वामपंथ के इशारों पर हिन्दू

सबरीमाला
केरल में चल रहे इस भयंकर ड्रामे का अंत मुझे तो नही दिखता
वामपंथी और जो समूह महिलाओं के प्रवेश करने को लेकर समर्थन देकर आगे हुए है वे भी नही चाहते है कि ये ड्रामा बन्द हो

वामपंथ यही तो चाहता है कि हिन्दू अपनी मानसिकता को इतना संकीर्ण बनाये रखे और वे नारी सशक्तिकरण के नाम पर तुम्हें एक घटिया और नारी विरोधी मत पंथ सिद्ध करते रहे

क्योंकि हिंदुओं को वामियों ने दलितों से तो अलग कर ही दिया है (विश्वास नही होता ना अभी तीन राज्यों में आये परिणाम इसका चीखता चिल्लाता हुआ प्रमाण है कि तुम लोगों से दलितों को दूर कर लिया गया है)

अब नारी सशक्तिकरण की चाह रखने वाले उस बड़े महिला वर्ग को भी तुमसे अलग कर लिया जाए

वे तो चाहते है कि सबरीमाला के वे कब्जाधारी पण्डित समूह इसका भरपूर विरोध करें और आस्था के नाम पर हिंदुओं को भड़का कर महिलाओं के प्रवेश के विरुद्ध खड़ा रखे जिससे हिन्दू मत और उसकी संकीर्ण सोच के विरुद्ध महिलाओं को हर क्षेत्र में खड़ा किया जा सके

आज यह मंदिर है कल कोई और होगा और इसमें भी आश्चर्य नही होना चाहिए कि आगे चल ये जो जातिगत छुटपुट विवाद चल रहे है ये भी इसी तरह के बड़े तूल पकड़ेंगे

वामपंथियों का होमवर्क, उनकी तैयारी इतनी जबरदस्त है कि आध्यात्मिक अंधभक्ति, अंधविश्वास की जंजीरों में बंधा यह हिन्दू दिमाग उससे कभी पार नही पा सकता

क्या फर्क पड़ जायेगा यदि महिलाएं भी सबरीमाला में प्रवेश कर लेगी तो ? यदि हिन्दू तैयार हो जाये तो यह निर्णय तो उनके विशाल हृदय का प्रमाण सिद्ध होगा

महिलाओं की एक आयुसीमा तय कर रखी है और उसके पीछे तर्क यह है कि वे मासिक धर्म में जो अपवित्रता होती है उसके साथ मन्दिर में प्रवेश करेगी तो मन्दिर अपवित्र हो जाएगा

अर्थात वे सभी मन्दिर अपवित्र है जिनमें महिलाएं प्रवेश कर सकती है, क्या अपवित्र हृदय लिया हुआ व्यक्ति सबरीमाला में प्रवेश करेगा तो मन्दिर दूषित नही होगा ??

“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता”
फिर क्यों यह पंक्ति सुना सुनाकर इस बात का ढोंग करते हो कि हिन्दू मत पंथ में नारी को समान अधिकार दिया गया है

एक तरफ कहते हो जहां नारी पूजी जाती है वहां देवता रमण करते है, वही देव स्थान में ही नारी को नही जाने देते हो, फिर जब तुम पर नारी अधिकार हनन का आरोप लगता है तो चीखते चिल्लाते हो, रोते हो, सर फोड़ते हो

यही संकीर्ण सोच तो हिंदुओं को बांट रही है और विश्वास कीजिये आगे भी बांटेगी, किसी घमण्ड में मत रहिये की आपको कोई मिटा नही सकता, आपको मिटाने की अब किसी को आवश्यकता ही नही आप स्वयं अब मिटने को आतुर दिख रहे है

यह सबरीमाला उस तीन तलाक का ही तो जवाब है जिसे समाप्त करने पर सबसे अधिक खुश हिन्दू दिख रहे थे आज उसी का तमाचा खुद हिंदुओं की इस फ़तवाधारी सोच की वजह से पड़ा है जिसकी आग में केरल जल रहा है

वरना जो सहृदयता दिखाई होती महिलाओं के प्रवेश पर समर्थन दिखाया होता तो तीन तलाक से अधिक बड़ा तमाचा इन वामपंथियों को लगता

