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प्रभु हमें अक्षीण आयु तथा उत्तम सन्तान रुपी धन दे

ओउम
प्रभु हमें अक्षीण आयु तथा उत्तम सन्तान रुपी धन दे
(मण्डल ७ का सम्पूर्ण वर्णन )
डा, अशोक आर्य
परमपिता परमात्मा ने वेद के इस सूक्त में उपदेश किया है कि हे पिता हमें वह धन दे जो हमे आक्षीण आयु वाला तथा उत्तम सन्तानों वाला बनावें । वह धन कौन सा है ?, इस की चर्चा इस सूक्त के इन पन्द्रह मन्त्रों में बडे ही सुन्दर ढंग से की गयी है , जो कि इस प्रकार है : –
यज्ञ की अग्नि से घर की रक्षा होती है
हम प्रतिदिन दो काल यज्ञ करें । यज्ञ भी एसे करें कि इस के लिए आग को दो अरणियों से रगड़ कर पैदा किया जावे । इस प्रकार की अग्नि से किया गया यज्ञ , इस प्रकार की प्रशस्त अग्नि से किया गया यज्ञ घर की रक्षा करता है । इस तथ्य का वर्णन ऋग्वेद के सप्तम मंडल के प्रथम सूक्त के प्रथम मंत्र में इस प्रकार मिलता है :

अग्निंनरोदीधितिभिररण्योर्हस्तच्युतीजनयन्तप्रशस्तम्।
दूरेदृशंगृहपतिमथर्युम्॥ ऋ07.1.1

मनुष्य सदा उन्नति को ही देखना चाहता है । अवन्ती को तो कभी देखना ही नहीं चाहता । मानव सदा आगे बढना चाह्ता है । पीछे लौटने की कभी उस की इच्छा ही नही होती । वह सदा ऊपर ही ऊपर उठना चाहता है नीचे देखना वह पसंद नहीं करता । इस लिए मन्त्र भी यह उपदेश करते हुए मानव को संबोधन कर रहा है कि हे उन्नति की इच्छा रखने वाले मानव ! तू अपने को आगे बढ़ने की चाहना के साथ अपनी अभिलाषा को पूरा करने के लिए , अपने हांथों को गति दे , इन्हें सदा गतिशील रख , कार्य में व्यस्त रख, इन्हें आराम मत करने दे , निरंतर कार्यशील रह ।
१ यज्ञ से रोगाणुओं का नाश
इस प्रकार अपने हांथों को गतिशील रखते हुए , क्रियाशील रखते हुए अपनी अंगुलियों से अरनियों अथवा काष्ठविशेषो में यज्ञ अग्नि को प्रदीप्त कर , यज्ञ को आरम्भ कर । यज्ञ की उस अग्नि को प्रदीप्त कर जो प्रशस्त हो , उन्नत हो अथवा उन्नति की और ले जाने वाली हो । । यह अग्नि इतनी तेजस्वी होती है कि इस के प्रकाश मात्र से , गर्मी मात्र से यह रोग के किटाणुओं के नाश का कारण बनती है अथवा युं कह सकते हैं कि यह अग्नि अपनी तेजस्विता से हानिकारक किटाणुओ का नाश कर देती है । यज्ञ की अग्नि से रोग के कीटो का अंत होता है । अत: यह यज्ञ रोग के कृमियों के संहार का कारण होता है ।
२. यज्ञ से वर्षा
यह यज्ञ वर्षा आदि लाभ देने का भी कारण होता है । वर्षा से ही हमारी वनस्पतियां बडी होती हैं तथा हमें फल देती हैं । यदि वर्षा न हो तो हमारी खेतियां लहलहा नही सकती । जब खेती ही नही रहेगी तो हम खावेंगे क्या ? हमारे वस्त्र कहा से आवेंगे ? हमारे जीवन की आवश्यकता कैसे पूर्ण होगी ? इस लिए जब हम यज्ञ करते है तो वर्षा समय पर होती है । अत: वर्षा आदि का कारण होने से भी यज्ञ प्रशंसनीय होते हैं ।
३ यज्ञ से घर की सुरक्षा
जब कहीं पर यज्ञ हो रहा होता है तो इसे बडी दूर के लोग भी होता हुआ देख लेते हैं । क्यों ? क्योंकि इस की लपटें ऊपर को अच्छी उंचाइयों तक उठती हैं । इस कारण यज्ञग्य स्थान से दूर निवास करने वाले लोग भी इस की अग्नि को देख सकते हैं । इस प्रकार दूर के लोग भी देखते हैं कि अमुक स्थान पर यज्ञ हो रहा है , जिससे उसे यह ज्ञान होता है कि इस स्थान पर निश्चित रूप से किसी का निवास है , निवास ही नही है , वहां निवास करने वाला व्यक्ति जागृत अवस्था में है , इस लिए ही यज्ञ की अग्नि जला रखी है ,। यह सब जानते हुए वह किसी दुर्भावाना से उस घर में प्रवेश करने का साहस नहीं करता ।
४ यज्ञ से उन्नति
इस सब से स्पष्ट होता है कि यह यज्ञ घर की रक्षा करने का साधन है, जहां यज्ञ होता है वह स्थान सदा सुरक्षित रहता है । उस स्थान पर , उस घर में सदा निरोगता बनी रहती है , कोई बीमारी उस घर में नहीं आती , इससे भी वह घर सुरक्षित हो जाता है । इस सब के साथ ही साथ यह घर गति वाला भी होता है । इस घर में सदा उन्नति होती रहती है । सीधी सी बात है , जिस घर में सुरक्षित वातावरण के कारण चोर आदि आने का साहस नहीं करता, रोग का प्रवेश नहीं होता, उस घर में धन का बेकार के कार्यों में प्रयोग नहीं होता , इस कारण इस घर में जीवन रक्षा के उपाय अर्थात रोटी , कपडा आदि की आवश्यकतायें थोड़े से धन से ही पूर्ण हो जाती हैं । शेष जो धन बच जाता है , वह परिवार की समृद्धि को बढाने का कार्य करता है । इससे परिजन उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, उत्तम वस्तुओ को खरीद सकते हैं तथा दान देकर अन्य साधनहीन लोगों की सहायता कर अपना यश व कीर्ति को बढा सकते हैं , सर्वत्र सम्मानित स्थान प्राप्त कर सकते हैं ।
अत: जिस यज्ञ के मानव जीवन में इतने लाभ हैं , उस यज्ञ को तो प्रत्येक मानव को अपने परिवार में प्रतिदिन दो काल अवश्य करना चाहिए तथा यश प्राप्त करना चाहिये ।

डा.अशोक आर्य