पेरियार रचित सच्ची रामायण की पोलखोल भाग-१४

पेरियार रचित सच्ची रामायण की पोलखोल भाग-१४*
*अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
*-कार्तिक अय्यर*
नमस्ते मित्रों! पेरियार साहब के खंडन के १४वें भाग में आपका स्वागत है।आगे दशरथ नामक लेख के ६वें बिंदु के आगे जवाब दिया जायेगा।
*आक्षेप-६* राम की मां कौसल्या भी अपने देवी-देवता को मनाया करती थी कि मेरे पुत्र राम को राजगद्दी मिले।
*समीक्षा*- हम चकित हैं कि पेरियार साहब कैसे बेहूदे आक्षेप लगा रहे हैं!श्रीराम की मां देवी कौसल्या काल्पनिक देवी देवताओं से नहीं,परमदेव परमेश्वर की पूजा करती थीं।वे परमदेव परमात्मा से प्रार्थना करती थीं कि श्रीराम राजा बने तो इसमें हर्ज क्या है?कोई भी मां अपने पुत्र का हित ही चाहेगी।केवल मां ही नहीं,अपितु महाराज दशरथ, समस्त प्रजा और राजा आदि सब चाहते थे कि श्रीराम राजा बनें।इसमें भला आक्षेप योग्य कौन सी बात है?आक्षेप तो तब होता जब देवी कौसल्या भरत के अहित के लिये परमात्मा से प्रार्थना करतीं।परंतु उनका चरित्र ऐसा न था।
*आक्षेप ७*- पुरोहितों और पंडितों को सूचना तथा उनके परामर्श के बिना और कैकेयी, भरत,शत्रुघ्न आदि को बिना आमंत्रित किये बिना दशरथ ने राजातिलक का शीघ्र प्रतिबंध कर दिया(अयोध्याकांड अध्याय १)
*समीक्षा*-हे परमेश्वर! ये झूठ-धोखा आखिर कब तक चलेगा?ये धूर्त मिथ्यीवादी कब तक तांडव करते रहेंगे!क्या इन पर तेरे न्याय का डंडा न चलेगा?अवश्य ही चलेगा और ये लोग भागते दिखेंगे।
यदि दशरथ जी ने किसी को आमंत्रित नहीं किया था तो क्या समारोह ऐसे ही आयोजित हो गया?आपने कभी वाल्मीकीय रामायण की सूरत भी देखी है? रामायण में अध्याय नहीं सर्गों का विभाग है। अयोध्या कांड के प्रथम सर्ग को ही पढ़ लेते तो ये आक्षेप न करते।
प्रथम सर्ग में पूरा वर्णन है कि किस तरह महाराज दशरथ ने समस्त मंत्रिमंडल और अनेक राजाओं को राजसभा में आमंत्रित करके श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की।लीजिये,अवलोकन कीजिये:-
इत्येवं विविधैस्तैस्तैरन्यपार्थिवदुर्लभैः ।
शिष्टैरपरिमेयैश्च लोके लोकोत्तरैर्गुणैः ॥ ४१ ॥
तं समीक्ष्य महाराजो युक्तं समुदितैः गुणैः ।
निश्चित्य सचिवैः सार्धं यौवराज्यममन्यत ॥ ४२ ॥
इस प्रकार से विचार करके तथा अपने पुत्र श्रीराम इनके नाना प्रकारके विलक्षण, सज्जनोचित, असंख्य और लोकोत्तर गुणों से, जो अन्य राजाओं में दुर्लभ थे, विभूषित देखकर राजा दशरथा मंत्रियों के बराबर सलाह करके उनको युवराज बनाने का निश्चय किया ॥४१-४२॥
दिव्यन्तरिक्षे भूमौ च घोरमुत्पातजं भयम् ।
संचचक्षेऽथ मेधावी शरीरे चात्मनो जराम् ॥ ४३ ॥
