती है, वहाँ वर्तमान को भी दिग्भ्रमित करती है।

आजकल समाचार जानने के साधन जिस तीव्रता से क्रियाशील हैं, उनका प्रभाव भी उतना ही गहरा पड़ रहा है। इस महत्त्व को समझकर प्रत्येक समर्थ, राजनीतिक व्यक्ति, व्यवसायी और विचारों से समाज को प्रभावित करने वाले वर्ग समाचार साधनों का भरपूर उपयोग करते हैं। समाचार पत्र से आगे आज दूरदर्शन के माध्यम आ गये हैं। इनको लगाने चलाने में समाचार पत्रों से भी अधिक व्यय आता है, इनसे उत्पन्न प्रभाव को पाने के लिये धन व्यय करना पड़ता है, इस कारण यह एक बड़ा और प्रभावशाली व्यवसाय बन गया है। बड़े-बड़े व्यवसायी घराने राजनैतिक दल और नेताओं ने अपने-अपने टी.वी. संचार प्रभाग बनाये हुए हैं।

२०१३ के अध्ययन के अनुसार हमारे देश में प्रसारित होने वाली टी.वी. चैनल संस्थाओं में महत्त्वपूर्ण सात टी.वी.  चैनल संस्थान राजनेताओं के अधिकार में हैं। पहले समाचार पत्रों के विषय में ही समझा जाता था कि कौनसा समाचार-पत्र किस राजनीतिक दल का पक्ष लेता है। अब समाचार चैनलों का हाल उससे बहुत आगे है। पहले राजनीतिक दल अपने समाचार प्रकाशित करने के लिये टी.वी. संस्थाओं को विज्ञापन के रूप में बहुत धन देते थे, इन विज्ञापन देने वालों को लगा कि विज्ञापन में धन व्यय करने से अधिक लाभदायक है- स्वयं टी.वी. चैनल चलाना, इसका प्रमाण है कि आज अधिकांश राजनैतिक दल और राजनेताओं के स्वयं के दूरदर्शन संस्थान हैं।

– ‘न्यूज लाइव रेग’ संस्था की अध्यक्ष हैं रिणिकी भूपान, जो उस समय कांग्रेस के स्वास्थ्य मन्त्री की पत्नी है।

– कर्नाटक का जनश्री समाचार-पत्र तथा अन्य समाचार-पत्र तत्कालीन पर्यटन मन्त्री जनार्दन रेड्डी तथा स्वास्थ्य मन्त्री श्रीरामुलु रेड्डी के स्वामित्व में है।

कस्तूरी न्यूज-२४ के स्वामी हैं पूर्व मुख्यमन्त्री एच.डी. कुमार स्वामी।

– सुवर्ण चैनल के स्वामी संस्था प्रधान हैं, राज्य सभा सदस्य- राजीव चन्द्रशेखर।

– साक्षी चैनल, एन. टी.वी., टी.वी ५- इनके स्वामी हैं आन्ध्र प्रदेश के जगनमोहन रेड्डी।

– एन. स्टूडियो के स्वामी नारंने श्रीनिवास राव हैं- जो चन्द्रबाबू नायडू के सम्बन्धी हैं।

– ओडिशा टी.वी. के स्वामी वैजयन्त पण्डा ‘बीजू जनता दल’ के हैं। ओडिशा के अन्य चैनल भी राजनेताओं के हैं।

– इण्डिया विजन टी. वी. के स्वामी मुस्लिम लीग के सचिव एम.के. मुनीर हैं।

– टी.वी.-२४ घण्टे साम्यवादी मार्क्सवादियों के नियन्त्रण में है।

– कोलकाता टी.वी. तृणमूल कांग्रेस के अधीन है।

– पीटीसी, पीटीसी न्यूज, पीटीसी पंजाबी, पीटीसी चकदे का स्वामित्व सुखबीर सिंह बादल के पास है।

बड़े टी.वी. चैनल संस्थानों में –

. जया टीवी, जया मैक्स, जया प्लस, जे मूवी- ये सब जयललिता की कम्पनी मैविस सतकॉम लिमिटेड के स्वामित्व में हैं। तमिलनाडू में ही कांग्रेस के दो अन्य चैनल- मैगा टी.वी. और वसन्त टी.वी. भी हैं, जबकि ए.डी.एम.के. पार्टी के विजयकान्त ‘कैप्टन टी.वी.’ के मालिक हैं।

. सन टी.वी. तमिलनाडु के डी.एम.के. पार्टी के चीफ करुणानिधि के भतीजे कलानिधि मारन का है।

