महर्षि दयानन्द ने मनुष्य को ईश्वर, जीवात्मा व संसार का यथार्थ परिचय कराने सहित कर्तव्य और अकर्तव्य रूपी मनुष्य धर्म का बोध कराया’ -मनमोहन कुमार आर्य

 

आज दीपावली का पर्व महर्षि दयानन्द जी का बलिदान पर्व भी है। कार्तिक मास की अमावस्या 30 अक्तूबर, 1883 को दीपावली के दिन ही सायंकाल  अजमेर में उनका बलिदान हुआ था। मृत्यु से कुछ दिन पूर्व महर्षि दयानन्द के जोधपुर में धर्म प्रचार से रूष्ट उनके विरोधियों ने उनको विष देकर व बाद में उनकी चिकित्सा में लापरवाही कर उनको स्वास्थ्य की ऐसी विषम स्थिति में पहुंचा दिया था जो उनके बलिदान का कारण बनी। आज दीपावली पर उनको याद करने के पीछे भी हमारा व मानव जाति का हित छिपा हुआ है। महर्षि दयानन्द के जीवन का मुख्य कार्य वेदों के ज्ञान को अर्जित करना और उसका देश व विदेश में प्रचार करना था। वेद ज्ञान का महत्व इस कारण है कि यह सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर द्वारा चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्रेरित व उनकी आत्माओं में स्थापित किया गया ज्ञान है जिसमें ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति व सृष्टि का यथार्थ परिचय देकर कर्तव्य व अकर्तव्य अर्थात् मनुष्य धर्म का बोध कराया गया है। इस ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में जब हम मनुष्य जीवन के उद्देश्य पर विचार करते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भी संसार के सभी पदार्थों को जानकर उनसे यथायोग्य उपयोग लेना, ईश्वर हमारा व सब प्राणियों का जन्मदाता है, सुखों का दाता व कर्मों का फल प्रदाता है, अतः उसकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना कर उससे जीवन के लक्ष्यों की सफलता के लिए उससे सहायता की विनती करना और वैदिक शिक्षाओं के अनुसार जीवन को बनाना व चलाना ही है। वैदिक पथ पर चलकर ही मनुष्य जीवन की उन्नति होकर जीवन के उद्देश्य व लक्ष्यों धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य के लिए जीवन के उद्देश्य व लक्ष्यों को प्राप्त करने का वैदिक जीवन पद्धति व वेद विहित कर्तव्यों का पालन करने के अलावा कोई मार्ग नहीं है। यदि संसार का कोई मनुष्य वेद मार्ग पर चलकर साधना व कर्तव्यों को पालन नहीं करेगा तो उसका यह जीवन उसे भविष्य में घोर दुःखों की ओर ले जायेगा जिसका सुधार अनेक जन्मों में भी कठिनता से हो सकेगा। इसका प्रमुख कारण जीवात्मा का अविनाशी, अमर, नित्य, जन्म मरण को प्राप्त होना, कर्मों का फल भोगना आदि हैं।

 

महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में सत्य की खोज व अनुसंधान कर कठोर साधना की थी जिसके परिणाम स्वरुप उनको वेदों का ज्ञान व योग विद्या की प्राप्ति हुई थी। अपने गुरू की आज्ञा व अपनी प्रकृति व प्रवृत्ति के अनुसार भी उन्होंने वेद अर्थात् सत्य ज्ञान के प्रचार को ही अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित किया था। इसकी आवश्यकता इस लिए थी कि उनके समय में संसार से सत्य ज्ञान प्रायः लुप्त हो चुका था और सभी मनुष्य जो जीवन व्यतीत कर रहे थे वह जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति से कोसों दूर था। यदि महर्षि दयानन्द वेद व सद्ज्ञान के प्रचार का कार्य न करते तो मनुष्य इस सृष्टि की शेष अवधि भर भटकता रहता तथा उसे सत्य मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता था। मत-मतान्तरों के अज्ञानी व स्वार्थी लोग उसका पूर्ववत् शोषण करते रहते जिससे दोनों की ही अवनति होकर संसार में दुःख व अशान्ति भरी हुई होती। महर्षि दयानन्द के द्वारा वेद प्रचार करने पर भी संसार अभी भी अज्ञान व स्वार्थों में फंसा हुआ है। ऐसा देखा जाता है कि लोगों में सत्य को जानने व उसका आचरण करने के प्रति जो दृणता होनी चाहिये, उसका उनमें नितान्त अभाव है। संसार के सभी मनुष्य जीवन की समस्याओं के सरल उपाय करना चाहते हैं। इसी कारण स्वार्थी लोग उनका शोषण करते हैं और दोनों ही अधर्म को प्राप्त होकर अपना भविष्य उन्नत करने के स्थान पर अवनत होकर सुदीर्घ काल तक उनका फल भोगते हैं।

