सांई बाबा मत 2

सांई बाबा मत

– सत्येन्द्र सिंह आर्य

पिछले अंक का शेष भाग….

सांई मत ने इस प्रकार पतंजलि मुनि के योग दर्शन को तो अप्रासंगिक ही बता दिया। सांई की आत्मश्लाघा देखिए-

‘‘केवल सांई-सांई के उच्चारण मात्र से ही उनके (भक्तों के) समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे।’’

‘‘जो भक्तगण हृदय और प्राणों से मुझे चाहते हैं, उन्हें मेरी कथाएँ श्रवण कर स्वभावतः प्रसन्नता होगी। विश्वास रखो कि जो कोई मेरी लीलाओं का कीर्तन करेगा, उसे परमानन्द और चिरसन्तोष की उपलब्धि हो जाएगी। यह मेरा वैशिष्ट्य है कि जो कोई अनन्य भाव से मेरी शरण आता है, जो श्रद्धापूर्वक मेरा पूजन, निरन्तर स्मरण और मेरा ही ध्यान किया करता है, उसको मैं मुक्ति प्रदान कर देता हूँ।’’

ऐसे मुक्ति प्रदाता सांई बाबा के चरित्र पर कुछ विशेष विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया। जो कुछ कहा गया है वह बिना चमत्कार वाली चर्चा के नहीं है। सांई अनपढ थे और चिलम (धूम्रपान) पीते थे। एक घटना इस प्रकार है-चाँद पाटिल नाम के किसी व्यक्ति की घोड़ी खो गईथी। उसने सांई से इस सम्बन्ध में पूछा तो फकीर (सांईबाबा) बोले, ‘‘थोड़ा नाले की ओर भी तो ढूँढ़ो।’’ चाँद पाटिल नाले के समीप गए तो अपनी घोड़ी को वहाँ चरते देखकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि फकीर कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, वरन् कोई उच्च कोटि का मानव दिखाई पड़ता है। घोड़ी को साथ लेकर जब वे फकीर के पास लौटकर आए तब तक चिलम भरकर तैयार हो चुकी थी। केवल दो वस्तुओं की और आवश्यकता रह गयी थी। एक तो, चिलम सुलगाने के लिए अग्नि और दूसरा साफी (कपड़े का छोटा-सा टुकड़ा जिसको चिलम के नीचे लगाकर धूम्रपान किया जाता है) को गीला करने के लिए जल। फकीर (सांई बाबा) ने अपना चिमटा भूमि में घुसेड़कर ऊपर खींचा तो उसके साथ ही एक प्रज्जवलित अंगारा बाहर निकला और वह अंगारा चिलम पर रखा गया। फिर फकीर ने सटके से ज्यों ही बलपूर्वक जमीन पर प्रहार किया, त्यों ही वहाँ से पानी निकलने लगा और उसने साफी को भिगोकर चिलम से लपेट लिया। इस प्रकार सब प्रबन्ध कर फकीर ने चिलम पी और तत्पश्चात् चाँद पाटील को भी दी।

एक साधारण सी बात है कि फकीर चिलम पीता था। उसके वर्णन के लिए भी दो चमत्कार (जो कि सृष्टिक्रम के विरुद्ध हैं) जोड़ दिये। ‘श्री सांई सच्चरित्र’ नाम की इस ३०४ पृष्ठों वाली पुस्तक में सैकड़ों चमत्कारों का उल्लेख है। जिस भी व्यक्ति या घटना की चर्चा है, वह केवल चमत्कारों के सहारे सांई का महिमामण्डन करना, उसे त्रिकालज्ञ एवं दुःखहर्ता सिद्ध करना है। एक उदाहरण देखिए।

श्री बालाराम धुरन्धर नाम के एक व्यक्ति मुम्बई से चलकर शिरडी में सांई बाबा से मिलने के लिए आए। यहाँ शिरडी में उनके पहुँचने से पूर्व ही बाबा  ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि ‘‘आज मेरे बहुत से दरबारीगण आ रहे हैं।’’ अन्य लोगों द्वारा बाबा के उपरोक्त वचन सुनकर धुरन्धर परिवार को महान् आश्चर्य हुआ उन्होंने अपनी यात्रा के सम्बन्ध में किसी को भी इसकी पहले से सूचना नहीं दी थी। सभी ने आकर उन्हें प्रणाम किया और बैठकर वार्तालाप करने लगे। बाबा ने अन्य लोगों को बतलाया कि ‘‘ये मेरे दरबारी गण हैं, जिनके सम्बन्ध में मैंने तुमसे पहले कहा था।’’ फिर धुरन्धर भ्राताओं से बोले, ‘‘मेरा और तुम्हारा परिचय ६० जन्म पुराना है।’’ मुसलमान तो पूर्व जन्म, पुनर्जन्म को मानते नहीं, ऊपर से ६० जन्मों के सम्बन्ध के स्मरण की बात तो निरी बकवास ही है।