हिंदुओं को तो चाहिए कि वे अब नारी सशक्तिकरण के इस ड्रामे को खुद बढ़ाये और मस्जिदों में नारी के प्रवेश को लागू करवाने को इसी स्तर की मुहिम छेड़े

डटकर मस्जिदों के आगे खड़ी होकर इसी तरह प्रवेश करने को आगे आये

परन्तु वहां आपकी हिम्मत नही होती हिन्दू अपने आप में खुश है उसे बदला लेना नही आता, क्रिया की प्रतिक्रिया करना नही आता, सामने वाले को उसी की भाषा में जवाब देना नही आता, हिन्दू तो चाहता है कि उससे उसकी धार्मिक स्वतंत्रता नही छीनी जाए अरे राम मंदिर नही स्वयं राम बनों और उसकी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करो जिसने आप पर यह हमला किया है

हर समय रक्षात्मक स्थिति बनाये रखने से आप जीवित नही रह पाओगे, समय की आवश्यकता को देखते हुए आपको सठे साठयम समाचरेत को अपनाते हुए आक्रमक मुद्रा में आना ही होगा तभी आपका भविष्य उज्ज्वल, स्वछन्द और स्वतंत्र होगा अन्यथा एक दिन इसी संकीर्ण सोच के बोझ तले दबकर समाप्त हो जाओगे तब न मोदी आएगा न राम न ईश्वर

औ३म्🙏

गौरव आर्य
(पण्डित लेखराम वैदिक मिशन)

8 thoughts on “वामपंथ के इशारों पर हिन्दू”

  1. जब तुम साकार उपासना को मानते ही नहीं हो तो तुम भी तो ईसाई मिशनरी के ही हिस्से हो। जब जो हिन्दू स्त्रियाँ स्वयं ही नहीं जाना चाहती तो विधर्मियों की स्त्रियों को जानेे देने का पक्ष लेकर तुमने ये सिद्ध कर ही दिया कि तुम भी मूर्त्तिभंजकों के ही मिशन हेा जैसे ब्रह्म समाज वैसे ही आर्यसमाज। स्वामी विवेकानन्द की हत्या करवाने के प्रयासों में सम्मिलित थियोसोफिकल सेासायटी तुम्हारी ही संयोगिनी है न
    तुम अग्निवेश पर बोलो लाला रामदेव पर बोलो। सबरीमाला तुम्हारी औकात से परे है।

    1. दिलीप नाथानी जी नमस्ते
      सर्वप्रथम तो यह देखकर बहुत कष्ट हुआ की अपने आप को संस्कृत का विद्वान समझने वाला व्यक्ति शिष्टाचार में पिछड़ा हुआ है !

      हम सनातनी परम्परा और वेदों की आज्ञा अनुसार जड़ उपासना नही करते है, साकार उपासना (माता पिता की सेवा, विद्वानों का सत्कार, प्रकृति की रक्षा आदि आदि) तो हम आप पौराणिकों से कई अधिक अच्छे से करते है, इसमें आपको शंका होती है यह दुखद है आपको आपकी कर्म स्थली के नजदीकी भवन में यह सब साक्षात देखने को मिल जायेगा

      जड़ उपासना को साकार उपासना कहते हुए मष्तिस्क किराए पर दे रखा था ऐसा प्रतीत होता है और यदि जड़ उपासना को साकार उपासना मान भी ले तो सबरीमाला में बैठा वह अयप्पा भगवान अब तक मौन क्यों है जहाँ मनुष्य- मनुष्य की हत्या कर रहा है वो भी उसी अयप्पा भगवान के लिए ??

