मुझे चारपाई पर ले-चलिए

मुझे चारपाई पर ले-चलिए

ऋषिवर के पुराने सुशिष्यों ने वैदिक धर्म के प्रचार व देश धर्म की रक्षा के लिए जो तप-त्याग किया है-वह ईसा व बुद्ध महात्मा के शिष्यों की साधना से कम नहीं है। पण्डित विष्णुदज़जी एडवोकेट पंजाब के एक प्रमुख नेता व कुशल लेखक थे। उन्होंने लिखा है कि कहीं एक बहुत बड़ा ताल्लुकेदार अपनी बरादरी सहित विधर्मी बनने लगा। आर्यों को इसकी सूचना दी गई। पौराणिक हिन्दू आर्यों के पास यह संकट लेकर आये। आर्यभाई भागे-भागे अपने एक पूज्य विद्वान्

शास्त्रार्थी के पास पहुँचे और सब वृज़ान्त सुनाया। वृज़ान्त तो सुना दिया, परन्तु उस विद्वान् के पास जाना निष्फल दीख रहा था। कारण? वह बहुत रुग्णावस्था में चारपाई पर पड़े थे। उस आर्यविद्वान् ने कहा-‘‘मुझे चारपाई पर ही किसी प्रकार से वहाँ पहुँचा दो। अपनी तड़प से सबको तड़पा देनेवाले आर्यवीर अपने महान् सेनानी की चारपाई उस स्थान पर उठाकर ले-गये।

विधर्मियों को निमन्त्रण दिया गया कि आकर सत्य-असत्य का निर्णय कर लें। वे आ गये। चारपाई पर लेटे-लेटे उस आर्य महारथी ने शास्त्रार्थ किया। इसका परिणाम वही हुआ जिसकी आशा थी।

एक भी व्यक्ति धर्मच्युत न हुआ। आर्यपुरुषो! ज़्या आप जानते हैं कि यह चारपाई पर लेटे-लेटे

शास्त्रार्थ करनेवाला सेनानी कौन था? यह था धर्म-धुन का हिमालय वीतराग-स्वामी दर्शनानन्द।

यह घटना उज़रप्रदेश की ही लगती है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल में तो ताल्लुकेदार शज़्द प्रचलित ही नहीं है। न जाने स्वामीजी के जीवन में ऐसी कितनी घटनाएँ घटीं। उन्होंने पग-पग

पर अपनी श्रद्धा के अद्भुत चमत्कार दिखलाये।

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