पंडित गुरुदत्तजी विद्यार्थी

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पंडित गुरुदत्तजी विद्यार्थी

लेखक – पं मास्टर आत्माराम जी अमृतसरी

प्रोफ़ेसर मैक्समुलर ने सब से पहले जब लिखा की ऋग्वेद संसार के पुस्तकालय में सब से प्राचीनतम है अब इस लिए भारत के अन्य संस्कृत के भारतीय हिंदू विद्वान भी इसके साथ ही “ चारो वेदों “ को प्राचीनतम ग्रन्थ लिखने लगे है | यदि मैक्समुलर लिख जाता की सायण अंधे की वैसाखी नहीं हो सकती, किन्तु “ निरुक्त “ ही पुराने ववेद के प्राचीनतम शब्द समझने का दीपक है तो फिर हमारे देश के संस्कृत के भारी बाबू विद्वान आज तर्क युक्त वैज्ञानिक अर्थ स्वयं करते हुए सर्वत्र दिखाई देते है और “ वैदिक निघंटु “ और उसके भाष्य “ निरुक्त “ को चार चाँद लग जाते | महामुनि पंडित त्यागवीर श्री ग्रुरुदत्त जी “ M.A  science professor Lahore ने अपने सब ग्रन्थ अंग्रेजी में लिखे है और यह open secret  है की वह अमेरिका में अपने ग्रंथो तथा Vedic magazine का भारी प्रचार करने के लिए महात्मा गाँधी के समान, नहीं, नहीं किसी अंश में उनसे भी बढ़कर प्राणों की बाजी लगा गए | अमर शहीद पूज्य स्वामी श्रद्धानंद जी सदा अपने लेखो तथा अपने भाषणों में “ तपस्वी महामुनि पंडित गुरुदत्त जी को ‘जिन्दा शहीद ‘ कहा करते थे | कौन नहीं जानता की गुरुदत्त सचमुच “ अमेरिका में वेदिक सन्देश पहुचने के लिए अपने उस शरीर को जो पहलवानी शरीर था यौवन काल में एक एक इंच करके त्यागने लगे | आर्य समाज के वृद्ध नेता श्री “केदारनाथ जी” थापड लाहौर निवासी ईश्वर कृपा से अभी जीवित है, वह मुनिवर की निम्न दिनचर्या की साक्षी दे सकते है |

गर्मी की ऋतु है, जेठ-मास चल रहा है | गुरुदत्त जी लाहौर के कुचा ‘जोड़े-नोरी’ में अपने घर की सब से उप्पर की छत वा ममटी पर चुभने वाली मुंज के परम सस्ते एक अर्ध कसी व “ढीली खाट” पर बिना धरी, बिना तकिया और बिना कोई वस्त्र के पहने सो रहे है | जिस वक़्त कुक्कुट पहली बांग के लिए बोलता है, ठीक उस समय वह कभी-कभी उस से भी पहले महा मुनि जी उठकर चोला पहन १० व १२ मूल उपनिषदों का गुटका एक जेब में दूसरी जेब में मूल योग दर्शन और तीसरी में “ प्रशस्तपाद “ नामी आर्ष ग्रन्थ लिए घर से तीन व चार मिल बाहर गोल बाग से परे “ बाग बानपुरा “ की सीमा वा चुबरजा के आगे इस तेजी से चलते हुए पहोचते है मानो सादारण घोडा सहज दौड रहा है | वहा एकांत जंगल में यह प्रथम “ दिशा जंगल “ जाते है अपने महले पर पुष्कल मीठी दाल देते है | जैसा की मनु शास्त्र में लिखा है | फिर चलते हुए कुए पर दन्त धावन तथा स्नान करते है और एक जेब में से लोटा तथा कपडे दोने का स्वदेशी “ मुल्तानी “ टिक्की है उसे निकाल खूब हाथ मार कर दोभी समान अपनी कोपीन, धोती और चोला व लंबा कुर्ता जेबो वाला दाल देते है | सुखी कोपीन एक जेब से निकाल कर धारण कर एक उर्नासन को जो कमर अंदर लपेट लाए थे धोती के उप्पर कमरपेटी की जगह उस को बिछाकर पूर्व की मुख कर “ गायत्री मंत्र “ का उच्चारण उच्चे स्वर से करने के पिच्छे कम से कम एक घंटा तक ओम का मन में जप तथा ध्यान योग व योग्यभ्यास करते है | इसके पिच्छे कम से कम आधा घंटा वह उपनिषद के एक वचन पर मनन करते वा योगदर्शन की बारी है तो उसके किसी मूल सूत्र पर मनन करते वा प्रशस्तपाद की बारी है तो उसका एक पृष्ट बाचते तथा मनन करते | फिर सूर्य चढ़ने के पिच्छे सब वस्तु संग लेकर बिजली के वेग से चलते हुए सिद्धे चुपचाप मार्ग में किसी से बात न करते हुए घर बहुचते और जिस कोठारी में Vedic Magazine लिखनी है- उसी कोठे में उनके “जेठा नामी” नौकर हवन लकड़ी सामग्री घृत आदि रखे हुए है | हवन करते वक्त संस्कार विधि उनके हाथ में जरुर होती थी वह पास रखी रहती थी,चाहे मंत्र वह बिना पुस्तक देखे मुख से क्यों न बोले अब वह गौ दूध एक गिलास मुल्तानी खांड सहित पिया करते व बिना खांड के कभी-कभी इस समय दूध न पीकर लेमुं का शरबत जो घर में बने पिया करते बिना बर्फ डाले | इसके पिच्छे वह एक घंटा तक ऋषि दयान्द कृत भाषा  वा Andrew Jackson Davis  के अंग्रेजी ग्रंथो में से किसी ग्रन्थ का पाठ व मनन करते | कारण की वह कहा करते थे की इस समय संसार में दो ही योगी है मेरी दृष्टी में है |

