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हदीस : सत्कर्म और दुष्कर्म

सत्कर्म और दुष्कर्म

सत्कर्म क्या है ? और दुष्कर्म क्या ? विभिन्न धर्मपंथों, विभिन्न दर्शनधाराओं तथा विभिन्न गुरूओं ने इन प्रश्नों पर मनन किया है। इस्लाम ने भी इनके विशिष्ट उत्तर प्रस्तुत किये हैं। वह बतलाता है कि सत्कर्मों को स्वतन्त्र रूप में नहीं देखना चाहिए, उनके साथ सही मजहब का चुनाव भी जरूरी है। सही मुस्लिम के अनुवादक अब्दुल हमीद सिद्दीकी इस्लामी दृष्टि को यूं रखते हैं-”अज्ञान की दशा में (इस्लाम के दायरे से बाहर रहने पर) किये गये अच्छे काम इस तथ्य के सूचक हैं कि व्यक्ति सदाचार की ओर उन्मुख है। किन्तु सच्चे अर्थों में सदाचारी तथा धर्मात्मा होने के लिए अल्लाह की इच्छा की सही-सही समझ अतयावश्यक है। ऐसी समझ इस्लाम में मूर्त है और सिर्फ पैगम्बर के माध्यम से ही विश्वस्त रूप में जानी जा सकती है। इस तरह, इस्लाम पर ईमान लाये बिना हम अपने स्वामी और प्रभु की सेवा इसकी इच्छानुसार नहीं कर सकते……….. सत्कर्म अपने-आप में अच्छे हो सकते हैं, पर इस्लाम कबूत करने पर ही ये सत्कर्म अल्लाताला की नजर में महत्वपूर्ण और सार्थक हो पाते हैं।“ (टी0 218)।

 

मुहम्मद की नजर में, गलत मजहब अनैतिक कर्मों से भी अधिक बदतर है। जब उनसे पूछा गया-”अल्लाह की नजर में कौन सा पाप विकटतम है ?“ तो उन्होंने उत्तर दिया-”यह कि तुम अल्लाह की जात में किसी और को शरीक करो।“ अपने बच्चे का कत्ल और पड़ौसी की बीबी से व्यभिचार मुहम्मद के अनुसार दूसरे और तीसरे नंबर के पाप हैं (156)।

 

दरअसल सिर्फ गलत मजहब ही किसी मुसलमान को जन्नत के बाहर रख सकता है। अन्यथा कोई भी अनैतिक दुष्कृत्य जन्नत में उनके प्रवेश में बाधक नहीं बनता-व्यभिचार और चोरी तक नहीं। मुहम्मद हमें बतलाते हैं-”जिब्रैल मेरे पास आये और संवाद किया कि वस्तुतः तुम्हारी उम्मा (संप्रदाय, कौम, समुदाय) में जो लोग अल्लाह को किसी और के साथ जोड़े बिना जिन्दगी पूरी कर गये, वे जन्नत में दाखिल होंगे।“ इस स्पष्ट करने के लिए इस हदीस का वर्णन करने वाला अबू जर्र मुहम्मद से पूछता है कि क्या यह उस शख्स के वास्ते भी सच है जिसने व्यभिचार व चोरी की हो। मुहम्मद उत्तर देते हैं-”हाँ, उसके वास्ते भी, जिसने व्यभिचार व चोरी की हो“ (171)। अनुवादक इस मुद्दे को आगे स्पष्ट करते हैं-”व्यभिचार और चोरी, दोनों इस्लाम में संगीन जुर्म करार दिए गए हैं, किन्तु ये जुर्म मुजरिम को अनन्त नरक की सजा नहीं देते।“ किन्तु बहुदेववाद अथवा किसी और देवता को ”अल्लाह के साथ जोड़ने की कोशिश एक अक्षम्य अपराध है, और अपराधकत्र्ता को अनन्त नरकवास करना पड़ेगा“ (टी0 168 एवं 170)।

 

जिस परिमाण में बहुदेववाद विकटतम अपराध है, उसी में ममेश्वरवाद सर्वोत्तम सत्कर्म है। जब मुहम्मद से ”सर्वोत्तम कर्मों“ के बारे में सवाल होता है तो वे जवाब देते हैं-”अल्लाह पर विश्वास ही सर्वोत्तम कर्म है।“ उनसे पूछा जाता है-”उसके बाद बाद ?“ वे बतलाते हैं-”जिहाद (148)। मुस्लिम पंथमीमांसा में निश्चय ही ”अल्लाह पर विश्वास“ का मतलब है ”अल्लाह और उसके रसूल पर विश्वास“ जब एक बार कोई अल्लाह और उसके रसूल पर विश्वास कर लेता है, तब उसके अतीत के सब अपराध धुल जाते हैं और भविष्य का भय नहीं रह जाता है। यह आश्वासन मुहम्मद ने उन बहुदेववादियों को दिया ”जिन्होंने बड़ी संख्या में हत्याएँ की थीं और जो व्यापक व्यभिचार में लिप्त रहे थे“ किन्तु जो मुहम्मद के साथ आने को तैयार थे। एक अन्य व्यक्ति से भी अपने अतीत के पापों के प्रति अपराध-भावना का अनुभव कर रहा था, मुहम्मद ने कहा-”क्या तुम्हें यह असलियत मालूम नहीं है कि इस्लाम पहले के सब बुरे कर्मों को धो-पोंछ डालता है ?“ (220)।

लेखक : रामस्वरूप