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आम आदमी पार्टी की वास्तविकता

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‘आप’ का बनना, चुनाव लड़ना, सरकार बनाना, सब कुछ अप्रत्याशित लगता है | जिस आशा के साथ इस पार्टी का निर्माण हुआ, उतनी ही निराशा इसके काम से है | इसके बनने के कारण में सामान्यजन की पीड़ा मुख्य है | इस पीड़ा का मूल शासन-प्रशासन में व्याप्त रिश्वतखोरी है | जिसके कारण नियम, व्यवस्था सब कुछ निरर्थक हो गई है| इस घूसखोरी के कारण सामान्य मनुष्य का जीवन कठिनाई में पद गया है | जिसका काम नियम से होना चाहिए, उसका काम नहीं होता | जिसका काम होने योग्य नहीं है, उसका काम पैसे देकर हो जाता है | इस कुचक्र में सामान्यजन फंस कर रह गया है, इस विवशता को उसने नियति मान लिया था | ऐसे समय में उसकी पीड़ा को छूने का काम इन वर्षों में हुआ है | आप पार्टी ने भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर जनता से समर्थन माँगा, परन्तु आज सरकार में बैठकर आदर्श की बात को व्यवहार के धरातल पर लाने में असफल हो गई | इसके कारण पर विचार करने पर एक बार स्पष्ट होती है की भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर सरकार बनाने वाले स्वयं भ्रष्टाचार के दोषी है |

भ्रष्टाचार को हमने बहुत संकुचित अर्थ में लिया है | भ्रष्टाचार शब्द पुरे आचरण की भ्रष्टता की बात करता है | केवल पैसे के या घुस लेने की बात भ्रष्टाचार नहीं है | घुस लेना तो बहुत मोटा अर्थ है | वास्तव में भ्रष्टाचार विचारों से प्रारम्भ होता है | जिनके विचार पवित्र नहीं है, उनका आचरण कैसे पवित्र हो सकता है ? भ्रष्टाचार मिटाने वालों के चरित्र और विचारों को देखने से उनके भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने की इच्छा-शक्ति का पता लगता है | आप पार्टी के लोगों की जड़ों तक जाने पर आपको पता लगता है की ये उन विचारों का प्रतिनिधित्व करते है, जो इस देश के आचार-विचार और परम्परा से सहमति नहीं रखते | इनके सामने संकट भ्रष्टाचार नहीं है, भ्रष्टाचार को तो इन्होने लड़ाई के साधन के रूप में काम में लिया है | आप पार्टी के नेता केजरीवाल जहाँ खड़े होकर लड़ रहे हैं वह स्थान ही भ्रष्टाचार का उद्गम स्थल है | आधुनिक पठित वर्ग में सामाजिक लड़ाई वाले वर्ग का नाम गैर सरकारी संगठन है | इसे एनजीओ के नाम से जाना जाता है | भारत में चलने वाले ऐसे संगठनों की जांच पड़ताल में पाया गया है की अधिकाँश ऐसे स्वयंसेवी संगठन केवल कागजों पर काम करते हैं | जो संगठन या समाज संघर्ष करते हैं, उनका संघर्ष उद्देश्य के लिए नहीं होता | ये संगठन उन लोगों के संकेत पर नाचते है, जो इनको पैसा देते है | जो लोग इस प्रकार के संगठनों को पैसा देते है, उनका वास्तविक उद्देश्य संघर्ष करने वाले लोगों को अपने विरोधी को नष्ट करने में लगाना तथा ऐसे लोगों को सुविधाजीवी बनाकर उनको सामर्थ्यहीन करना होता है |

