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भस्मासुर बनते सन्त : आचार्य धर्मवीर जी

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भारतीय परपरा में धर्म का सबन्ध शान्ति के साथ है। जहाँ धर्म है वहाँ शान्ति और सुख अनिवार्य है परन्तु आज के वातावरण में धर्म अशान्ति और परस्पर संघर्ष का पर्याय होता जा रहा है। धार्मिक स्थान पर रहने वाले लोगों को साधु, सन्त आदि शदों से पहचाना जाता था। साधु का अर्थ ही अच्छा होता है, संस्कृत भाषा में जो दूसरों के कार्यों को सिद्ध करने में अपने जीवन की सार्थकता समझता है उसे ही साधु कहते हैं। जिसका स्वभाव शान्त है वही सन्त होता है। आजकल इन शदों का अर्थ ही बदल गया है, जो स्वार्थ सिद्ध करने में लगा है वह साधु है, जो अशान्ति फैला रहा है वह सन्त है। जो जनता को मूर्ख बना रहा है वह योगी है। पुराने समय में साधु लोग जिन स्थानों पर निवास करते थे उन स्थानों को आश्रम कहा जाता था। वहाँ जाकर सबको विश्राम मिलता था। वहाँ किसी के आने-जाने पर प्रतिबन्ध नहीं होता था, उनके यहाँ मनुष्य क्या, पशु-पक्षीाी निर्भय होकर विचरते थे। उनके निवास स्थान का गर्मी-सर्दी, शारीरिक कष्ट, पशुओं के द्वारा हानि न पहुँचे इतना ही उद्देश्य था। इसके लिए उन्हें न तो बड़े-बड़े महलों की आवश्यकता थी, न सुरक्षा के लिए किले जैसे आश्रम बनाने की जरूरत, न अपनी फौज, कमाण्डो रखने का झंझट। जब वैराग्य हो गया तो किसका भय, किससे द्वेष, फिर आश्रम की ऊँची-ऊँची दीवारें किसकेाय से बनाई जायें।

आज सन्त वह है जो अशान्त हुआ घूम रहा है। ठग संन्यासी हो गया, विलासी-विरक्त कहला रहा है, यह सब क्यों हो रहा है? क्यों होने दिया जा रहा है? आज हमारे पास ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिनसे इन दुर्घटनाओं के कारणों को समझ सकते हैं। सन्त रामपाल दास चौबीसों घण्टे दूरदर्शन और समाचार-पत्रों का विषय बना हुआ है। आज तात्कालिक समस्या के समाधान के रूप में सरकार ने उसे गिरतार कर लिया परन्तु इससे समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। यह समस्या सरकार और समाज की बनाई हुई है, यदि इसके कारणों पर विचार करके उसके समूल विनाश का प्रयास नहीं किया गया तो यह समस्या प्रतिदिन खड़ी रहेगी।  केवल उसके नाम बदलते रहेंगे। कभी यह समस्या भिण्डरावाला के रूप में, कभी आसाराम बापू के रूप में, कभी राम-रहीम के रूप में, कभी रामपाल दास के रूप में। इन सन्तों में और चन्दन तस्कर वीरप्पन में भौतिक अन्तर इतना है कि एक आदमी डाकू बनकर डकैती करता है दूसरा सन्त या गुरु बनकर डकैती या ठगी करता है। एक जंगलों में छिपता है तो दूसरा नगरों में किलेनुमा महल बनाकर रहता है। एक बदनाम है और दूसरे की चरण वन्दना होती है। परिणाम दोनों का एक जैसा होता है। जब इनसे जनता का दुःख बढ़ जाता है, सरकार के अस्तित्व पर संकट आता है तब दोनों को अपराधी मानकर पुलिस, फौज, प्रशासन उनको गिरतार करने, दण्ड देने में जुट जाता है। इन दोनों के बनाने के लिए सरकार और समाज ही पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं।