भोजन और थोड़ा विश्राम करके जब वे लोग पुनः मस्जिद में आए और आकर बाबा के पैर दबाने लगे। ‘‘इस समय बाबा चिलम पी रहे थे। उन्होंने बालाराम को भी चिलम देकर एक फूँक लगाने का आग्रह किया। यद्यपि अभी तक उन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया था, फिर भी चिलम हाथ में लेकर बड़ी कठिनाई से उन्होंने एक फूंक लगाई और आदरपूर्वक बाबा को लौटा दी। बालाराम के लिए तो यह अनमोल घड़ी थी। वे ६ वर्षों से श्वास रोग से पीड़ित थे, पर चिलम पीते ही वे रोगमुक्त हो गए।’’

बाबा के चिलम पीने के दुर्गुण को दुर्गुण न बताकर उसको भी रोग-मुक्त करने का एक चमत्कार घोषित कर दिया।

जल से दीपक जलाने का एक और चमत्कार-‘‘बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था। वे सन्ध्या समय दुकानदारों से भिक्षा में तेल माँग लेते थे तथा दीपमालाओं से मस्जिद को सजाकर, रात्रिभर दीपक जलाया करते थे। यह क्रम कुछ दिनों तक ठीक इसी प्रकार चलता रहा। अब बनिए तंग आ गए और उन्होंने संगठित होकर निश्चय किया कि आज कोई उन्हें तेल की भिक्षा न दे। नित्य नियमानुसार जब बाबा तेल माँगने पहुँचे, तो प्रत्येक स्थान पर उनका नकारात्मक उत्तर से स्वागत हुआ। किसी से कुछ कहे बिना बाबा मस्जिद की ओर लौट आए और सूखी बत्तियाँ दीयों में डाल दी। बनिये तो बड़े उत्सुक होकर उन पर दृष्टि जमाये हुए थे। बाबा ने टमरेल उठाया जिसमें बिल्कुल थोड़ा-सा तेल था। उन्होंने उसे पुनः टीनपाट में उगल दिया और वही तेलिया पानी दीयों मे डालकर उन्हें जला दिया।’’

तेल के बजाये पानी से दीये जलाने के साँई बाबा के तथाकथित चमत्कार का भण्डाफोड़ २२-१०-२०१४ को टी.वी. के चैनल (न्यूज २४) पर शाम के साढ़े चार बजे पौराणिक सन्तों ने किया। उन्होंने तेल मिश्रित बाती दीये में रखी और उसमें  पानी भर लिया और दीया जला दिया। जितनी देर बाती में तेल का अंश है, उतनी देर तो दीया (उसमें पानी भरा होने पर भी) जलेगा ही। शंकराचार्य जी के समर्थक इन सन्तों ने कहा कि कि वे सांई-बाबा के सब चमत्कारों की पोल खोलेंगे।

सांई के व्यक्तित्व का यह विवरण इस पुस्तक में मिलता है-‘‘बाबा दिन भर अपने भक्तों से घिरे रहते और रात्रि में जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में शयन करते थे। इस समय बाबा के पास कुल सामग्री-चिलम, तम्बाकू, एक टमरेल, एक लम्बी कफनी, सिर के चारों ओर लपेटने का कपड़ा ओर एक सटका था जिसे वे सदा अपने पास रखते थे। सिर पर सफेद कपड़े का एक टुकड़ा वे सदा इस प्रकार बाँधते थे, कि उसका एक छोर बाएँ कान पर से पीठ पर गिरता हुआ ऐसा प्रतीत होता था, मानों बालों का जूड़ा हो। हफ्तों तक वे इसे स्वच्छ नहीं करते थे। पैर में कोई जूता या चप्पल भी नहीं पहनते थे। केवल एक टाट का टुकड़ा ही अधिकांश दिन में उनके आसन का काम देता था। सर्दी से बचने के लिए वे धूनी (लकड़ी जलाकर आग) से तपते थे।’’ सांई बाबा की मृत्यु सन् १९१८ में हुई और उसके बाद तो सांई मन्दिरों में चढ़ावे का अम्बार बढ़ता ही गया। केवल अंध-श्रद्धा पर ही यह मत पुष्पित-पल्लवित होता गया एवं हो रहा है। मानवोपयोगी किसी सिद्धान्त या नियम से इस पंथ का कुछ भी सरोकार नहीं है। और इनके तथाकथित चमत्कारों की पोल पट्टी इनके के ही पौराणिक बन्धु सार्वजनिक रूप से कर रहे हैं। अन्य किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।

