जिज्ञासा समाधान : आचार्य सोमदेव

जिज्ञासा– कुछ जिज्ञासायें मन में हैं। कृपया समाधान करने का कष्ट करेंः- 1-यम, 2-नियम, 3-आसन, 4-प्राणायाम, 5- प्रत्याद्वार, 6-धारणा, 7-ध्यान एवं 8-समाधि। यह क्रम महर्षि पतञ्जलि ने योग दर्शन में दिया है। क्या यम-नियम का पालन करने वाला व्यक्ति भी सीधे ध्यान (7) अवस्था में पहुँचकर ध्यान का अयास कर सकता है? यदि कर सकता है तो फिर यम- नियम आदि की क्या आवश्यकता है? आखिर यह ‘‘ध्यान प्रशिक्षण योजना’’ जो परोपकारी पत्रिका मार्च (प्रथम) 2015 में प्रकाशित है व पहलेाी कई बार प्रकाशित/प्रचारित हुई है, क्या है? समाधान– (क) ध्यान/उपासना के लिए यम-नियम रूप योगाङ्गों का अनुष्ठान अनिवार्य है। इसको महर्षि पतञ्जलि अपने योगदर्शन में कहते हैं। महर्षि दयानन्द नेाी इस तथ्य को अनिवार्य कहा है। महर्षि उपासना प्रकरण … Continue reading जिज्ञासा समाधान : आचार्य सोमदेव

ऋषि दयानन्द की विलक्षणता: डॉ धर्मवीर

ऋषि दयानन्द की विलक्षणता ऋषि दयानन्द के जीवन में कई विलक्षणताएँ हैं, जैसे- घर न बनाना– किसी भी मनुष्य के मन में स्थायित्व का भाव रहता है। सामान्य व्यक्ति भी चाहता है कि उसका कोई अपना स्थान हो, जिस स्थान पर जाकर वह शान्ति और निश्चिन्तता का अनुभव कर सके। एक गृहस्थ की इच्छा रहती है कि उसका अपना घर हो, जिसे वह अपना कह सके, जिस पर उसका अधिकार हो, जहाँ पहुँचकर वह सुख और विश्रान्ति का अनुभव कर सके। यदि मनुष्य साधु है तो भी उसे एक स्थायी आवास की आवश्यकता अनुभव होती है। उसका अपना कोई मठ, स्थान, मन्दिर, आश्रम हो। वह यदि किसी दूसरे के स्थान पर रहता है तो भी उसे अपने एक कमरे की, … Continue reading ऋषि दयानन्द की विलक्षणता: डॉ धर्मवीर

मनुष्यों को खाने को नहीं मिलता : प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

  यह युग ज्ञान और जनसँख्या  के विस्फोट का युग है। कोई भी समस्या हो जनसँख्या की दुहाई देकर राजनेता टालमटोल कर देते हैं। 1967 ई0 में गो-रक्षा के लिए सत्याग्रह चला। यह एक कटु सत्य है कि इस सत्याग्रह को कुछ कुर्सी-भक्तों ने अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए प्रयुक्त किया। उन दिनों हमारे कालेज के एक प्राध्यापक ने अपने एक सहकारी प्राध्यापक से कहा कि मनुष्यों को तो खाने को नहीं मिलता, पशुओं का क्या  करें? 1868 में, मैं केरल की प्रचार-यात्रा पर गया तो महाराष्ट्र व मैसूर से भी होता गया। गुंजोटी औराद में मुझे ज़ी कहा गया कि इधर गुरुकुल कांगड़ी के एक पुराने स्नातक भी यही प्रचार करते हैं। मुझे इस प्रश्न का उत्तर  देने को … Continue reading मनुष्यों को खाने को नहीं मिलता : प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

‘भारत माता के वीर आदर्श सपूत शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथी’ -मनमोहन कुमार आर्य

