प्रभु का दर्शन कैसे करें

ओ३म
प्रभु का दर्शन कैसे करें
डा. अशोक आर्य
संसार का पत्येक प्राणी अपना जीवन सुखी बनाने के लिये प[रभु को पाना चाहता है । वह जानता है कि सुखुस को ही मिलता है , जो प्रभु का आशिर्वाद प्राप्त कर ले, प्रभु का साक्शात्कार कर ले । प्रभु को पाने का सही साधन यह है कि ग्यानि लोग चिन्तन करके स्वयं को प्रक्रिति कि उलझनों से ऊपर उथा कर , उस पर्मपिता पर्मात्मा क न केवल स्वयं डाशःआण कर पाने मेइन सफ़लता पाते हैं अपितु दूसरों को भी प्रभु के दर्शन करवाते हैं , दुसरों क जीवन भी सुखी बनाते हैं । इस तथ्य को सामवेद के मन्त्र संख्या ३१ मेइन इस्प्रकार स्पश्ट किया गया है : –
उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: ।
दृशे विश्वाय सुर्यम ॥सामवेद ३१ ॥
मानव जीवन में अनेक कर्म करता है । इन में कुछ कर्म उत्तम होन्गे तो अधिकांश प्तित होंगे । यह पतित कर्म ही होते हैं , जिनके कारण मानव को जीवन मेइन अनेक रकार के कश्टों क सामना कराना पड्ता है । यह्कश्ट ही( उसे इस्वर की शर्ण मेइण ले जाते हैं । खा भी है कि : –
दु:ख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे , दु:ख काहे को होय।॥
जीव प्रभु के पास स्वयं को अर्पण करना चाहता है किन्तु कैओसे करे अर्पण तो उसी को ही किया जा सकता है, जो दिखायी दे, जो दिखायी ही न दे , उसे कैसे अर्पण करें ? जब प्रभु दिखेगा, तब ही तो उसे अपने कश्ट अर्पण करेगा । अत: प्रभु क दर्शन , उसे कुछ भी अर्पित करने केलिये आवशय्क है ।
मानव तुं उपर उठ : –
प्रकृतिक भोगों में उलझी अवस्था में जीव प्रभु के दर्शन कभी नहीं कर सकता । हम जानते हैं कि जीव सुख चाह्ता है किन्तु उसने प्रक्रितिक भोगों को ही सुख का साधन समझ रखा है , इस कारण वह सद इन भोगों में ही सदा उलझा रहता है , इस कारण प्रभु दर्शन से निरन्तर दूर होता चला जा रहा है । जब तक हमें दुनियां के रंगओं में हमारी आंखें उलझ रही हैं तब तक हमें प्रभु दर्शन क प्रभु कथा का कोई भी प्रसंग हमारे कानों में नहीं पड सकता । हम भोगों में लिप्त हैं । हमारे पास प्रभु स्मरण का समय ही नहीं तो फ़िर प्रभु दर्शन की अभिलाशा ही क्यों रखते हैं ? सांसारिक रंगों में उलझने से तो हम सांसारिक वस्तुएं ही पा सकते हैं । यदि प्रभु के दर्शन करने हैं तो उपाय भी तो प्रभु स्तुति के ही करने होंगे । अन्यथा उसके दर्शन कैसे मिलेंगे । इस लिये हम अपने जीवन में एक बार यह निर्णय कर लें कि प्रभु के दर्शन राग – द्वेश से होंगे या फ़िर किसी अन्य उपाय से । एक बार पूर्ण ग्यान पुर्वक विचार कर कुछ निर्णय लेने के पशचात फ़िर बेकार के राग द्वेश से परिपुर्ण विषयों पर समय नष्ट करना अथवा अपनी शक्ति लगाने क कुछ भी प्रयोजन नहीं रह जाता । जिस दिन हम इस भ्रान्ति से उपर उथ जावेंगे , जिस दिन हम गल्तियां छोड्कर ऊपर उठ जावेंगे, जिस दिन प्रभु दर्शन के लिये हम गम्भीर विचार कर लेंगे तथा जिस दिन हम प्रकृति कि उलझनों से निकल जावेंगे , उस दिन से ही हम उस दूर दिखाई देने वाले , सब स्थानों पर विद्यमान , प्रत्येक वस्तु के प्रत्येक कण में विद्यमान , ज्ञान की अग्नि से प्रकाशित तथा सब को प्रकाशित करने वाले को ज्ञानी लोग विचारशील हो कर धारण करते हैं ।
परमपिता परमात्मा संसार के कण कण में होने के कारण हमारे हृदयों में भी निवास करता है । , परन्तु ज्ञान के अभाव में उस की सत्ता को हम समझ नहीं पाते , उसके दर्शन नहीं कर पाते । हाँ जब हम अपने अन्दर ज्ञान की ज्योति जगा लेते हैं , ज्ञानशील बन जाते हैं तथा ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं तो हमुस प्रभु को अपने अन्दर धारण करते हैं स्थापित करते हैं ।
प्रभु ज्ञान को अन्यों में भी बांटते हैं : –
ज्ञानी विद्वान लोग अपनी ज्ञान की ज्योति के माध्यम से प्रभु के दर्शन कर लेते हैं , उसे पा लेते हैं तो वह इतने स्वार्थी नहीं होते कि इस रस क पान वह अकेले ह्जी कर लें अपितु अन्यों में भीइओसे बांट्ने क सुप्रयास आर्म्भ कर देते हैं । संसार के जीव इस प्रकार भटक रहे होते हैं जिस प्रकार जंगल में हिंसक पशु । इन्हें सुपथ पर लाने के लिये , इन्हें भी प्रभु के दर्शन कराने का यत्न ज्ञानी लोग करते हैं । इस प्रकार परमानन्द की प्राप्ति के पश्चात भी वह स्वार्थ भावना से ऊपर उठ कर अन्यों का मार्ग द्र्शन भी करते हैं । इस से यह प्र\मानित होता है कि यह सब लोग स्वार्थ भावना से बहुत दूर होते हैं । इस कारण ही यह लोग मूर्खता से अथवा मूर्खतापूर्ण कार्यो से भी दूर होते हैं ।

ड. अशोक आर्य

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