पुट्टुपर्थी वाले श्री सत्य सांई बाबा मत का गोरख धन्धा भी शिरडी वाले बाबा के चमत्कार वाले बखानों से कुछ अलग नहीं है। अज्ञानान्धकार में जकड़े हिन्दू समाज में ताबीज, कण्ठी, झाड़-फूँंक और भभूत का भ्रमजाल चरम पर है। सत्य सांई बाबा सारी उम्र हवा में से भभूत (राख) पैदा करने का दावा करते रहे। उनके कई भक्त तो उनके चित्र में से भी भभूत निकलने का दावा करते थे। यह गनीमत रही कि उनके शव में से भभूत नहीं निकली। ये लोग भभूत को चमत्कारी दवा बताते थे, परन्तु विरोधाभास देखिए कि जो बाबा भभूत से रोग ठीक करने का उपक्रम करता था, उसी ने पुट्टुपर्थ्ीा में ५०० करोड़ की लागत से एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल भी स्थापित किया। जब भभूत से ही रोग ठीक हो रहे थे, तो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की स्थापना करने का औचित्य समझ से परे है, पर सत्यानारायण राजू उर्फ सत्य-सांई बाबा को पता था कि राख से कुछ होना जाना नहीं है। इसीलिए ८६ वर्ष की आयु में जब उनके गुरदे, लिवर, फेफड़े आदि जवाब देने लगे, तो बाबा को भी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में ही भर्ती कराया गया, राख का सहारा नहीं लिया गया। सच्चाई सिर चढ़कर बोली।

वैदिक वाङ्मय में एवं रामायण, महाभारत जैसे इतिहास ग्रन्थों में कहीं भी भभूत (राख) का किसी औषधि या आशीर्वाद के रूप में उल्लेख का प्रश्न ही नहीं है। यह भ्रमपूर्ण अवधारणा उन नाथों, सिद्धों, तथाकथित योगियों के सम्प्रदायों से उत्पन्न हुई है जिनका शास्त्र सम्मत प्रामाणिक वैदिक धर्म (हिन्दू धर्म) में कोई स्थान नहीं है। ये लोग आबादी से दूर निर्जन स्थानों में वनों में आग जलाकर (जिसे उनकी भाषा में धूनी लगाना कहा जाता था) बैठते थे और किसी नाम या तथाकथित मन्त्र का जाप करते थे। यही उनका तप था। धीरे-धीरे उन लोगो ने उदरपूर्ति के लिए यह प्रचार शुरु कर दिया कि उनके मन्त्र-जाप से वह धूनी (अग्नि) अलौकिक शक्ति सम्पन्न हो जाती है, जिसके पास बैठकर वे जप करते हैं, और उसकी राख भी। कई फकीरों ने उसी राख से मस्तक पर तिलक लगाना आरम्भ कर दिया, उसी को शरीर पर लगाना आरम्भ कर दिया । यही बाद में आशीर्वाद के तौर पर और रोगोपचार के लिए दवा के रूप में बाँटी जाने लगी। यही राख सत्य सांई बाबा का मुख्य चमत्कार बन गयी। उनके शिष्य जाने-अनजाने में इतने भ्रमित हुए कि मरे हुए बाबा के लिए भी कहते रहे कि बाबा समाधि लगाए हैं। बड़े नाटकीय ऊहापोह के पश्चात् उनके शव का अन्तिम संस्कार किया जा सका।

भभूतवादियों ने यह प्रचार बड़े जोर शोर से किया कि जो इस भभूत (भस्म) को धारण करता है, उससे तो मृत्यु भी डरती है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने कहा है- ‘‘जब रुद्राक्ष भस्म धारण करने से यमराज के दूर डरते हैं, तो पुलिस के सिपाही भी डरते होंगे? जब रुद्राक्ष भस्म धारण करने से कुत्ता, सर्प, सिंह, बिच्छु, मच्छर और मक्खी आदि भी नहीं डरते तो न्यायाधीश (यमराज) के गण क्यों डरेगे?’’ सत्यार्थ प्रकाश -एकादश समुल्लास

सांई बाबाओं की आध्यात्मिक शक्ति का शोर मात्र छल कपट और हाथ की सफाई के अलावा कुछ नहीं था। चमत्कारों के सहारे उन्होंने भोली भाली, ज्ञान-शून्य जनता को ठगा और उनके कर्त्ताधर्त्ता अब भी ठग रहे हैं। कोई तर्क संगत, बुद्धिगम्य और मानवोपयोगी, विज्ञान-परक सिद्धान्त इन्होंने प्रतिपादित नहीं किया। चमत्कारों का प्रोपैगेण्डा, ढौग, छल-कपट, सांई का महिमा मण्डन अवतारीकरण, ईश्वरीकरण ही इस मत का सर्वस्व है।

सन्दर्भ पुस्तकें

१. श्री सत्य सांई बाब का कच्चा चिट्ठा

२. श्री सांई सच्चरित्र

३. अवतार गाथा

४. सरिता पाक्षिक पत्रिका का अगस्त २०१४ (द्वितीय) अंक

५. सद्गृहस्थ सन्त-भक्त रामशरण दास

– ७५१/६, जागृति विहार, मेरठ, (उ.प्र.)

 

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