ओ३म् आज की युवापीढ़ी आधुनिक युग के निर्माता देशभक्तों को भूल चुकी है जिनकी दया, कृपा, त्याग व बलिदान के कारण आज हम स्वतन्त्र वातावरण में सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज की युवा पीढ़ी प्रायः धर्म, जाति व देश के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं है वा विमुख है। यह आश्चर्य है कि हमें देश-विदेश के क्रिकेट आदि खिलाडि़यों, फिल्मी अभिनेताओं, बड़े-बड़े घोटाले व भ्रष्टाचार करने वाले राजनीतिज्ञों के नाम व कार्यो के बारे में तो ज्ञान है परन्तु जिन लोगों अपने जीवन को बलिदान करके देशवासियों को गुलामी व अपमानित जीवन जीने से बचाया है, उन्हें हम भूल चुके हैं। इसे देशवासियों की उन हुतात्मा बलिदानियों … Continue reading ‘भारत माता के वीर आदर्श सपूत शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथी’ -मनमोहन कुमार आर्य

‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम का विश्व के महापुरुषों में सर्वोत्तम स्मरणीय चरित्र’ -मनमोहन कुमार आर्य

ओ३म्   यदि किसी मनुष्य को धर्म का साक्षात् स्वरुप देखना हो तो उसे वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करना चाहिये। श्री राम का चरित्र वस्तुतः आदर्श धर्मात्मा का जीवन चरित्र है। महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना करके वस्तुतः श्री रामचन्द्र जी के काल में प्रचलित धर्म व संस्कृति को ही प्रचारित व प्रसारित किया है। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में वैदिक धर्म व संस्कृति के उन्नयनार्थ बालक-बालिकाओं वा विद्यार्थियों के लिए जो पाठविधि दी है उसमें उन्होंने वाल्मीकि रामायण को भी सम्मिलित किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण और महाभारत के उद्योगपर्वान्तर्गत विदुरनीति आदि अच्छे–अच्छे प्रकरण जिनसे दुष्ट व्यसन दूर हों और उत्तमा सभ्यता प्राप्त हो को काव्यरीति से अर्थात् पदच्छेद, पदार्थोक्ति, अन्वय, विशेष्य … Continue reading ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम का विश्व के महापुरुषों में सर्वोत्तम स्मरणीय चरित्र’ -मनमोहन कुमार आर्य

गाय को माता क्यों मानते हो? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

गाय को माता क्यों मानते हो?   देश विभाजन से पूर्व अमृतसर में एक शास्त्रार्थ हुआ। आर्यसमाज की ओर से श्री ज्ञानी पिण्डीदासजी ने वैदिक पक्ष रखा। इस्लाम की ओर से जो मौलवी बोल रहे थे उन्होंने यह कहा कि गाय को आप माता क्यों  मानते हैं? भैंस-बकरी को क्यों नहीं मानते?   वैसे तो वेद पशुहिंसा का विरोधी है। गाय क्या  भैंस, बकरी, घोड़ा आदि सब पशु हमारे ह्रश्वयार व संरक्षण के पात्र हैं, परन्तु गाय की महत्ता  का जो उत्तर  ज्ञानीजी ने वहाँ दिया वह सबको सदैव स्मरण रखना चाहिए। गाय का दूध अत्यन्त उपयोगी है यह तो सब जानते हैं, परन्तु पशुओं में केवल गाय ही एकमात्र पशु है जो मानवीय माता की भाँति नौ मास तक … Continue reading गाय को माता क्यों मानते हो? प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

‘आर्य जाति नहीं गुण सूचक शब्द है।’ -मनमोहन कुमार आर्य

ओ३म् सृष्टि के आदि काल व उसके बाद के समय में आर्य, दास तथा दस्यु आदि कोई मुनष्यों की जातियां नहीं थीं, और न ही इनके बीच हुए किसी युद्ध व युद्धों का वर्णन वेदों में है। वेद में आर्य आदि शब्द  गुणवाचक हैं, जातिवाचक नहीं। जाति तो संसार के सभी मनुष्यों की एक है और इस मनुष्य जाति की स्त्री व पुरूष दो उपजातियां कह सकते हैं। जो पाश्चात्य लेखक ऋग्वेद में आदिवासियों को चपटी नाक और काली त्वचा वाले बताते हैं, वह असत्य, निराधार व अप्रमाणिक है। वह यह भी कहते हैं कि आर्य लोग आदिवासियों की बस्तियों (पुरों) का विध्वंस करते थे, और कभी-कभी आर्यों का आर्यों के साथ भी युद्ध हो जाया करता था। उनकी ये … Continue reading ‘आर्य जाति नहीं गुण सूचक शब्द है।’ -मनमोहन कुमार आर्य