      आपने कहा की हिन्दू स्त्रियाँ नहीं जाना चाहती ये तो विधर्मियों की स्त्रियाँ जाना चाहती है तो इसे इतना नकारात्मक क्यों ले रहे हो ? जब विधर्मी आपके मत में इतनी रूचि ले रही है तो उन्हें क्यों नही सनातनी बनाने पर काम करते हो, सबरीमाला के पण्डित पुजारी क्यों नही इस पर ध्यान देते है की जो विधर्मी महिला आये उसका पकड़कर शुद्धिकरण करें, दरअसल हिन्दू इन वामपंथियों और बड़ी बड़ी ईसाई मिशनरी मशीनरी को समझ ही नहीं पा रहा है हिन्दू अपना व्यवहार मात्र बचाव मुद्रा में कर रहा है, आपने मेरा लेख शायद पढ़ा नही, में तो स्वयं चाहता हूँ की हिन्दू आक्रामक हो परन्तु बुद्धि और विवेक के साथ, इस तरह की हिंसा से तो समाधान नही हो पायेगा इसके विपरीत “जो विधर्मी आपके मत में रूचि ले रहे है उन्हें पकड़कर शुद्ध करो उन्हें सनातनी बनाओ इस प्रकार से जो प्रवेश का केवल नाटक कर रहा होगा वह डर कर ही आने का विचार त्याग देगा”

      “अन्य मतान्तरों के उन स्थलों पर भी महिलाओं के प्रवेश के लिए इसी प्रकार अडिग हो जाओ जहाँ उन के मजहब की महिलाओं को उनके पवित्र स्थानों में जाने की अनुमति नहीं”

      परन्तु हिन्दू यह नही करेगा क्यों ? क्यूंकि हिन्दू मत के पण्डित पुजारियों ने भागवत आदि कर करके उन्हें मात्र रासलीला का, पाखंड का, कर्म हीनता का, परस्त्रीगमन का पाठ ही पढ़ाया है, वहीँ वामपंथी अपना लक्ष्य भूलते नहीं उन्हें पता है की हिन्दुओं को किस प्रकार खण्ड खण्ड बाँटना है और उस लक्ष्य में आप जैसे पूर्वाग्रह से ग्रसित, लक्ष्य से भटके हुए, अपनों और परायों की पहचान न कर पाने वाले, अपने बारे में कडवी किन्तु सत्य बात न सुन पाने वाले, जाने अनजाने में उनका साथ देते है

      और आप हम लोगों को थियोसोफिकल सोसायटी जैसे लोगों के साथ जोडकर देखते है क्यूंकि हम आपकी गलत विचारधारा का साथ नही देते, और आप किस मुंह से स्वामी विवेकानन्द का नाम लेते हो उसकी संस्था तो पूर्ण रूप से इसाई मिशनरी का काम कर रही है विश्वास नही तो पता करो क्रिसमस के दिन वहां क्या काण्ड किये गये, विवेकानन्द तो स्वयं विदेशों में जाकर कह चूका की सनातनी ब्राहमण मांसाहार करते थे, जो व्यक्ति मरने से कुछ समय पहले सिगरेट फूंकता हो उसे आप जैसे लोग अपना महात्मा और युवाओं का आदर्श मानते है, ऐसा आदर्श मानने वाले युवाओं से आशा रखते है की वे विधर्मियों का मुकाबला करेंगे इससे अधिक हास्यास्पद स्थिति क्या हो सकती है

      रही बात हमारी सबरीमाला पर बोलने की औकात की तो हम तो सत्य को तब तक बोलेंगे जब तक आप जैसे संकीर्ण मानसिकता वाले लोग अपनी दुकानदारी चलाने के लिए हिन्दुओं को ढाल बनाकर आगे आयेंगे

  2. Rishwa Arya’s response is scholarly and truly thought provoking.

    How long shall Hindus remain ignorant about their glorious Vedic culture and consequently divided!

    What is the remedy of this Himalayan deficiency???

  3. People like Dilip Nathani should understand that the present era of logical approach demands of us ‘devout hindus’ to only reconsider our illogical beliefs, which are only making us weak and vulnerable before these leftist monsters who neither have any ideology nor logic but pretend to be highly logical in the face of our own obsolete blind beliefs. We should only outwit and disarm them with our sound logical beliefs as enunciated in Vedas. For centuries we have been preyed upon by these vultures due to our own weak disposition. Our perceived solidarity in case of Sabarmala is only ‘misplaced’ and leads us to nowhere. We should, instead be pragmatic and counter actioners in exposing all similar weaknesses in Christianity, Islam & the like. Women-empowerment does not disturb Hindus but is a taboo for Islamists only.
    Leftists have no ground of themselves but it is only we who provide them fodder to bombard us with in hindu-bashing

    Fighting among our ownselves (Hindus) is the foolishness of the highest order & we are getting trapped in their game only.

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