बुद्धिमान महाराज दशरथने मंत्रियों को स्वर्ग, अंतरिक्ष तथा भूतल पर दृष्टिगोचर होनेवाले उत्पातोंके घोर भय सूचित किये और आपने शरीर में वृद्धावस्था के आगमन की बात बताई. ॥४३॥
पूर्णचन्द्राननस्याथ शोकापनुदमात्मनः ।
लोके रामस्य बुबुधे सम्प्रियत्वं महात्मनः ॥ ४४ ॥
पूर्ण चंद्रमा के समान मनोहर मुख वाले महात्मा श्रीराम समस्त प्रजा को  प्रिय थे। लोक में उनके सर्वप्रिय थे। राजाके आंतरिक शोक को दूर करनेवाले थे ये बातें राजाने अच्छे से जानी थीं॥४४॥
आत्मनश्च प्रजानां च श्रेयसे च प्रियेण च ।
प्राप्तकालेन धर्मात्मा भक्त्या त्वरितवान् नृपः ॥ ४५ ॥
तब उपयुक्त समय आनेपर धर्मात्मा राजा दशरथने अपने और प्रजाके कल्याण के लिये मंत्रियों को श्रीरामाके राज्याभिषेक के लिये शीघ्र तैयारी करने की आज्ञा दी। इस उतावलेपन के कारण उनके हृदय के प्रेम और प्रजाके अनुराग ही कारण था ॥४५॥
नानानगरवास्तव्यान् पृथग्जानपदानपि ।
समानिनाय मेदिन्यां प्रधानान् पृथिवीपतिः ॥ ४६ ॥
उन भूपालों ने भिन्न भिन्न नगरों में निवास करनेवाले प्रधान- प्रधान पुरूषों को  तथा अन्य जनपदों के सामंत राजाओं को  मंत्रियों के  द्वारा अयोध्या में  बुला लिया॥४६॥
(अयोध्या कांड सर्ग १)
इसके आगे महाराज दशरथ सबको संबोधित करते हैं और स्वयं राज्य त्यागकर श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की:-
अनुजातो हि मां सर्वैर्गुणैः श्रेष्ठो ममात्मजः ।
पुरन्दरसमो वीर्ये रामः परपुरञ्जयः ॥ ११ ॥
मेरे पुत्र श्रीराम मुझसे भी  सर्व गुणों में श्रेष्ठ हैं।शत्रुओं के नगरों पर विजय प्राप्त करने वाले श्रीराम बल-पराक्रम में देवराज इंद्र समान हैं ॥११॥
तं चन्द्रमिव पुष्येण युक्तं धर्मभृतां वरम् ।
यौवराज्ये नियोक्तास्मि प्रीतः पुरुषपुङ्‍गवम् ॥ १२ ॥
पुष्य- नक्षत्रसे युक्त चंद्रमाके समान समस्त कार्य साधनमें कुशल तथा धर्मात्माओं में श्रेष्ठ उन पुरुषश्रेष्ठ रामको मैं कल प्रातःकाल पुष्य नक्षत्र में युवराजका पद पर नियुक्त करूंगा॥१२॥
(अयोध्या कांड सर्ग २)
*आक्षेप ८*- आगे अयोध्याकांड अध्याय १४ का संदर्भ देकर लिखा है कि दशरथ ने राम से गुप्त रुप से कहा था कि भारत के लौट आने के पहले राम का राज्याभिषेक हो जाए तो भारत शांतिपूर्वक इसे जो पहले हो चुका है स्वीकार कर लेगा इत्यादि।
*समीक्षा*- बेईमानी की हद कर दी! अयोध्या कांड सर्ग १४ में न तो श्रीराम से राजा दशरथ श्रीराम से आपके लिखी बात कहते हैं न उसमें भरत का जिक्र करते हैं।इस सर्ग में कैकेयी ,जो अपने वचन मान चुकी है,उन्हें मनवाने के लिये कटिबद्ध है।वो कई तरह के कटुवचन कहकर राजा दशरथ को संतप्त करती है।फिर सुमंत्र आकर राजा दशरथ को राम राज्याभिषेक की पूरी तैयार होने का समाचार देते हैं।यहां आपके कपोलकल्पित लेख का कोई निशान नहीं है।हां,यह ठीक है कि इसके पहले राजा दशरथ श्रीराम से कहते हैं कि “यद्यपि भरत धर्मात्मा और बड़े भाई का अनुगामी है,फिर भी मनुष्यों का चित्त प्रायः स्थिर नहीं रहता।इसलिये अपना राज्याभिषेक शीघ्रातिशीघ्र करा लो।”इसका स्पष्टीकरण पहले दे चुके हैं।