 

महर्षि दयानन्द जी का योगदान यह है कि उन्होंने ईश्वर व जीवात्मा सहित सभी विषयों का सत्य ज्ञान प्राप्त कर, उसकी परीक्षा द्वारा उसे तर्क की कसौटी पर कस कर उसका प्रचार किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर को ब्रह्म व परमात्मा आदि भी कहते हैं। यह ईश्वर सच्चिदानन्द आदि लक्षण युक्त है। ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव पवित्र हैं। वह सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक, अजन्मा, अनन्त, सर्वशक्तिमान, दयालु, न्यायकारी, सब सृष्टि का कर्त्ता, धर्त्ता, हर्त्ता व सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फलदाता आदि लक्षणों से युक्त है। इसी ईश्वरीय सत्ता को सभी को परमात्मा जानना व मानना चाहिये।

 

महर्षि दयानन्द ने वेदों का परिचय कराते हुए बताया है कि विद्या व सत्य ज्ञान से युक्त ईश्वर प्रणीत जो मन्त्र संहितायें हैं, वह निभ्र्रान्त ज्ञान होने से स्वतः प्रमाण हैं। यह चारों वेद स्वयं प्रमाणस्वरूप हैं, कि जिनका प्रमाण होने में किसी अन्य ग्रन्थ की अपेक्षा नहीं है। जैसे सूर्य वा प्रदीप अर्थात् दीपक अपने स्वरूप के स्वतः प्रकाशक और पृथिव्यादि के भी प्रकाशक होते हैं, वैसे ही चारों वेद हैं। चारों वेद और वैदिक साहित्य के अन्तर्गत सभी ब्राह्मण ग्रन्थ, 6 वेदांग और 6 वेदों के उपांग अर्थात दर्शन ग्रन्थ, चार उपवेद और 1127 वेदों की शाखायें यह सभी वेदों के व्याख्यानरूप ग्रन्थ हैं और इन्हें ब्रह्मा आदि अनेक ऋषियों ने बनाया है। यह सब परतः प्रमाण की कोटि में आते हैं। परतः प्रमाण का अर्थ है कि यदि यह वेदानुकूल हों तो प्रमाण और इनकी जो बात वेदानुकूल न हो वह अप्रमाण होती है। महर्षि दयानन्द जी ने अपने जीवन में सबसे बड़ा कार्य सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, संस्कार विधि, आर्याभिविनय, गोकरूणानिधि व व्यवहार भानु सहित वेदों के भाष्य का लेखन, सम्पादन व प्रकाशन है। इसके अतिरिक्त वैदिक मान्यताओं के प्रचार हेतु उपदेश, प्रवचन, व्याख्यान, वार्तालाप, शास्त्र चर्चा तथा शास्त्रार्थ आदि हैं। उनके अनुयायी अन्य वैदिक विद्वानों के वेद भाष्य भी मानव जाति की सबसे बड़ी सम्पत्ति व सम्पदायें हैं।

 

महर्षि दयानन्द ने बताया कि पक्षपात रहित न्याय का आचरण तथा सत्य भाषण आदि से युक्त ईश्वर की आज्ञा जो वेदों के अनुकूल हो, उसी को धर्म कहते हैं। और जो इसके विपरीत हो वह अधर्म होता है। हमारा जीवात्मा क्या है? इस पर महर्षि दयानन्द जी बताते हैं कि जो इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख और ज्ञान आदि गुणों से युक्त, अल्पज्ञ अर्थात् अल्प ज्ञान वाला, नित्य पदार्थ व तत्व है, वही जीव कहलाता है। ईश्वर, वेद, धर्म, अधर्म और जीवात्मा का जो ज्ञान महर्षि दयानन्द जी ने दिया है, वह यथार्थ व पूर्ण सत्य है। अन्य मतों में समग्र रूप में इस प्रकार का ज्ञान उनके समय में उपलब्ध नहीं था। आज भी मत-मतान्तरों की पुस्तकें पढ़कर यह सत्य ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इनमें अनेकानेक भ्रान्तियां भरी हुई हैं। इसलिए वैदिक धर्म और वेद आज भी सबसे अधिक पूर्ण प्रमाणिक एवं पठनीय ग्रन्थ हैं।