आप पार्टी के कार्यकर्ताओं का चरित्र देखेंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा | भाजपा के नेता हर्षवर्धन ने सदन में केजरीवाल और सिसोदिया पर आरोप लगाया था की इनके संगठनों ने फोर्ड फाउंडेशन से लाखों रुपये की सहायता ली है | आश्चर्य की बात है की केजरीवाल ने अपने उतर में इसकी चर्चा तक नहीं की | जो लोग विदेशी सहायता के तथ्य को समझते है, वे जानते हैं की ये संगठन आकर्षक सुन्दर नामों से काम करने वाले संगठनों से इस देश को तोड़ने और यहाँ की संस्कृति को निंदनीय बताकर उसे नष्ट करने के लिए बड़ी माता में धन देते हैं | इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है | पिछले वर्षों में फोर्ड फाउंडेशन ने विश्वविद्यालयों को अपनी कार्ययोजना को क्रियान्वित करने के लिए बहुत धन दिया, उसमें एक योजना थी- भारत की अनेकता में एकता | इस कार्यक्रम में लगता तो ऐसा है की जैसे बंटे हुए देश को एक करने का कार्य किया जा रहा है, परन्तु इसमें अलगाववाद को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है | ये संगठन चर्च के माध्यम से समाज सुधार का काम करते हैं, परन्तु इनका उद्देश्य हिन्दू  समाज में विघटन उत्पन्न करके उसको बिगाड़ना हैं | इस फाउंडेशन की सहायता लेने वाले केजरीवाल किस रास्ते से देश की उन्नति करना चाहते हैं | यह पता लग जाता है | केजरीवाल को सामाजिक आन्दोलन में लाने वालो सुचना के अधिकार के आन्दोलन के लिए काम करने वाली श्रीमति अरुणा राय थीं | इस सब की पृष्ठभूमि देखने पर ज्ञात होता है की ये कांग्रेस, कम्युनिष्ट तथा विदेशी धन पर काम करने वाले संगठनों से जुड़े है | जो लोग सता में रहे हैं, सता के सहयोगी रहे हैं, वे एकाएक कैसे भ्रष्टाचार को मिटाने के अगुवा बन बैठे, यह समझने की बात है | अरविन्द केजरीवाल, अरुणा राय के दल के सदस्य हैं और अरुणा राय सोनिया गांधी की सलाहकारों में है | जो व्यक्ति सोनिया गांधी के सहयोगियों में हो, वह कौन से भ्रष्टाचार को हटाने की बात कर रहे हैं यह विचारणीय है | जो सरकार देश में अब तक सबसे अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त रही है, उनके सहयोगी आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे हैं |

भ्रष्टाचार केवल पैसे से नहीं होता, आचरण एक व्यापक शब्द है | इसका सम्बन्ध जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से है | जो व्यक्ति स्वयं के व्यक्तिगत जीवन में भ्रष्टाचार का दोषी रहा हो, वह आज भी, आचरण से दूर कैसे रह सकता है | भ्रष्टाचार के विरुद्ध ‘आप’ का आन्दोलन एक नारे से आगे नहीं बढ़ सका है | झूठ बोलना, दूसरों पर दोषारोपण करना भी तो भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही आता है | आज आप पार्टी भ्रष्टाचार के आन्दोलन को कांग्रेस की नीतियों के बचाव के लिए लड़ रही है | सामान्यजन की बात करने वाला केवल पैसे के बेईमानी की बात करता हैं, राष्ट्रद्रोह के विरोध में बोलना उचित नहीं समझता, सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद् अल्पसंख्यकों के नाम पर हिन्दू समाज को कुचलने के लिए कानून बनाने के लिए तैयार खड़ी हैं, क्या यह आचरण देश और समाज के साथ भ्रष्टाचार नहीं है ? ऐसे लोगों को बचाने के लिए ही आप पार्टी का आन्दोलन है | कांग्रेस को आज भारतीय जनता पार्टी और मोदी से भय है और आप पार्टी भ्रष्टाचार के नाम पर मोदी विरोध करके देश के कांग्रेस विरोधी आन्दोलन को असफल करने के प्रयास में है | यह इमानदारी के नाम पर खेला जाने वाला बैईमानी का खेल है | इसी प्रकार आप पार्टी के अन्य नेताओं का भी इतिहास है | आज इंटरनेट ने जनता को सबकुछ सुलभ करा दिया है |

केजरीवाल के दुसरे साथी मनीष सिसोदिया भी अरुणा राय के दल के सदस्य है | यह कैसे माना जा सकता है, जो व्यक्ति कल तक कांग्रेस और कम्युनिस्टों के साथ काम कर रहा था आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहा है | यदि लड़ाई केवल भ्रष्टाचार के विरुद्ध हो तो सबसे पहले भ्रष्ट सरकार को केंद्र से हटाने की आवश्यकता है | आप में मुख्यमन्त्री से नेता तक अराजकता फैलाने को भ्रष्टाचार मिटाना कहते है | सदन में अराजकता तो सड़क पर अराजकता, इससे लाभ यह होता है की जनता का ध्यान मुख्य काम से हट जाता है | लोग इनके आचरण के पक्ष-विपक्ष बनकर विवाद में उलझे रहते है | दिल्ली सरकार के मन्त्री मनीष सिसोदिया भी स्वयं-सेवी संगठन चलाते रहे हैं और केजरीवाल के साथ अन्ना आन्दोलन में भाग लेकर आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन के अगुआ बने हुए हैं | आप पार्टी में विवादास्पद लोगों की भरमार हैं, इनमें एक नाम है- वकील प्रशांत भूषण | इनकी विशेषता है की नक्सलवादी लोग वार्ता के लिए इनको अपना मध्यस्थ मानते हैं | इसी से इनकी विचारधारा का पता लगता है | जो व्यक्ति देश के साथ द्रोह करता हो वह भ्रष्टाचार विरोधी नारों का खोखलापन प्रमाणित हो जाता है | इतना ही नहीं, प्रशांत भूषण को यह गौरव भी प्राप्त है की वे आज भी कश्मीर में जनमत की बात करते हैं | उनके विचार से कश्मीर के आतंकवादियों के विरुद्ध सेना की नियुक्ति वहां की जनता से पूछकर की जानी चाहिए | प्रशांत भूषण अपने राष्ट्र विरोधी वक्तव्यों के कारण हर समय विवाद में बने रहते हैं | समाचार देखने वाले जानते हैं की अमेरिका का एक संगठन जो कश्मीर के विषय में पाकिस्तानी  पक्ष पर अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियां  करता था, जिनमें बड़े-बड़े पत्रकार, लेखक भाग लेते थे और पाकिस्तान के पैसे पर विदेश यात्रा का आनन्द उठाते थे | जब उस संगठन को चलाने वाले की करतूतें समाचार पत्रों में आई तो प्रशांत भूषण जैसे लोगों ने बड़े भोलेपन से कह दिया की हमें तो पता नहीं था | इन कार्यों से ही इनके भ्रष्टाचार विरोधी होने का पता चल जाता हैं | ऐसे लोग भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर भ्रष्ट सरकार और विदेशी शक्तियों का बचाव करने में लगे हैं |