लाला जीवनदासजी का हृदय-परिवर्तन: प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

  आर्यसमाज के इतिहास से सुपरिचित सज्जन लाला जीवनदास जी के नाम नामी से परिचित ही हैं। जब ऋषि ने विषपान से देह त्याग किया तो जो आर्यपुरुष उनकी अन्तिम वेला में उनकी सेवा के लिए अजमेर पहुँचे थे, उनमें लाला जीवनदासजी भी एक थे। आपने भी ऋषि जी की अरथी को कन्धा दिया था। आप पंजाब के एक प्रमुख ब्राह्मसमाजी थे। ऋषिजी को पंजाब में आमन्त्रित करनेवालों में से आप भी एक थे। लाहौर में ऋषि के सत्संग से ऐसे प्रभावित हुए कि आजीवन वैदिक धर्म-प्रचार के लिए यत्नशील रहे। ऋषि के विचारों की आप पर ऐसी छाप लगी कि आपने बरादरी के विरोध तथा बहिष्कार आदि की किञ्चित् भी चिन्ता न की। जब लाहौर में ब्राह्मसमाजी भी ऋषि … Continue reading लाला जीवनदासजी का हृदय-परिवर्तन: प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्यों पर स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी का प्रेरणादायक उपदेश’ -मनमोहन कुमार आर्य,

  सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक सभी वैदिक सनातनधर्मी स्वयं आर्य कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे। तब तक हिन्दुओं शब्द का अस्तित्व भी संसार में नहीं था। मुस्लिम  आक्रमणकारियों के भारत आने पर यह शब्द प्रचलित हुआ। समय के साथ वेदों से दूर जाते और पतन की ओर बढ़ रहे आर्य कहलाने वाले बन्धुओं ने इस गौरवपूर्ण शब्द को भुलाकर हिन्दु शब्द को अंगीकार कर लिया। हिन्दुओं में प्राचीन वैदिक काल में गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित वर्णव्यवस्था कुछ परिवर्तनों के साथ वर्तमान समय में भी विद्यमान है जो अब गुण-कर्म-स्वभाव पर आधारित न होकर यह प्रथा जन्मना हो गई है। इसके कारण हिन्दू समाज का सार्वत्रिक पतन हुआ है। आर्यसमाज के एक शीर्षस्थ विद्वान … Continue reading महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्यों पर स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी का प्रेरणादायक उपदेश’ -मनमोहन कुमार आर्य,

वैदिक पशुबन्ध इष्टि (यज्ञ) का वैज्ञानिक विवेचन (एक संक्षिप्त नोट) – डॉ. पुष्पा गुप्ता

  श्री आर.बी.एल. गुप्ता बैंक में अधिकारी रहे हैं। आपकी धर्मपत्नी डॉ. पुष्पा गुप्ता अजमेर के राजकीय महाविद्यालय संस्कृत विभाग की अध्यक्ष रहीं हैं। उन्हीं की प्रेरणा और सहयोग से आपकी वैदिक साहित्य में रुचि हुई, आपने पूरा समय और परिश्रम वैदिक साहित्य के अध्ययन में लगा दिया, परिणामस्वरूप आज वैदिक साहित्य के सबन्ध में आप अधिकारपूर्वक अपने विचार रखते हैं। आपकी इच्छा रहती है कि वैज्ञानिकों और विज्ञान में रुचि रखने वालों से इस विषय में वार्तालाप हो। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस वर्ष वेदगोष्ठी में एक सत्र वेद और विज्ञान के सबन्ध में रखा है। इस सत्र में विज्ञान में रुचि रखने वालों के साथ गुप्त जी अपने विचारों को बाँटेंगे। आशा है परोपकारी के पाठकों … Continue reading वैदिक पशुबन्ध इष्टि (यज्ञ) का वैज्ञानिक विवेचन (एक संक्षिप्त नोट) – डॉ. पुष्पा गुप्ता

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)