इसके अतिरिक्त सन न्यूज, सन म्युजिक, के. टी.वी., छुट्टी टीवी, सुमंगली केबल, आदित्य टीवी, चिन्टू टीवी, किरन टीवी, खुशी टीवी, उदय कॉमेडी, उदय म्युजिक, जैमिनी टीवी, जैमिनी कॉमेडी, जैमिनी मूवी, करुणानिधि के स्वामित्व में कालाईगनर टी.वी. उनके निकट व्यक्ति एम. राजेन्द्रन् के स्वामित्व में राज टी.वी. और राज डिजिटल प्लस हैं।

. आई.बी.एन. लोकमत- का स्वामित्व कांग्रेस सरकार में स्कूली शिक्षा के मन्त्री राजेन्द्र दर्डा और उनके भाई राज्यसभा के सदस्य विजय दर्डा के पास है। महाराष्ट्र में सर्वाधिक प्रसार वाला मराठी समाचार ‘लोकमत’ तथा ‘टीवी १८’ ग्रुप भी इन्हीं का है।

. इण्डिया न्यूज- इसके स्वामी विनोद शर्मा के पुत्र कार्तिकेय शर्मा हैं, जिनके भाई मनु शर्मा को जेसिका लाल की हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके अतिरिक्त आई. टी.वी. मिडिया ग्रुप के अनेक प्रसारण जिनमें न्यूज एक्स भी सम्मिलित है, इनका स्वामित्व भी कार्तिकेय शर्मा के पास है।

. न्यूज २४- इसका स्वामित्व कांग्रेस सरकार में केन्द्रीय मन्त्री रहे राजीव की पत्नी अनुराधा प्रसाद शुक्ला के पास है। इसके अतिरिक्त आपनो-२४ तथा ई-२४ का स्वामित्व भी इन्हीं के पास है, इसमें रोचक तथ्य यह है कि अनुराधा प्रसाद भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की बहन हैं।

. एन.डी. टीवी- का स्वामित्व पत्रकार प्रणव राय के पास है। इसी के साथ एन.डी. टीवी ग्रुप के पास एन.डी. टी.वी. इण्डिया, एन.डी. टी.वी. गुड टाइम्स, एन. डी. टी.वी. २४×७, एन.डी. टी.वी. प्रॉफिट व और भी अनेक संस्थान इससे जुड़े हैं। एन.डी. टी.वी. साम्यवादी विचारधारा से जुड़ा संस्थान है। प्रणव राय की पत्नी राधिका राय है। राधिका राय पूर्व राज्यसभा सदस्य वृन्दा कारत की बहन हैं, जो साम्यवादी मार्क्सवादी दल के महासचिव प्रकाश करात की पत्नी हैं।

.  टाइम्स नाओ- बहुत बड़े संचार संस्थान टाइम्स ऑफ इण्डिया का है। इसमें- मिड डे, नवभारत टाइम्स, स्टार डस्ट, फेमिना, विजय टाइम्स, विजय कर्नाटक और टाइम्स नाओ, ये सब समाचार-पत्र इसी संस्थान के हैं। इस संस्था का स्वामित्व बैनेट एण्ड कोलमैन कम्पनी के पास है। इसकी भागीदारी सोनिया गांधी के नजदीकी सम्बन्धी इटली के रॉबर्ट मिन्डो के पास है।

एक अध्ययन के अनुसार राजनेताओं ने संचार-तन्त्र में अपनी पूंजी लगाकर इन पर पकड़ बनाई हुई है। वहाँ व्यवसायी लोगों ने अपने माल के प्रचार और बिक्री के लिये इन माध्यमों पर अधिकार किया हुआ है।

इस सारे तन्त्र का दुःखद और चिन्तनीय पक्ष यह है कि इन पर तथ्यहीन, निराधार, मिथ्या समाचार, सूचनाएँ, परामर्श दिये जाते हैं, जिससे पाठक भ्रमित होता है और उसकी हानि होती है। इसका उदाहरण- सभी टी.वी. चैनल  स्टॉक बाजार के लिये अपने-अपने परामर्श देते हैं, वे इतने असत्य होते हैं कि सरकार को इनके लिए चेतावनी देनी पड़ी कि ग्राहक इनकी सूचनाओं पर विश्वास न करें, इनमें धोखा हो सकता है। इन टी.वी. चैनल संस्थाओं की असत्यता के समाचार आज सामाजिक संचार के साधनों- ब्लॉग, ट्विटर, आदि से सीधे और वास्तविक रूप में पाठक को मिलते हैं। अतः दृश्य संचार माध्यमों की विश्वसनीयता कम हुई है।

सामान्य जन इन्ळीं संचार माध्यमों के आधार पर निर्णय लेते हैं, अतः इनको विश्वसनीय बनाना आवश्यक है। सामाज के प्रतिनिधि तत्व ठीक हों, अतः योगेश्वर कृष्ण गीता में कहते हैं-

यदिह्यहं न वर्तेयं जातुः कर्मण्यतन्द्रितः।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

– धर्मवीर