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पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अदुल कलाम का महाप्रयाण- सत्येन्द्र सिंह आर्य

भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री अबुल पाकीर जैनुलआबद्दीन अदुल कलाम का सोमवार 27 जुलाई की शाम को शिलांग में आई आई एम में व्यायान देते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इस समाचार से सारे भारत में शोक की लहर फैल गई। वे 84 वर्ष के थे।

अक्टूबर 1931 में तमिलनाडु के छोटे से द्वीप धनुषकोडी में जन्मे अदुल कलाम विश्व भर में मिसाइलमैन के नाम से वियात हुए, यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और असाधारण पुरुषार्थ का ही सुफल था। एक अत्यन्त साधारण परिवार में जन्म लेना उनकी उन्नति के मार्ग में कभी बाधक नहीं बना। बचपन में अपने पिता को नाव बनाते देखा तो उनके मन में राकेट बनाने की बात आई। ‘‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’’ वाली कहावत उन पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद लड़ाकू विमान बनाकर आसमान छूने की इच्छा भी मन में हुई और वह पूरी हुई अग्नि और पृथ्वी जैसी मारक मिसाइलें बनाकर। अन्तर्महाद्वीपीय मारक क्षमता वाली मिसाइलें बनाने की भारत राष्ट्र की क्षमता से विश्व स्तध है। राष्ट्र की इस सामर्थ्य के पीछे हमारे इस महावैज्ञानिक अदुल कलाम का बुद्धि कौशल और तप है। भारत की वैज्ञानिक उन्नति से अमेरीका और यूरोप के सारे देश ईर्ष्या करते हैं। अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में है। अन्तरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए भारत श्री हरिकोटा केन्द्र से केवल अपने बनाए भारतीय राकेट (उपग्रह) का ही प्रक्षेपण नहीं करता बल्कि विश्व के अन्य राष्ट्रों के उपग्रह भी भेजता है और उससे करोड़ों रुपयों की विदेशी मुद्रा भी कमाता है। पूर्व महामहिम का यहाँ भी अभूतपूर्व योगदान रहा। इस क्षेत्र की तकनीक में विकसित राष्ट्र विकासोन्मुख राष्ट्रों को कोई सहयोग नहीं करते। भारत को बायोक्रोनिक इंजन की तकनीक उपलध कराने के लिए एक बार रूस सहमत हो गया था। परन्तु अमेरीकी दबाव के आगे रूस को झुकना पड़ा और भारत को वह तकनीक रूस से नहीं मिली। तथापि जहाँ अदुल कलाम जैसे प्रेरणा स्रोत वैज्ञानिक के रूप में मौजूद हों वहाँ अन्य देशों के असहयोग से कोई अन्तर नहीं पड़ता। दो वर्षों के कठोर परिश्रम के बल पर भारत ने स्वयं वह स्वदेशी इंजन बना लिया। श्री कलाम डी.आर.डी.ओ के सचिव भी रहे।

भारत को परमाणु शक्ति सपन्न राष्ट्र बनाने में कलाम साहब की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रही। पोखरण में अणुशक्ति का प्रथम परीक्षण मई 1974 में किया गया। विश्व के परमाणु शक्ति सपन्न पांचों राष्ट्रों – अमरीका, इंग्लैण्ड, चीन, फ्रांस और सोवियत यूनियन ने उस समय भारत की ओर को आँखें तरेरी। परन्तु धुन के धनी और राष्ट्र को शक्ति सपन्न बनाने के लिए कृत संकल्प अदुल कलाम और उनकी टीम ने अणुशक्ति के उच्चस्तरीय विकास के प्रयत्न जारी रखे। कलाम ढाई दशक की लबी अवधि तक परमाणु शक्ति के विकास के गोपनीय कार्य में जी जान से जुटे रहे। परमाणु बम के परीक्षण की तैयारी सन् 1995 में भी की गई थी परन्तु तब अमेरीकी उपग्रहों ने हमारी तैयारी की सूचना प्राप्त कर ली थी और विदेशी दबाव के सामने भारत की नरसिंहराव सरकार ने परमाणु परीक्षण का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। परन्तु कलाम का लगाव-जुड़ाव पोखरण के साथ परमाणु परीक्षण की तैयारी और उसके क्रियान्वयन के सिलसिले में लगातार बना रहा और  उन्हीं का कमाल था कि मई 1998 में ‘‘बुद्धा पुनः मुस्कराए’’। कलाम साहब ने प्रधानमन्त्री वाजपेयी को हॉट लाइन पर यही शद बोलकर सफल परमाणु परीक्षण की सूचना दी थी। जब इसकी आधिकारिक घोषणा हुई तो दुनिया स्तध रह गयी।

