पण्डित कालीचरण शर्मा

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पण्डित कालीचरण शर्मा

-डा. अशोक आर्य

वैसे तो विश्व की विभिन्न भाषाओं का प्रचलन इस देश में बहुत पहले से ही रहा है किन्तु आर्य समाज के जन्म के साथ ही इस देश में विदेशी भाषाओं को सीखने के अभिलाषी , जानने के इच्छुक लोगों की संख्या में अत्यधिक व्रद्धि देखी गई । इस का कारण था विदेशी मत पन्थों की कमियां खोजना । इस समय आर्य समाज भारत की वह मजबूत सामाजिक संस्था बन चुकी थी , जो सामाजिक बुराईयों तथा कुरीतियों और अन्ध विश्वासों  को दूर करने का बीडा उटा चुकी थी । इस का लाभ विधर्मी , विदेशी उटाने का यत्न कर रहे थे । इस कारण इन के मतों को भी जनना आवश्यक हो गया था किन्तु यह ग्रन्थ अरबी , फ़ार्सी और हिब्रू आदि विदेशी भाषाओं में होने के कारण इन भाषाओं का सीखना आर्यों के लिए अति आवश्यक हो गया था । विदेशी भाषा सीख कर उसमें पारंगत होने वाले एसे आर्य विद्वानों में पं. कालीचरण शर्मा भी एक थे ।

पं कालीचरण जी का जन्म आर्य समाज की स्थापना के मात्र तीन वर्ष पश्चात सन १८७८ इस्वी में बदायूं  जिला के अन्तर्गत एक गांव में हुआ । आप ने आगरा के सुविख्यात विद्यालय “मुसाफ़िर विद्यालय” से शिक्शा प्राप्त की । इस विद्यालय की स्थापना पं. भोजदत शर्मा ने की था । यह विद्यालय आर्य समाज के शहीद पं. लेखराम के स्मारक स्वरुप स्थापित किया गया था । इस कारण यहां से आर्य समाज सम्बन्धी शिक्शा तथा वेद सम्बन्धी ग्यान का मिलना अनिवार्य ही था । इस विद्यालय के विद्यार्थी प्रतिदिन संध्या – हवन आदि करते थे तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों का ग्यान भी इन्हें दिया जाता था । अत: इस विद्यालय से पटने वाले विद्यार्थियों पर आर्य समाज  का प्रभाव स्पष्ट रुप में देखा जा सकता था ।

पण्डित जी ने प्रयत्न पूर्वक फ़ारसी और अरबी का खूब अध्ययन किया और वह इस भाषा का अच्छा ग्यान पाने में सफ़ल हुए । इस ग्यान के कारण ही आप अपने समय के इस्लाम मत के उत्तम मर्मग्य बन गए थे । आप ने इस्लाम तथा इसाई मत का गहन अध्ययन किया । इस्लाम व ईसाई मत के इस गहन अध्ययन के परिणाम स्वरूप आप ने मुसलमानों तथा इसाईयों से सैंकडों शास्त्रार्थ किये तथा सदा विजयी रहे । परिस्थितियां एसी बन गयी कि इसाई और मुसलमान शास्त्रर्थ के लिए आप के सामने आने से डरने लगे ।

आप ने अध्यापन के लिए भी धर्म को ही चुना तथा निरन्तर अटारह वर्ष तक डी. ए. वी कालेज कानपुर में धर्म शिक्शा के अध्यापक के रुप में कार्य करते रहे । इस काल में ही आपने कानपुर में ” आर्य तर्क मण्डल” नाम से एक संस्था को स्थापित किया । इस सभा के सद्स्यों को दूसरे मतों द्वारा आर्य समाज पर किये जा रहे आक्शेपों का उत्तर देने के लिए तैयार किया गया तथा इस  के सदस्यों ने बडी सूझ से विधर्मियों के इन आक्रमणों का उत्तर दे कर उनके मुंह बन्द करने का कार्य किया ।

जब आप का कालेज सेवा से अवकाश हो गया तो आप ने राजस्थान को अपना कार्य क्शेत्र बना लिया । यहां आ कर भी आपने आर्य समाज का खूब कार्य किया तथा शास्त्रार्थ किये । आप ने “कुराने मजीद” के प्रथम भाग का हिन्दी अनुवाद कर इसे प्रकाशित करवाया, इस के अतिरिक्त आप ने विचित्र “जीवन चरित” नाम से पैगम्बर मोहम्मद की जीवनी भी प्रकाशित करवाई । इन पुस्तकों का आर्यों ने खूब लाभ उटाया । इस प्रकार जीवन भर आर्य समाज करने वाले इस शात्रार्थ महारथी का ९० वर्ष की आयु में राजस्थान के ही नगर बांदीकुईं में दिनांक १३ सितम्बर १९६८ इस्वी को देहान्त हो गया ।

4 thoughts on “पण्डित कालीचरण शर्मा”

  1. I am grandson of Pandit Kalicharan Sharma. I have some pictures and some information about him. He was very enthusiastic about propagating Vedic way of life.

    I wish to contact you (Aryamantavya) organisers. Please share your address etc in Delhi on my email address.

    1. नमस्ते
      संजीव भूषण जी
      आप हमसे ptlekhram@gmail.com पर mail करके सम्पर्क कीजिये वहां आपको फ़ोन नम्बर देकर आपसे सम्पर्क कर सकते है
      धन्यवाद

    2. S. Bhushan जी, नमस्ते । मैं भी एक लेखक हूं इस साइट पर। कृपया मुझे संपर्क करें। 7649854874 यह मेरा नंबर है। मुझे पं कालीचरण जी की पुस्तकों का पता चाहिए।

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