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Beef ban strengthens secularism by Yash Arya

http://www.bbc.com/news/world-asia-india-32172768

Mr Justin Rowlatt argues that beef ban endangers secularism. He cites the following reasons:

1. The Hindu majority – 80% of the country’s 1.2 billion people – regard cows as divine; the 180 million-strong Muslim minority see them as a tasty meal.

2. Secularism in India means something a little different from elsewhere. It doesn’t mean the state stays out of religion, here it means the state is committed to supporting different religions equally.

3. India’s secularism was a response to horrors of the partition when millions of people were murdered as Hindus and Muslims fled their homes. The country’s first prime minister, Jawaharlal Nehru, argued equal treatment was a reasonable concession to the millions of Muslims who’d decided to risk all by staying in India.

4. India’s triumph has been forging a nation in which Hindus and Muslims can live happily together. The fear is that the beef ban is part of a process that is gradually undermining the compromises that made that possible.

My anwer is as follows.

a1. U have not cited any evidence from the quran along with the authentic tafseer as to how beef ban is anti-islam.

a2. The state is right in supporting the beef ban till u answer a1 above.

a3. The horrors of partition were engineered by the British Imperialists and their Jesuit teachers. They experimented with it during the bengal partition and perfected it in 1947. Just look at Korea, Ottoman empire, etc for the records of european catholic brand imperialism.

a4. The mughal king Babar does not agree with your insinuation that ‘The fear is that the beef ban is part of a process that is gradually undermining the compromises that made that possible.’ Read what ur own website says:
“His [Mughal King Babar] first act after conquering Delhi was to forbid the killing of cows because that was offensive to Hindus.” [http://www.bbc.co.uk/religion/religions/islam/history/mughalempire_1.shtml]

Mr Rowlatt further says that :

Unfortunately for India’s buffaloes, they aren’t regarded as close enough to God to deserve protection. Buffalo is banned in just one of the country’s 29 states. [ I am for banning the slaughter of buffaloes too. Why dont u join PETA and espouse their cause].

There is an economic issue here.

Beef is significantly cheaper than chicken and fish and is part of the staple diet for many Muslims, tribal people and dalits – the low caste Indians who used to be called untouchables. It is also the basis of a vast industry which employs or contributes to the employment of millions of people.

A: People can be employed in areas where they dont have to murder animals. Whenn u murder animals, the habit carries on with u and u find it easy to murder humn beings too.

http://en.wikipedia.org/wiki/St._Bartholomew%27s_Day_massacre

http://www.gutenberg.org/ebooks/20321

–And yes we had untouchability. U have slaveryhttp://www.religioustolerance.org/sla_bibl3.htm

— The fact is that the european settlers are committing genocide on the native american people. And one of the methods employed to decimate the population of the red indians was destruction of cattle [http://indiancountrytodaymedianetwork.com/2011/05/09/genocide-other-means-us-army-slaughtered-buffalo-plains-indian-wars-30798%5D . In India the british imperialists used muslims to do this job.

In this video one can see how a living non-milk producing cow is more beneficial to the Indians than a dead cow’s meat. And how the mouthpiece of the urea/pesticide corporates r trying to mislead the populations. This misinformation and the urea/pesticide/bank-credit causes the farmer suicides.

Again, we can produce electricity using animal power and stop paying the germans for solar cells.

onclusion:

Why should we killl our animals so that the west is able to eat cheap meat ?

Secularism will be strengthened by the beef ban since murders will be reduced on our land. Ahimsa paramo dharma….

We will work towards import substitution to reduce our dependence on the west. That will give more jobs to the indians.

 

author may be reached at https://yasharya.wordpress.com/

you may read another article related to ban on  beef on the below links

http://www.aryamantavya.in/beef-eating-in-ancient-time/

http://www.aryamantavya.in/whether-beef-was-allowed-in-vedic-time/

you may visit out different websites for more information

http://satyarthprakash.in/

http://onlineved.com/

प्राचीन काल में हिन्दू गौ मांस खाते थे – BBC का खंडन यश आर्य

भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर अच्छे शोधकर्ता भी थे. उन्होंने गोमांस खाने के संबंध में एक निबंध लिखा था, ‘क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?’

यह निबंध उनकी किताब, ‘अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?’ में है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम ने इस निबंध को संपादित कर इसके कुछ हिस्से बीबीसी हिंदी के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं.

‘पवित्र है इसलिए खाओ’

अपने इस लेख में अंबेडकर हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) की श्रेणी में रखा है.

अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.

उनके मुताबिक, “गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए.” (मराठी में धर्म शास्त्र विचार, पृष्ठ-180).

अंबेडकर ने लिखा है, “ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है.”

ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, “उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए’. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था.”

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ये झूठ है । देखो

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download the original from here

http://www.aryamantavya.in/rigveda-7-7-harisharan-siddhantalankar/
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‘अतिथि यानि गाय का हत्यारा’

अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है जिनमें बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.

अंबेडकर ने लिखा “तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए.”
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माध्यंदिनी सन्हिता ही यजुर्वेद है । तैत्तिरीय  वेद  नहीं है ।
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वो लिखते हैं, “विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि.”

“तैत्रीय ब्राह्मण में एक और बलि का उल्लेख है जिसे पंचस्रदीय-सेवा बताया गया है. इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, पांच साल के बगैर कूबड़ वाले 17 बौने बैलों का बलिदान और जितनी चाहें उतनी तीन साल की बौनी बछियों का बलिदान.”

अंबेडकर ने जिन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है उनके अनुसार मधुपर्क नाम का एक व्यंजन इन लोगों को अवश्य दिया जाना चाहिए- (1) ऋत्विज या बलि देने वाले ब्राह्मण (2) आचार्य-शिक्षक (3) दूल्हे (4) राजा (5) स्नातक और (6) मेज़बान को प्रिय कोई भी व्यक्ति.

कुछ लोग इस सूची में अतिथि को भी जोड़ते हैं.

मधुपर्क में “मांस, और वह भी गाय के मांस होता था. मेहमानों के लिए गाय को मारा जाना इस हद तक बढ़ गया था कि मेहमानों को ‘गोघ्न’ कहा जाने लगा था, जिसका अर्थ है गाय का हत्यारा.”

‘सब खाते थे गोमांस’

इस शोध के आधार पर अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ़ है.

अंबेडकर ने लिखा है, “कुतादंत सुत्त से एक रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है जिसमें गौतम बुद्ध एक ब्राह्मण कुतादंत से जानवरों की बलि न देने की प्रार्थना करते हैं.”

अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है.

संयुक्त निकाय में लिखा है, “पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया.”

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यहाँ  बौद्ध लोगों ने वाम मार्गी लोगों की चर्चा की  है। सच्चे  ब्राह्मणों की नहीं  ।

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अंत में अंबेडकर लिखते हैं, “इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे.”

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अ‍ॅम्बेद्कर और  B B C  और   दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम  और  गो मांस भक्षक हिंदुओं का मत असत्य है ।

You may reach the writer on https://yasharya.wordpress.com