रामपाल दास को सन्त किसने बनाया? समाज के समानित समझे जाने वाले लोगों ने। रामपाल दास हरियाणा सरकार की सेवा में एक जूनियर इञ्जीनियर था, गबन के कारण उसे सरकारी नौकरी से निष्कासित कर दिया गया। वह आज इतना बड़ा सन्त बन बैठा। वह अपने को कबीर का अवतार मानता है। जब दुष्ट व्यक्ति धार्मिकता का आडबर करता है तो जनता को मूर्ख बनाता है। धर्म के क्षेत्र में भक्त सन्तों को बड़ा बनाने का कार्य करते हैं। रामपाल दास कबीरदासी मठ में रहते हुए अपने दुराचरण के कारण अपनी मण्डली में निन्दा का पात्र बना, इसके एक चेले ने इसकी पोल खोलते हुए एक पुस्तक लिखी ‘शैतान बण्यो भगवान’ इस पुस्तक से क्रोधित होकर रामपाल दास ने उसे गुण्डों से पिटवाया। उसने अपनी कहानी अपने परिचितों में अपने क्षेत्र के लोगों को सुनाई। रामपाल दास की दुष्टता से गाँव के लोग  भी तंग थे, वहाँ की महिलाओं से दुर्व्यवहार की घटनाओं से ग्रामवासी उत्तेजित थे। आश्रम के पास खेती करने वालों के खेतों पर कजा करने के उसके प्रयास से वहाँ के किसान भी परेशान थे। सरकार में सन्त की पहुँच बढ़ गई थी, लोगों की सुनवाई नहीं हो रही थी, तब आचार्य बलदेव जी के नेतृत्व में ग्रामवासियों ने संघर्ष किया। सरकार को बाध्य होकर कार्यवाही करनी पड़ी। एक युवक का बलिदान भी हुआ। रामपाल दास को सरकार ने गिरतार भी किया, वह जेल में भी रहा, जमानत पर छूटा, सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसका आश्रम उसे लौटाने का निर्देश दिया। ग्रामीणों के लिए फिर संकट आ गया, रोष बढ़ता रहा, बलदेव जी के नेतृत्व में फिर संघर्ष हुआ। इसमें तीन लोगों का बलिदान हुआ। रामपाल दास से आश्रम खाली कराया गया फिर उसने वही सब हिसार के बरवाला आश्रम में करना प्रारभ किया, आज उसी घटना का अगला दृश्य जनता के सामने है।

इस घटनाचक्र में रामपाल दास ने समाचार पत्र और दूरदर्शन के माध्यम से ऋषि दयानन्द को गालियाँ देना, पुस्तकों के उद्धरण को गलत तरीके से प्रस्तुत करना, समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर आर्यसमाज और ऋषि दयानन्द की निन्दा करने का अभियान जारी रखा। आर्यसमाज ने अपने सीमित साधनों से उसका उत्तर देने का प्रयास किया परन्तु उसके साधनों के सामने यह बहुत स्वल्प था। जब मनुष्य का दुर्भाग्य आता है तो दुर्बुद्धि साथ लाता है। रामपाल दास अपने मुकद्दमे की पेशी पर जाने से बचता रहा और वह दिन आ गया जब न्यायालय ने किसी भी स्थिति में उसे गिरतार कर न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश दिया। एक सप्ताह तक पुलिस प्रयास करने पर भी उसे गिरतार करने में सफल नहीं हो सकी तब आश्रम तोड़कर, बिजली, पानी बन्द कर उसे पकड़ने का प्रयास किया और 14 दिन बाद उसे गिरतार किया जा सका।

इस घटना में विचारणीय बिन्दु है कि इसके लिए दोषी कौन है? क्या रामपाल दास दोषी है? इसका उत्तर है नहीं। क्या जनता दोषी है? इसका भी उत्तर है नहीं। फिर इसका दोषी कौन है? इसका उत्तर है सरकार, प्रशासन, पुलिस अधिकारी, राजनेता और समाज के धनी लोग इसके लिए उत्तरदायी हैं। जब समाज के लोग ऐसे व्यक्ति को माध्यम बनाकर अपने काम सिद्ध करते हैं तो वे ही लोग समाज में ऐसे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। इन बड़े सपन्न प्रतिष्ठित लोगों को इन साधुओं की पूजा करते देखते हैं तो सामान्य जनता इनके भँवरजाल में फंस जाती है। समाज में अधिकांश लोग आज भी धर्म, अधर्म, झूठ-सच इसका अन्तर करने में समर्थ नहीं है। वे तो किसी को भी इस स्थान पर सन्त की वेशभूषा में देखकर उस पर सहज विश्वास कर लेते हैं, अपना सबकुछ उसको सौंपने के लिए तैयार हो जाते हैं, यही कारण है कि इन धार्मिक ठगों के भक्तों, अनुयायियों की संया हजारों में नहीं, लाखों में पहुँच गई है। इनकी बढ़ती भीड़ लोगों को अपनी ओर इतना आकर्षित करती है कि सामान्य व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा बनकर अपने को धन्य समझ लेता है। भक्तों के धन से ये सन्त कुबेर बन जाते हैं, इनकी झोपड़ियाँ महलों में बदल जाती हैं। इनके भक्तों की भीड़ से समाज में इनका महत्त्व बढ़ता जाता है। पुलिस इनसे डरती है, सरकारी अधिकारी इनकी सेवा करते हैं, मन्त्री इनको प्रणाम करते हैं और निर्वाचन के समय इनके भक्तों के वोट प्राप्त करने के लोभ में इनके चरण छूकर आशीर्वाद लेते हैं। ऐसे में वे अपने को सर्वशक्तिमान् समझने लगें तो आश्चर्य की क्या बात है?