परमाणु परीक्षण -2 की गोपनीयता-वर्ष 1995 में जिन अमरीकी उपग्रहों ने भारत के परमाणु परीक्षण की तैयारियों का पता लगा लिया था, वर्ष 1998 में उन्हें भारत की तैयारियों की भनक तक नहीं लगी। यह सब कलाम का ही कमाल था। उन्होंने ही परमाणु परीक्षण दो की परिकल्पना को साकार किया था। यद्यपि 1998 में हुए परमाणु परीक्षण की तैयारी वर्षों से चल रही थी। ‘आपरेशन शक्ति’ नाम से जो कार्य होना था उसके कोड (कूट-शद) अल्फा, ब्रावो, चार्ली….आदि कलाम के अतिरिक्त किसी को पता नहीं थे। मेजर पृथ्वी राज (कलाम) के पास कमान थी। परमाणु परीक्षण के दौरान कलाम ने सारे काम को इस गोपनीयता से पूरा किया कि किसी को पता ही नहीं लग सका कि भारत इतना बड़ा धमाका करने वाला है।

भारत में मिसाइल निर्माण एवं परमाणु परीक्षण जैसे महान कार्यों में योगदान देने वाले अदुल कलाम वर्ष 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। इससे पूर्व वे वर्ष 1992 से 1999 तक प्रधानमन्त्री के मुय वैज्ञानिक सलाहकार रहे। जीवनभर जहाँ भी जिस पद पर रहे, विवादों से सदैव दूर ही रहे। उनका निधन राष्ट्र की महती क्षति है।

ज्ञान, विज्ञान एवं भारत के विकास को समर्पित पूर्व राष्ट्रपति अदुल कलाम भारत मां के ऐसे सपूत थे जिन पर राष्ट्र एवं राष्ट्रवासियों को गर्व है। वे राष्ट्रीय एवं सामाजिक मूल्यों के लिए जिए। उनकी धार्मिक आस्था उनके आदर्श इन्सान बनने के मार्ग में कभी बाधा नहीं बनी। सलमान खान और ओबेसी (हैदराबाद) की भांति वे किसी आतंकी अपराधी, देशद्रोही के बचाव का प्रयत्न करने वाले नहीं थे। करोड़ों रुपये की फीस लेकर अर्द्धरात्रि के समय उच्चतम न्यायालय में एक अघन्य हत्यारे के पक्ष में दलील देने वालों की तुलना में वे लाखों गुना अच्छे इन्सान थे, आदर्श पुरुष थे। भारत के एक पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन कीााँति उन्होंने राष्ट्रपति भवन में मस्जिद बनवाने की माँग भी सरकार से नहीं की। वे महान् भारत के वास्तविक प्रतीक, आदर्श नागरिक और सर्वाधिक सकारात्मक सोच वाले भारतीय थे। साधारण परिवार में जन्म लेकर वे अपनी प्रतिभा, परिश्रम और लगन के बल पर राष्ट्राध्यक्ष के सर्वोच्च पद पर पहुँचे। 30 जुलाई को उनके अन्तिम संस्कार के समय लाखों देशवासियों ने उन्हें अश्रुपूर्ण नेत्रों से अन्तिम विदाई दी।

युवाओं के वे सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत थे।