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प्रभु प्रकाश को देखें

औ३म
प्रभु प्रकाश को देखें
प्रभु क प्रकश अपने ही ह्रिदय में होता है । इसे देखने के लिये अपने ही ह्रिदय को टटोलना होता है । हमारे औरस पुत्र हमे अपने आचरण से सुखि करते हुये दिर्घायु हो । इस्बात क प्रकव्ह रिग्वेद के सप्तम मन्दल के प्रथम सुक्त के अन्तर्गत २१वें मन्त्र मे इस प्रकर किया ग्या है : –
त्वमग्ने सुहवो रण्वसद्रि॒वसुदीति सूनो सहसो दिदीह ।
मा त्वे सचा तनये नित्या आ धडमा वीरो अस्मत्रर्योवि दसीत ॥ रिग्वेद ७.१.२१ ॥
हे बल पुत्र, अत्यन्त बलवान, अगेणी प्रभु ! आप को हम सुगमता से पुकार सके, एसे होइये । प्रत्येक प्राणी की सदा ही यह इच्छा रही है कि वह परमपिता की समीपता प्राप्त कर किन्तु पिता उसे सरलता से मिल जावे । इस भाव को ही इस मन्त्र में व्यक्त किया गया है । हे प्रभु आप रमणीय सन्दर्शन वाले होने के कारण आप उत्तम दीप्ति से , उत्तम प्रकाश से दीप्त होयिये । हमारी यह ही प्रार्थना है प्रभु कि हम सदा आप के उत्तम प्रकाश को अपने ह्रिदयों में देख सकें ।
हमारे सहायक होकर आप हमें हमारे औरस पुत्र के समबन्ध मे दग्ध न करें । हम इस औरस सन्तान के व्यवहर से कभी द्ग्ध न हों, दु:खी न हों , परेशान न हों तथा न ही उसके विक्रित व्यवहार से परेशान हों । हमारी यह जो औरस सन्तान है , वह सुशील, सदाचारी तथा योग्य हो तथा हमारे से यह नरहितकारी ,यह वीर सन्तान उपक्शीन मत हो जावे । यह सन्तान दीर्घ जीवी हो , अल्पायु मे ही हमारे से छिन न जावे ।
हम यग्याग्नि को दीप्त करें कभी दुर्मति न हों
इस मन्त्र मे प्रभु से प्रार्थना करते हुये कहा है कि हमें कभी भरण पोषण की कमीं न आवे, यग्यग्नि के माध्यम से देते रहे तथा हम कभी दुर्मति न हों । इस बात को मन्त्र इन शब्दों में कह रहा है : –
मा नो अग्ने दुर्भ्रितये सचैव देवेद्धेष्वग्नि प्र वोच ।
मा ते अस्मान्दुर्मतयो भ्रिमाच्चिद्देवस्यसूनो सहसो नशन्त ॥ रिग्वेद ७.१२२ ॥
यह मन्त्र उपदेश करते हुये कहता है कि हे प्रभु ! हम अपने भरण पोषण के लिये कभी कष्ट में न पडे । हमें कभी दुर्भति के अवस्था में न डालें । भाव स्पष्ट है कि हमें सदा यथावश्यक अन्न आदि प्राप्त होता रहे । इस के साथ ही मन्त्र बता रहा है , उपदेश कर रहा है कि प्रभु आप ही हमारे सहाय भूत हैं , हमारे सहायक हैं , अत: इस नाते आप हमें देवों के द्वारा जलायी गयी इस अग्नि के विष्य में हमें बतायिये, ग्यान करायिये, उपदेश किजिये ताकि हम भी उन देवों की ही भान्ति यग्य की अग्नि को जलाने वाले, प्रज्वलित करने वाले बनें ।
मन्त्र उस पिता को बल का पुन्ज मानते हुये उपदेश करता है, मन्त्र कह रहा है कि हे बल , शक्ति के प्रकाश पुन्ज प्रभु ! हम आप के प्रकाश से प्रकाशित हैं , इस लिये हमें कभी भ्रम से भी किसी प्रकार की दुर्मति न हो , बुरा न सोचें तथा न ही करें । हम सदा उत्तम मतिवाले, उत्तम बुद्धिवाले, उत्तम ग्यान वाले होते हुये यग्य आदि उत्तम कार्यों में व्यस्त रहे, लगे रहें ।