रामपाल दास के प्रसंग में भी यही कुछ हुआ है। रामपाल दास का बचाव पहले से सरकारी अधिकारी करते आ रहे हैं, पुलिस कमिश्नर का वक्तव्य ध्यान देने योग्य है, उन्होंने पत्रकारों से कहा कि पुलिस के दस प्रतिशत लोग रामपाल दास के प्रभाव में हैं, इसी कारण पुलिस को अपने कार्य में सफलता नहीं मिल रही। इस तथ्य की जानकारी मिलने पर कार्य-नीति बदली गई और अपरिचित पुलिस को इस कार्य में लगाया गया तब जाकर पुलिस को सफलता मिली। स्मरण रखने की बात है कि भूतपूर्व मुयमन्त्री भूपेन्द्रसिंह हुड्डा की पत्नी रामपाल दास के ट्रस्ट की ट्रस्टी है, यह भी समाचार पत्रों में आ चुका है। मनोहर लाल खट्टर नये मुयमन्त्री हैं, उन्हें प्रशासन को निर्देशित करने में कठिनाई है। यह स्वाभाविक है परन्तु मुयमन्त्री स्वयं रोहतक के रहने वाले हैं, अतः यह समझना चाहिए कि वे रामपाल दास और उसके साथ घटी घटनाओं से भलीभांति परिचित हैं फिर भी इस घटनाक्रम में लोगों को ऐसा लगा कि सरकार जानबूझकर कार्यवाही करने से बचना चाहती है। आलोचकों और पत्रकारों की दृष्टि में ऐसी सोच का ठोस कारण है, खट्टर सरकार ने रामपाल दास से चुनाव में उसका समर्थन माँगा था और भक्तों से भाजपा को मत देने की माँग की गई थी।

राजनीति में एक-एक मत का और मतदाता का मूल्य होता है। मतदाता मतदाता है, वह चोर है, डाकू है, सन्त है, दादा है, जिसके साथ जितने मत जुड़े हैं वह उतना ही महत्त्वपूर्ण है। ऐसी परिस्थिति में राजनेता भूल जाते हैं कि वह कौन है, उन्हें तो बस मतदाता की चरण-वन्दना करनी होती है। रामपाल दास के साथ-साथ भाजपा ने राम-रहीम बाबा का चुनाव में समर्थन लिया। उसके भक्तों के मत ही भाजपा को विजयी बनाने में समर्थ हुए, पिछले दिनों एक बड़े कांग्रेसी नेता ने स्वीकार किया कि कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण, राम रहीम बाबा का भाजपा को समर्थन देना है। इस का समर्थन, कांग्रेस को भी चाहिए, चौटाला को भी चाहिए, फिर राजनीति में रहना है तो भाजपा कैसे पीछे रह सकती है। बाबा राम रहीम के समर्थन का धन्यवाद मनोहर लाल खट्टर ने अपने मन्त्रीमण्डल के सहयोगियों के साथ बाबा के आश्रम में पहुँचकर चरण-वन्दना करके किया। ध्यान देने की बात है कि बाबा राम रहीम रामपाल दास से बड़ा बाबा है, उसके आश्रम में होने वाले अवैध कार्यों की जाँच पड़ताल करने का साहस पहली सरकारों मेंाी नहीं था वर्तमान सरकार में भी नहीं है। वहाँ पत्रकार की हत्या का प्रसंग बहुत चर्चित रहा है, समय-समय पर आलोचनायें होती हैं। सरकारें अपने स्वार्थ और दुर्बलता के कारण सार्थक कार्यवाही करने में समर्थ नहीं हो सकी हैं। जो भी कार्यवाही देखने में आई वे न्यायालय द्वारा की गई है। अभी बाबा राम रहीम के डेरे का एक वाद न्यायालय में लबित है। बाबा ने अपने अन्तरंग कार्यकर्त्ताओं को बड़ी संया में बलपूर्वक नपुंसक बना दिया जिससे अन्तरंग कार्यों में उनसे कोई बाधा नहीं पहुँचे। न्यायालय इस बात की जाँच कर रहा है। सरकार में यह साहस नहीं है कि आश्रम के विषय में आई शिकायतों की जाँच कर कार्यवाही कर सके।

