प्रभु भक्त का मन उतम

ओउम्
प्रभु भक्त का मन उतम डा.अशोक आर्य
प्रभु का सदा बडों की सेवा रहते हुये उनकी आज्ञा का पालन करता हुआ उनकी सेवा करता है तथा तेजस्वी बनकर प्रभु स्तवन करता है व उत्तम मन वाला बनता है । इस पर प्रकाश डाला है इस वेद की इस ऋचा के नवम मन्त्र मे, जो इस प्रकार है : –
वियेतेअग्नेभेजिरेअनीकंमर्तानर:पित्र्यास:पुरुत्रा ।
उतोनएभि:सुमनाइहस्या:॥ ऋग्वेद७.१.९ ॥
१ प्रभु भक्त तेजस्वी होता है
सदा सबसे आगे रहने वाले अग्रणी प्रभो ! जो मनुष्य आप के सेवक बनते हैं , आप कि सेवा में दिन रात लगाते हैं , आप की उपासना में अपना जीवन लगा देते हैं ,वे अपने से बडों के , अपने पितरों के, अपने पूर्वजों के मत के अनुकूल चलते हैं , उनके विचार के अनुसार चलते हैं । इस प्रकार के मनुष्य शरीर के विभिन्न प्रदेशों में , विभिन्न भागों मे बल , तेज व शक्ति को धारण करते हैं , प्राप्त करते हैं, ग्रहण करते हैं ।
२. उतम मन के लिए प्रभु स्तवन
हे प्रभु ! आप के यशोगान में गाये जाने वाले स्तवन गान में, आप के कीर्ति गान के स्तोत्र में उत्तम जीवन प्राप्त कर हम उत्तम मन वाले होवें । आप की उपासना के बिना हमें उत्तम मन की प्राप्ति नहीं हो सकती। हम उत्तम मन पाने के अभिलाषी हैं । इसे पाने के लिये यथावत् आपका स्तवन करते रहें ।
इन दो बिन्दुओं से यह तथ्य सामने आता है कि एक तो प्रभु भक्त तेजस्वी होता है और दूसरे उतम मन से उस पिता का स्मरण करने से ही उतम मन की प्राप्ति होती है |
इस लिए हम निरंतर प्रभु की उपासना करते हैं | हम निरंतर प्रभु की उपासना करते हुए उसकी सदा प्रशंसा करते हैं | सम सदा प्रभु को प्रसनन करने के लिए उस प्रभु सम्बन्धी स्तोत्रों का गायन करते हैं | हम अपना समय प्रभु के भजन गाने में लगाते हैं | जब हम प्रभु के पास बैठ कर , उस प्रभु का यशोगान करते हुए उस का आशीर्वाद पाने का प्रयास करते हैं , सच्चे ह्रदय से यह प्रयास करते हैं तो निश्चय ही वह पिता हम पर प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देने के लिए अपना हाथ हमारे सिर पर रख देते हैं |
परमपिता परमात्मा हमारा अग्रणी है | अग्रणी सदा मार्ग दर्शक होता है | वह सदा अपने अनुगामियों का , वह सदा अपने पीछे चलने वालों का मार्ग दर्शन करता है | जिस प्रकार प्रभु हमारा मार्ग दर्शक होता है , उस प्रकार ही हमारे पूर्वज भी अपने अनुभवों के आधार पर हमारा मार्ग दर्शन निरंतर करते रहते हैं | जो पूर्वजों के मार्ग दर्शन को प्राप्त कर तदनुरूप अपने जीवन को चलाते हुए अपने पूर्वजों को सुख देते हुए उनके बताए मार्ग का अनुसरण करता है , वह निश्चय ही सब प्रकार की खुशियों को प्राप्त करते हुए धन धान्यों का स्वामी बनता है | इस प्रकार के जीवों के शरीर सब प्रकार से पुष्ट होते हैं , सदा स्वस्थ रहते हुए उतम स्वास्थ्य को प्राप्त करते हैं |
हम प्रभु का स्तवन इसलिए भी करते हैं ताकि हमारा मन उतम बन सके क्योंकि प्रभु भक्त ही उतम मन वाला होता है | प्रभु भक्ति के बिना , प्रभु स्मरण के बिना , प्रभु के लिए स्तवन गायन के बिना , प्रभु की प्रार्थना के बिना , प्रभु का स्मरण करते हुए , उसके लिए स्तोत्रों के गायन के बिना प्रभु हमें कभी नहीं अपनाता | इस लिए हम प्रभु के पास अपना आसन लगा कर उस के लिए अनेक प्रकार की प्रार्थनाओं से भरपूर स्तोत्रों का गायन करते हुए उस प्रभु की प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं | जब प्रभु हम पर प्रसन्न हो जाते हैं तो निश्चय ही वह हमारे ऊपर सुखों की वर्षा करते हैं | इस प्रकार हम प्रभु का आशीर्वाद पा कर अपने जीवन को न केवल उतम ही बनाते है अपितु प्रभु के आदेश अनुसार अन्य लोगों के जीवनों को भी उतम बनाने के लिए उन का सहयोग करते हैं , उनका मार्ग दर्शन करते हैं |
इस प्रकार हम निरंतर प्रभु की भक्ति करते हुए उसका आशीर्वाद पाकर स्वयं को उन्नत बनाते हुए दूसरों को भी उतम बनाने का यत्न निरंतर , अहोरात्र करते हैं |
डा. अशोक आर्य

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