*आक्षेप ९*- कैकई ने हठ किया कि उसका पुत्र राजा बनाया जाए और इसकी सुरक्षा का विश्वास दिलाने के लिए राम को वनवास भेज दिया जाए- तो दशरथ उसे मनाने के लिए उसके पैरों पर गिर पड़ा और  उस से प्रार्थना करने लगा कि ” मैं तुम्हारी इच्छानुसार कोई भी तुच्छतम कार्य करने के लिए तैयार हूं- राम को वनवास भेजने का हठ न करो।(अयोध्याकांड सर्ग १२)
*समीक्षा*-  राजा दशरथ ने कैकेयी द्वारा देवासुर संग्राम में अपनी प्राणरक्षा के कारण उसे दो वरदान दिये थे।उसने दो वरदानों द्वारा भरत का राज्याभिषेक तथा श्रीराम का वनवास मांगा।कैकेयी ने समस्त प्रजा,मंत्रिमंडल की मंशा के विरूद्ध श्रीराम का वनवास और भरत का राज्याभिषेक मांगा,ये वरदानों का मूर्खतापूर्ण प्रयेग किया।राजा दशरथ अपने रामराज्याभिषेक की घोषणा के विरुद्ध वरदान देने को राजी नहीं हुये।राजा दशरथ ने कैकेयी को मनाने की बहुत कोशिश की,पर वो नहीं मानी।
अञ्जलिं कुर्मि कैकेयि पादौ चापि स्पृशामि ते ।
शरणं भव रामस्य माधर्मो मामिह स्पृशेत् ॥ ३६ ॥
कैकेयी ! मैं हाथ  जोड़ता हूं और तेरे पैर पड़ता हूं।तू राम को  शरण दे।जिसके कारण  मुझे पाप नहीं लगेगा॥३६॥(अयोध्या कांड सर्ग १२)
यहां राजा दशरथ ने अनुनय-विनय के लिये मुहावरे के रूप में कहा।जैसे कहा जाता है कि,”मैं तेरे हाथ जोड़ता हूं,पैर पड़ता हूं।”पर सत्य में कोई पैर नहीं पकड़ता।वैसा ही यहां समझें।और यदि राजा दशरथ ने कैकेयी के पैर सचमें पड़ भी लिये तो भी कौन सी महाप्रलय आ गई?राजा दशरथ उस समय राजा नही,एक पति थे।यदि वे अपनी पत्नी के पांव भी पड़ ले तो क्या बुरा है?भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी एक-दूसरे के आधे शरीर माने जाते हैं।यदि पति पत्नी के और पत्नी पति के पांव पड़ें तो आपके हर्ज क्या है? एक तो आप जैसे लोग महिला-उत्थान का,स्त्रियों के अधिकारों की बात करते हैं और राजा दशरथ का अपनी पत्नी के पांव पड़ना नामर्दी समझते हैं!हद है  दोगलेपन की!
पूरा लेख पढ़ने के लिये धन्यवाद।यहां तक हमने ९वें बिंदु तक का खंडन किया।आगे १०से १४वें आक्षेपों तक का खंडन किया जायेगा।कृपया अधिकाधिक शेयर करें।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर कृष्ण चंद्र जी की जय।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

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