शूद्र वर्ण में शूद्र जातियों का उल्लेख नहीं: डॉ सुरेन्द्र कुमार

मनुस्मति में वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति के प्रसंग में केवल चार वर्णों के निर्माण का कथन है और उनके कर्त्तव्यों का निर्धारण है। किसी भी वर्ण में किसी जाति का उल्लेख नहीं है (1.31.87-91)। यही तर्क यह संकेत देता है कि मनु ने किसी जातिविशेष को शूद्र नहीं कहा है और न किसी जातिविशेष को ब्राह्मण कहा है। आज के शूद्र जातीय लोगों ने मनूक्त ‘शूद्र’ नाम को बलात् अपने पर थोप लिया है। मनु ने उनकी जातियों को कहीं शूद्र नहीं कहा।

परवर्ती समाज और व्यवस्थाकारों ने समय-समय पर शूद्र संज्ञा देकर कुछ वर्णों और जातियों को शूद्रवर्ग में समिलित कर दिया। कुछ लोग भ्रान्तिवश इसकी जिमेदारी मनु पर थोप रहे हैं। विकृत व्यवस्थाओं का दोषी तो है परवर्ती समाज, किन्तु उसका अपयश मनु को दिया जा रहा है। न्याय की मांग करने वाले दलित और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों का यह कैसा न्याय है? जब मनु ने वर्णव्यवस्था के निर्धारण में उनकी जातियों का उल्लेख ही नहीं किया है तो वे निराधार क्यों कहते हैं कि मनु ने उनको ‘शूद्र’ कहा है?

वास्तविकता यह है कि मनु के समय जातियां थीं ही नहीं। मनु स्वायंभुव का काल मानवों की सृष्टि का लगभग आदिकाल है। तब केवल कर्म पर आधारित ‘वर्ण’ थे, जाति को कोई जानता ही नहीं था। यदि जातियां होतीं तो मनु यह अवश्य लिखते कि अमुक जातियां शूद्र हैं। किन्तु मनु ने किसी जाति का नाम लेकर नहीं कहा कि यह शूद्रवर्ण की है। दशम अध्याय में अप्रासंगिक रूप से कुछ जातियों की गणना स्पष्टतः बाद की मिलावट है।

डॉ0 अम्बेडकर र ने स्वयं स्वीकार किया है कि भारत में जातियों का उद्भव बौद्धकाल से कुछ पूर्व हुआ था और जन्मना जाति व्यवस्था में कठोरता व व्यापकता पुष्पमित्र शुङ्ग (लगभग 185 ईस्वी पूर्व) के काल में आयी थी। मूल मनुस्मृति की रचना आदिकाल में हो चुकी थी अतः उसमें जातियों का उल्लेख या गणना संभव ही नहीं थी। इस कारण मनुस्मृति जातिवादी शास्त्र नहीं है। जातिवादी शास्त्र न होने से उसमें शूद्रों के प्रति असमान और भेदभाव भी नहीं है।

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