एक तो महर्षि दयानंद और तो दूसरे अमेरिका के Seer अर्थात योगी Andrew Jackson Davis वह उक्त अमेरिकन डेविस को इन्द्रजय देव कृष्ण भी कहा करते | उनकी संगत में जो जिज्ञासु आता है उसको वह सदैव ऋषि दयानंद के सब ग्रन्थ तथा डेविस साहब के सब ग्रन्थ जो ( Theosophical Society Adyar Madras ) मिल सकते है पढ़ने के लिए कहा करते | भोजन करने के पीछे कमरे में आधा घंटा टहलने के पीछे वह अपने कमरे में इस गर्मी की ऋतू में दूसरी मंजिल पर नाकि नीचे की मंजिल पर, बिना छत के,पंखे के और बिना अपने हाथ के पंखे के वह एक धोती तथा मुल्तानी तथा एक लंबा चोला पहने पैर में कास्ट की खडावे नंगे बालो वाले सर और लंबी मुछ दाडी सहित ( Vedic Magazine ) के लेख लिका करते | जब हम देखने जाते तब वह बारा बजे से लेकर पांच बजे तक इस गर्मी की ऋतू में वेदिक मैग्जीन लाहौर ही में लिख रहे है | वह भी निचे की ठंडी मंजिल में नहीं | फिर दूसरी गरम मंज़ल के गरम कमरे में किसी नौकर को खसकी दर लगा पानी छिडकने व पंखे खेचने को आज्ञा नहीं और स्वयं भी हाथ में हाथ पंखा नहीं लेते और पसीना छूट रहा है | अंगोछे से पसीना पूंछ पूंछ कर १२ बजे से ५ बजे तक कुर्सी पर बैठकर काम करते |

महामुनि पं गुरुदत्त जी के जीवनचरित्र के शेष भाग में हम उनको ऋषि दयानंद द्वारा रचित वेदांग प्रकाश, अष्टाध्यायी, निरुक्त तथा वैदिक निघंटु के प्रचार के लिए अपनी पर्णकुटी में लगातार कम से कम तीन वर्ष स्वर्ग सिधारने तक शिक्षण देते हुए पाते है | उक्त वैदिक संस्कृत वर्ग में बड़े बड़े संस्कृतज्ञ पंडित भक्त रैमलदास जी हैडमास्टर, पं ऋषि रामजी, पं जयचंद्र जी, महाशय दशबंधीराम जी, महाशय केदारनाथ जी थापड आदि शाम को रोज एक घंटा उक्त ग्रन्थ पढते हुए पाते है |

जब यह पंडित वर्ग उनसे पढ़ जाता तो हमारा दूसरा लघु वर्ग पढ़ने आता जो केवल अष्टाध्यायी का था | इसमें महाशय जगन्नाथ मरवाहा सदैव परीक्षा में प्रथम रहा करते थे | और मई, डॉ चिरंजीलाल, महाशय शालिग्राम, महाशय गणपतराय, महाशय धनपतराय आदि पढ़ा करते थे |

