पंडित काशीनाथ शास्त्री

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ओ३म

पण्डित काशीनाथ शास्त्री
डा. आशोक आर्य
पण्डित काशीनाथ शास्त्री आर्य समाज के उच्चकोटि के लेखकों व प्रचारकों में से एक थे । आप अपने जीवन का एक एक पल आर्य समाज के प्रचार व प्रसार के लिए ही लगाया करते थे । आप का जन्म गांव कोडा जहानाबाद जिला फ़तेहपुर में दिनांक १ मई १९११ इस्वी को हुआ था । आपके पिता श्री रघुनाथ जी थे ।
पण्डित जी के पिता जी अनुरूप ही द्रट सिधान्तवादी द्रट समाजी थे । पिता के विचारों का ही आप पर प्रभाव था , जिसके कारण आप न केवल आर्य हुए बल्कि सिद्धान्त वादी आर्य समाजी हुए तथा आर्य समाज के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते थे ।
अपने व्यवसाय के निमित आप फ़तेह्पुर छोड कर गोंदिया ( महाराष्ट्र के विदर्भ क्शेत्र) में चले गये । गोंदिया में आप आर्य समाज के स्तम्भ थे तथा यहां रहते हुए आप ने चिकित्सा का कार्य आरम्भ किया तथा इस व्यवसाय में ही आजीवन निर्वहन करते रहे ।
आपके नाम के साथ जो शास्त्री शब्द जुडा है , उससे स्पष्ट है कि शास्त्री तो आप ने उतीर्ण की ही थी किन्तु गोंदिया आने के पश्चात आप ने नागपुर विश्व विद्यालय से एम. ए. की परीक्शा भी उत्तीर्ण की । इससे पता चला है कि उच्च शिक्शा प्राप्ती के लिए आप निरन्तर प्रयत्नशील रहे ।
आर्य समाज मध्य प्रदेश व विदर्भ का कार्यालय नागपुर में है तथा इस का मुख पत्र आर्य सेवक भी यहां से निकलता है । इस पत्र के सम्पादक का कार्य आर्य समाज के उच्च कोटि के आर्य रहे हैं । हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभुद्रा कुमारी चौहान के पति भी इस पत्रिका के सम्पादक रहे हैं । हमारे पण्डित काशी नाथ शास्त्री भी अपनी उच्च हिन्दी व आर्य समाज समबन्धी योग्यता के कारण इस पत्र के सम्पादक रहे तथा इस पत्र को बहुत आगे ले गये ।
आप को आर्य समाज से इतनी लगन थी कि आर्य समाज के प्रचार व प्रसार के कार्य के लिए सभा की योजना के अनुरूप तो प्रचार करने जाते ही थे , इसके अतिरिक्त भी आप संलग्न क्शेत्रों में प्रचार के ;लिए घूमते ही रहते थे तथा युवकों को उत्साहित करते ही रहते थे । इस सम्बन्ध में जब मेरे श्वसुर लाला कर्मचन्द आर्य जी ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्शेत्र के नगर भण्डारा में आर्य समाज की स्थापना की तो आप का इस समाज मं आना जाना आरम्भ हो गया तथा कर्मचन्द जी से पारिवारिक मित्रता का सम्बन्ध जुड गया । आप ही के प्रयत्न का परिणाम था कि मेरा सम्बन्ध इस परिवार से जुड गया । यह आप ही थे जिन्होंने मेरा विवाह संस्कार करवाया । इस अवसर पर पण्डित प्रकाश चन्द कविरत्न जी का रचा गया वैवाहिक सेहरा उन्हीं के शिष्य पं. पन्ना लाल पीयूष आर्योपदेशक जी ने पटा था ।
१२ जनवरी १९७५ से १४ जनवरी १९७५ तक नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ । आप इस सम्मेलन में प्रतिनिधि स्वरुप सम्मिलित होने वाले थे । आप की प्रेरणा व प्रयत्न के परिणाम स्वरूप मुझे भी पंजाब के प्रतिनिधि स्वरूप इस सम्मेलन में सम्मिलित होने का अवसर व सौभाग्य प्राप्त हुआ । मैं जब भी भण्डारा जाता आप मुझे मिलने के लिए अवश्य ही भण्डारा आया करते थे ।
आप शुद्ध हिन्दी लेखव प्रयोग के पक्श में थे । उन्होंने मुझे बताया कि आज हम किस प्रकार से गलत टंग से हिन्दी श्ब्दों का प्रयोग कर रहे हैं कि हमें पता ही नहीं चलता । उन्होंने बताया कि आज स्कूलों में महिला अध्यापक के लिए अध्यापिका शब्द प्रयोग करते हैं किन्तु यह गल्त है । जिस प्रकार वकील की पत्नि को हम वकीलनी कहने लगते है ,जिसका भाव होता है वकील की पत्नी । इस प्रकार ही अध्यापिका का अर्थ हुआ अध्यापक की पत्नी । पटाने वालों के लिए केवल एक ही शब्द है और वह है अध्यापक , चाहे वह पुरूष हो या महिला ।
आपने आर्य समाज का प्रवचनों व लेखनी द्वारा खूब प्रचार किया तथा अनेक पुस्तकें भी लिखीं । आप की पुस्तकों में वैदिक संध्या, रामायण प्रदिप मीमांसा , जल्पवाद खण्डन ,आर्यों का आदि देश , सत्य की खोज, इसाइ मत की छानबीन , वैदिक कालीन भारत , अनुपम मणिमाला आदि थीं । वैदिक कालीन भारत पुस्तक में उन्हों ने भारतीय संस्क्रति का समग्र इतिहास दिया था , यह पुस्तक मुझे भी भेंट स्वरूप दी थी ।
आप का मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में यदा कदा जाना होता ही था । एक बार जब आप होशंगाबाद गए हुए थे कि आक्स्मात दिनांक ४ आक्टूबर १९८८ इस्वी को देहान्त हो गया ।

 

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