 

महर्षि दयानन्द ने मनुष्यों को सच्ची ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना सिखाया। इसके लिए उन्होंने ब्रह्म यज्ञ अर्थात् वैदिक ईश्वरोपासना की विधि भी लिखी है जो एक प्रकार से योगदर्शन का निचोड़ है। इसका अभ्यास करने से जीवात्मा के सभी अवगुण दूर होकर उसमें सदगुणों का आविर्भाव होता है और आत्मा का बल इतना बढ़ता है कि मृत्यु के समान दुःख प्राप्त होने पर भी वह घबराता नहीं है। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करने से मनुष्य जीवन की उन्नति होती है और मृत्यु के पश्चात उसको अच्छा देव कोटि का जन्म वा मुक्ति की प्राप्ति होती है। महर्षि दयानन्द ने अपने ज्ञान व पुरूषार्थ से सृष्टि के प्रति मनुष्य के कर्तव्य के निर्वाह हेतु ‘‘अग्निहोत्र, यज्ञ वा हवन का भी विधान किया है इसको करने से भी जीवनोन्नति सहित परजन्म सुधरता व उन्नत होता है व अभीष्ट इच्छाओं व आकांक्षाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही मनुष्य स्वस्थ रहते हुए ईश्वर की सहायता से अनेक विपदाओं से सुरक्षित रहता है। अतः ईश्वरोपासना और दैनिक यज्ञ को सभी मनुष्यों को करके अपने जीवन को उन्नत व लाभान्वित करना चाहिये।

 

महर्षि दयानन्द ने सत्य ज्ञान व वेदों का प्रचार ही नहीं किया अपितु समाज सुधार हेतु समाज में व्याप्त अज्ञान, अन्धविश्वास व कुरीतियों का खण्डन भी किया। मिथ्या मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, मृतक श्राद्ध, जन्मना जातिवाद, सामाजिक विषमता, बाल विवाह, परतन्त्रता, गोहत्या आदि का खण्डन कर इसके विपरीत सच्ची ईश्वर उपासना, यज्ञ, जन्म से सभी मनुष्यों की समानता, सबको विद्याध्ययन के समान अवसरों को प्रदान किये जाने का समर्थन भी किया। उनपकी विचारधारा से लिगं भेद व रंग भेद आदि का भी निषेध होता है। उन्होंने स्त्रियों के प्रति किये जाने वाले सभी भेदभावों को दूर कर उन्हें शिक्षित करने सहित देशोन्नति के कार्य करने के लिए प्रोत्साहित व प्रेरित किया। उन्होंने मनुस्मृति के वचन उद्धृत कर बताया कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। साथ हि जहां नारियों का सम्मान नहीं होता, वहां की जाने वाली सभी अच्छी क्रियायें भी व्यर्थ होती हैं।

 

वैदिक धर्म का अध्ययन कर सभी अध्येता इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वेद ही सारी मानव जाति के सुख व समृद्धि सहित धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि में सहायक है। इससे परजन्म भी सुधरता है और वर्तमान जीवन भी उन्नत व सुखी होता है। इन सब ज्ञानयुक्त बातों से परिचित कराने का श्रेय महर्षि दयानन्द जी को है। उन्होंने इन सभी सिद्धान्तों को अपने जीवन में चरितार्थ कर हमारा मार्गदर्शन किया। आज उनके बलिदान दिवस पर उनको सच्ची श्रद्धाजंलि यही हो सकती है कि हम उनके सभी विचारों का अध्ययन कर उनका मनन करते हुए उन्हें अपने जीवन में अपनायें और उन पर आचरण कर जीवन को अभ्युदय व निःश्रेयस के मार्ग पर आरूढ़ करें। महर्षि दयानन्द ने अपने जीवनकाल में अपने वेद प्रचार कार्यों के अन्तर्गत मनुष्य को ईश्वर, जीवात्मा व संसार का यथार्थ परिचय कराने सहित कर्तव्य और अकर्तव्य रूपी मनुष्य धर्म का बोध कराया था। आज महर्षि दयानन्द जी के बलिदान दिवस पर हम उनको अपनी विनम्र श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं और सभी पाठको को दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें भेंट करते हैं।

 

मनमोहन कुमार आर्य

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