स्वस्थ सुखी जीवन के कुछ रहस्य – डॉ. सुशीलरत्न मिगलानी

सांस लें     – भरपूर गहरा

प्रार्थना करें  – प्रातः सांय दोनों समय, ओ3म् का उच्चारण करें, गायत्री गान करें। थोड़ी देर के लिए श्रद्धा-भक्ति पूर्वक प्रभु का ध्यान करें।

व्यायाम करें प्रतिदिन योगासन, प्राणायाम, प्रातः कालीन सैर।

भोजन      – (हिताुक्, ऋतभुक्, मितभुक्)

स्वास्थ्यवर्द्धक मौसम के अनुसार,

भूख से थोडा कम आहार चबा-चबा कर खाएँ।

स्वाध्याय   – प्रतिदिन वेदशास्त्रों में से आध्यात्मिक विचार, महापुरुषों की जीवनी पढ़ने के लिए थोड़ा समय जरूर निकालें। प्रतिदिन अपना अध्ययन करें यानि अपने आप को परखें व सुधारें।

नींद       – पूरी लें।

वार्ता       – सत्य, मधुर, हितकर एवं अल्प। पहले बात को तोलो फिर मुँह से बोलो।

सदाचार    – अपने चरित्र की रक्षा करें। धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, अगर चरित्र गया तो सब कुछ गया।

पहनावा    – साफ सुथरा, शालीन एवं चुस्त।

सोच विचार – आस्तिक एवं सकारात्मक ।

कार्य       – रोजाना एक शुभ कार्य अवश्य करें। अपने सभी कार्य योजनाबद्ध एवं शान्त स्वभाव से करें। समय नष्ट करना जीवन नष्ट करने के समान है।

परिवार में   – स्वर्ग की तरह प्रेमपूर्ण शान्त वातावरण बनाकर रहें। मनमुटाव होने पर चिल्लाएँ नहीं, मैत्रीभाव से शीघ्र ही समाधान निकाल लें। दिन में दो मिनट के लिए बजुर्गों के पास बैठकर प्यार से उनसे बातचीत करें। बजुर्ग लोग भी परिवार सदस्यों का उचित मार्गदर्शन करें। सारा परिवार मिलकर प्रतिदिन इक्कठे प्रभु-प्रार्थना करें या प्रभु-भजन गाएँ। किसी से भी गलती हो जाने पर नुक्ताचीन न करें, अकेले में प्यार से समझा दें। परिवार से बढ़कर दुनिया का कोई सबन्ध नहीं।

कमाई करें  – ईमानदारी से।

खर्चा करें   – सोच समझकर

बचत      – अवश्य करें

त्यागते जाएँ – बुरे विचार, बुरी संगति। दुर्जनों को गिराएँ।

अपनाते जाएँ  – अच्छे विचार, अच्छी संगति। सज्जनों को बढाएँ।

कर्तव्य कर्म – निर्भय होकर करें। कर्तव्य ना करना अधर्म को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है।

जीवन में   – सादा जीवन, उच्च विचार रखें। सदा मुस्कराते रहें।

एकाग्रता    – अपने लक्ष्य की ओर सुमार्ग पर एकाग्र रहें।

विश्वास    – दूसरों पर सभल कर विश्वास रखें। अपने में भरपूर विश्वास रखें कि आप जो चाहे प्राप्त कर सकते हैं ।

सहायता    – जरुरतमन्द सुपात्रों की तन-मन-धन से सहायता करें।

व्यवहार    – दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करें जैसा कि आप चाहते हैं कि दूसरे आपके साथ करें। माता-पिता, आचार्य, विद्वान् एवं बड़ों के साथ समान भाव से, छोटों के साथ स्नेह भाव से, अपने अधीन यानि नौकरों के साथ दयाभाव से, उन्नति करने वालों के साथ मैत्री भाव से व्यवहार करें।

बढ़ते जाना     – राग-द्वेष से बचते हुए प्रेमभावना से सबके साथ मिलकर प्रसन्नता पूर्वक प्रभु भक्ति व देश शक्ति की दिशा में।

 

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