दोनों वर्गों में पढाते हुए वह ऋषि दयानंद के भाष्य शैली को मार्गदर्शक सिद्ध कर दिखाते थे | यही नहीं वैदिक सिद्धांतों पर जो आक्षेप मि० अग्निहोत्री आदि ब्रह्मसमाजी व देव समाजी किया करते व अंग्रेजी वर्तमान नास्तिक साहित्य में ईश्वर जीव आदि के विरुद्ध पुस्तकों में पाये जाते उन सब का भी समाधान उक्त दोनों वर्गों को पढाते हुए वह रोज कर जाया करते |

जब उनकी अंग्रेजी में पुस्तक The Terminology of the Vedas तो इस पुस्तक ने उनकी संस्कृत विद्या की धाक जहाँ पंडित मंडल में बिठा दी वहाँ कलकते में रहनेवाले एक नामी German Theosophist Dr Salzer M.D जो डॉक्टरी करते थे, उक्त पुस्तक को देख कर मुग्ध हो गए और पत्र में लिखा की वेदार्थ करने की जो चाबी आपने सिद्ध की है वह मात्र यथार्थ है | उन्होंने कई कौपिस इसकी मंगा कर जर्मनी में अनेक विद्वानों के पास भेजी |

उक्त महामुनि के स्वर्गवास पीछे Oxford University में एक व दो वर्ष उक्त पुस्तक text book  रही |

उनकी मौत के पीछे सर्वस्व त्यागी पूज्य महात्मा दुर्गा प्रसाद जी ने वैदिक Readers बनाई जो की ऋषि दयानंद कृत भाष्य पर आधार रखती थी | हाई स्कुल में अंग्रेजी classes  में यह उत्तम Readers अनेक वर्ष प्रचार पाती रही |

फिर जब आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब यौवन में आई तो महात्मा पार्टी में यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ की महत्मा दुर्गा प्रसाद जी समान यदि सभा अंग्रेजी में वेदों के अनेक सूक्तो के अनुवाद कराकर अपने आर्य High Schools में दाखिल कर दे तो जो विष University द्वारा रचित Vedic Readers देश के  Colleges  में फैला रही है वह दूर हो सकेंगा | बहुपक्ष महात्मा दल का स्वर्गीय श्री पं गुरुदत्त जी के मत का था और जिस प्रकार उन्होंने अपनी कुटी में दो संस्कृत वर्ग खोल थे, उसी प्रकार के वर्ग खोलने के लिए Gurukula बनाने की Scheme उक्त दल के नेता महात्मा श्री मुंशी राम जी को सूझी और उन्होंने गुरुदत्त जी की स्कीम को संजीवन करने के लिए गुरुकुल कांगडी को जन्म दिया |

इसके पीछे जब एक सनातनी पंडित ने मुरादाबाद से एक पुस्तक लिख कर सत्यार्थ प्रकाश तथा उक्त निरुक्त शैली द्वारा ऋषि दयानंद व आर्य पंडितो के वेदार्थ करने का खंडन किया तो स्वर्गस्थ पूज्य श्री पं तुलसीराम जी स्वामी मेरठ निवासी ने अपना अमर ग्रन्थ भास्कर प्रकाश रच कर निरुक्त शैली से वेदार्थ करने की महिमा दर्शा दी |

आर्य सामाजिक पत्रों में वह सज्जन जो वेद में इतिहास मानना चाहते है, वह एक मंत्र पेश किया करते है, जिसमे त्रित शब्द आता है और इसको लिखकर कूप में गिरे हुए ऋषि की कथा ठोका करते है | उक्त स्थल का प्रमाण तथा युक्ति पूर्ण खंडन पं श्री तुलसीराम जी के उक्त ग्रन्थ में मिलता है | जिसका खंडन आज तक कोई भी सायण भक्त व इतिहास वादी नहीं कर सका |

अंत में वेद शब्द के अर्थ संसार भर के संस्कृत तथा Sanskrit English कोष तो Knowledge  वा विद्या के करे और वेद को परम शास्त्र संस्कृत साहित्य लिखे | शास्त्र शब्द के अर्थ कोई भी विद्वान महाभारत आदि इतिहास ग्रन्थ के नहीं करेंगा | आप्टे कृत कोष तो Knowledge or science शास्त्र शब्द के अर्थ करे, फिर वेद को परम शास्त्र भी मानते जाओ साथ ही इतिहास ग्रन्थ कहते जाओ | यह बात भला कोई तर्क प्रिय जिज्ञासु कैसे सत्य मान सकता है ?

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