बाबा लोग अपने कार्यक्रमों में राजनेताओं को बुलाकर अपना प्रभाव प्रदर्शित करते हैं और राजनेता उनके कार्यक्रमों में जाकर आशीर्वाद लेते हैं। इन बाबाओं में कई तो निपट मूर्ख होते हैं और इन बाबाओं के भक्तों कीाीड़ में बड़े शिक्षाविद्, प्रशासक, राजनेता हाथ बांधे पंक्ति में खड़े रहते हैं। कुछ वर्ष पहले शेखावत मुयमन्त्री थे, आसाराम का जयपुर में कार्यक्रम था, आसाराम ने अनेक स्थानों से सिफारिश दबाव डालकर मुयमन्त्री को अपने कार्यक्रम में बुलाया था।

राजनेताओं को भीड़ ऐसे लुभाती है जैसे ठेका शराबियों को। फिर कौन, किसे दोष दे? आसाराम ने आश्रम बनाये, भूमि पर अवैध कजे किये, महिलाओं का शोषण किया, भक्तों के धन से धनपति बन बैठा, प्रायः करके हर बाबा-सन्त की यही कहानी है।

भिण्डरावाला की कहानी से इस देश के नेताओं ने कोई शिक्षा नहीं ली। इन्दिरा गाँधी ने उसे अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए आगे किया था परन्तु भारत सरकार के लिए वह कितना बड़ा सिरदर्द बना और इन्दिरा गाँधी की हत्या का कारण बना। आजकल एक नहीं दर्जनों सन्त इसी कार्य में लगे हुए हैं, ये पाखण्ड फैलाकर जनता के विश्वास को दिन-रात लूटने में लगे हुए हैं। मोदी की जन-धन योजना तो सफल हो या न हो पर इन पाखण्डियों की जन-धन योजना शत-प्रतिशत सफल है। एक निर्मल बाबा, हरी-लाल चटनी खिलाकर लोगों का भाग्य बदल रहा है। कुमार स्वामी ब्रह्मर्षि बनकर बीज-मन्त्र दे रहा है और ऐसे लोगों को इन राजनेताओं से खूब सहयोग और समर्थन मिलता है। दक्षिण का सोना स्वामी हो या नित्यानन्द स्वामी, सभी लोग जनता को मूर्ख बनाकर लूटते हैं और कामिनी काञ्चन के स्वामी बनते हैं, अपनी प्रवृत्तियों का स्वामित्व तो इन्हें न मिला और न ही मिलेगा।

इन सारी घटनाओं को देखने से एक बात साफ होती है कि जनता को समझदार और जागरूक किये बिना इसका सुधार सभव नहीं है। आर्यसमाज इन्हीं लोगों की ऐसी बातों का खण्डन करता है तो नासमझ लोग कहते हैं सभी को अपनी आस्था चुनने का अधिकार है, सबको अपने विचारों का प्रचार करने की स्वतन्त्रता है परन्तु आर्यसमाज भी तो विचार ही दे रहा है। क्या गलत बातों से सावधान करना, विचार का प्रचार करना नहीं है? क्योंकि गलत विचारों के निराकरण के बिना सद्विचारों को स्थान नहीं मिल सकता। रामपाल दास के दुष्कृत्यों के विरोध में आर्यसमाज ने आवाज उठाई, आन्दोलन किया, आज उसी का परिणाम है कि रामपाल दास का यथार्थ रूप जनता के सामने आ सका।

इस घटनाक्रम में बाबा की ओर से गोलीबारी में पुलिस वाले और कुछ लोग घायल हुए परन्तु पुलिस को गोली नहीं चलानी पड़ी। रामपाल दास को पुलिस ने गिरतार किया या रामपाल दास ने समर्पण किया यह तो प्रशासन और सरकार की नीयत को बतायेगा। परन्तु एक दुर्घटना का अन्त हुआ। पुलिस को बधाई, ईश्वर का धन्यवाद। इस घटनाक्रम पर पञ्चतन्त्र की पंक्ति सटीक लगती है-

प्रथमस्तावदहं मूर्खो द्वितीयः पाशबन्धकः।

ततो राजा च मन्त्री च सर्वं वै मूर्खमण्डलम्।।

– धर्मवीर