आप के एक और प्रमुख सदस्य योगेन्द्र यादव भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में जुड़े, ये भी सोनियां गांधी की सलाहकार परिषद् के सदस्य थे | सोनियां गांधी के कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य भी बन गए थे | बड़े मृदुभाषी हैं, यदि सोनियां गांधी भ्रष्ट नहीं है तो उनके सलाहकार कैसे भ्रष्ट हो सकते है | सोचने की बात है जो कल तक भ्रष्टाचार करने वालों के दल में थे, आज वे भ्रष्टाचार के विरोध में आन्दोलन में सूत्रधार बन गए | इनके भ्रष्टाचार मुक्त होने की इससे बड़ी कसौटी और क्या हो सकती है | आप पार्टी के प्रवक्ता गोपाल राय तो प्रारम्भ से साम्यवादी दल की ओर से छात्र संघ के अध्यक्ष रहे हैं | साम्यवादी दल की पवित्रता तो सामान्य तो सामान्य व्यक्ति जानता हैं | साम्यवाद का सूत्र संस्कृत-संस्कृति, हिंदी-हिन्दू का विरोध करना इन्हें मान्य है और ये भी देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने में देश को दिशा दे रहे हैं ?

वास्तव में ये आम शब्द के अपहरण जैसा है, जिसका आम आदमी के साथ सम्बन्ध नहीं वह आम की टोपी लगाकर आज ख़ास बन बैठा | बस ख़ास बनने के लिए आम बनने का नाटक है | यदि वास्तव में आम है तो इस देश में अर्थ से भी बड़ा अनर्थ, अर्थ से बड़ा भ्रष्टाचार भाषा का है | सामान्य मनुष्य का कष्ट रिश्वत से उतना नहीं है, जितना उसको बलपूर्वक विदेशी भाषा में व्यवहार करने में है | यदि कोई आम आदमी की बात करेगा तो उसे आम आदमी की भाषा में बात करनी होगी | क्या केजरीवाल की सरकार में दम है की वह आम आदमी को भाषा के भ्रष्टाचार से बचा सके ? संभवतः ऐसा प्रश्न आने पर इसे करने का साहस दिखा सके, इसमें संदेह है | वास्तविकता तो यह है की पिछले वर्षों में स्वामी रामदेव ने जो भ्रष्टाचार के विरोध में जो आन्दोलन वर्षों के प्रयास से खड़ा किया था | जिसके प्रभाव ने रामलीला मैदान में एक लाख लोगों को एकत्र कर जन आन्दोलन का रूप दिया था, उसे अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना को जंतर-मंतर पर बैठा कर स्वामी रामदेव से झटक लिया और अन्ना को छोड़ आन्दोलन को अपने साथ जोड़कर दिल्ली की सता तक पहुँच गए | यदि केजरीवाल आम आदमी हैं वे आदमी की पीड़ा समझते है तो भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकते है | अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में उन सबको ठगा है, जो भ्रष्टाचार समाप्ति की आशा से उनके साथ आये थे | आज वे सोचते होंगे की उन्हें कैसे मुर्ख बनाया गया |

नीतिकार ने ठीक ही कहा है—

प्रथमस्तावदहं मूर्खः द्वितीयो पाक्षबन्धकः,

ततो राजा च मन्त्री च सर्वं वे मुर्खमंडलम |

           -धर्मवीर