(1) मेरी शंका है कि जब जीवात्मा श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना अथवा योग बल से मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर के साथ आनन्द भोगता है। फिर अवधि पूर्ण होने पर वापिस संसार में आकर एक सामान्य परिवार में जन्म लेता है, जबकि उसने तो श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना की है। उसे तो श्रेष्ठ तथा धार्मिक उच्च कुल में जन्म मिलना चाहिए। कृपया मेरी शंका दूर कीजिए।

(1) मेरी शंका है कि जब जीवात्मा श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना अथवा योग बल से मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर के साथ आनन्द भोगता है। फिर अवधि पूर्ण होने पर वापिस संसार में आकर एक सामान्य परिवार में जन्म लेता है, जबकि उसने तो श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना की है। उसे तो श्रेष्ठ तथा धार्मिक उच्च कुल में जन्म मिलना चाहिए। कृपया मेरी शंका दूर कीजिए।

– सुमित्रा आर्या, 261/8, आदर्शनगर, सोनीपत, हरियाणा

समाधान- (1) मुक्ति निष्काम कर्म करते हुए विशुद्ध ज्ञान से होती है। जब जीवात्मा संसार से विरक्त होकर निष्काम कर्म करते ज्ञान, अर्थात् ईश्वर, जीव, प्रकृति के यथार्थ स्वरूप को पृथक्-पृथक् समझ लेता है और अपने विवेक से अन्दर के क्लेशों को दग्ध कर शुद्ध हो जाता है, तब मुक्ति होती है। इस मुक्ति की एक निश्चित अवधि ऋषि ने कही है, जो 36 हजार बार सृष्टि प्रलय होवे, तब तक मोक्ष अवस्था का समय है। इस मुक्त अवस्था में जीवात्मा सर्वथा अविद्या से निर्लिप्त रहता है, अर्थात् विवेकी-ज्ञानी बना रहता है। जब मुक्ति की अवधि पूरी हो जाती है, तब जीव को परमेश्वर संसार में जन्म देता है। जन्म, अर्थात् शरीर धारण कराता है। इस शरीर के मिलने पर आत्मा मुक्ति की अवस्था जैसा ज्ञानी नहीं रहता। उसे जन्म भी सामान्य मनुष्य का मिलता है, अर्थात् सामान्य परिवार, सामान्य शरीर, सामान्य बुद्धि, सामान्य इन्द्रियाँ आदि। इसमें आपका कहना है कि आत्मा ने तो श्रेष्ठज्ञान, कर्म, उपासना की थी, उस ज्ञान, कर्म, उपासना के बल से अब सामान्य मनुष्य न बनाकर परमेश्वर श्रेष्ठ मनुष्य क्यों नहीं बनाता? इसमें सिद्धान्त यह है कि जीवात्मा ने जिन श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना आदि को किया था, उनका श्रेष्ठ फल मुक्ति के रूप में भोग चुका है। मुक्ति की अवधि पूरी होने के बाद उसके पास अब श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना नहीं रहे, अब वह अपनी सामान्य स्थिति में आ गया है, इसलिए उसको सामान्य मनुष्य का जन्म मिलता है।

इसको लौकिक उदाहरण से भी समझ सकते हैं, जैसे संसार में हमें कोई वस्तु शुल्क देकर प्राप्त है, शुल्क न होने पर वस्तु भी प्राप्त नहीं होती। किसी के पास एक हजार रुपये हैं, उन्हें खर्च करने पर उसको एक हजार की वस्तु मिल जाती है, अर्थात् उसने एक हजार का फल प्राप्त कर लिया। यह खर्च होने पर उसको फिर से एक हजार का फल नहीं मिलेगा। उसके लिए फिर एक-एक हजार रु. कमाने पड़ेंगे। ऐसे मुक्ति श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना का फल है, उस फल को भोगने के बाद वह फिर से श्रेष्ठ को प्राप्त नहीं कर सकता। उसको प्राप्त करने के लिए पुनःश्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना को करना होगा।

इसलिए आपने जो पूछा कि उसको श्रेष्ठ जन्म क्यों नहीं मिलता, उसका कारण हमने यहाँ रख दिया है, इतने में ही समझ लें।

2 thoughts on “(1) मेरी शंका है कि जब जीवात्मा श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना अथवा योग बल से मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर के साथ आनन्द भोगता है। फिर अवधि पूर्ण होने पर वापिस संसार में आकर एक सामान्य परिवार में जन्म लेता है, जबकि उसने तो श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना की है। उसे तो श्रेष्ठ तथा धार्मिक उच्च कुल में जन्म मिलना चाहिए। कृपया मेरी शंका दूर कीजिए।”

  1. मान्यवर! आप ने कहा – मेरी शंका है कि जब जीवात्मा श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना अथवा योग बल से मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर के साथ आनन्द भोगता है। फिर अवधि पूर्ण होने पर वापिस संसार में आकर एक सामान्य परिवार में जन्म लेता है……………………………………….
    मान्यवर जो श्रेष्ठ कर्म के द्वारा मोक्ष प्राप्त करता है वह फिर इस संसार में दुबारा वापिस नहीं आता मोक्ष का मतलब है सबकुछ पा लेना जहां से आये है फिर वही पहुंच जाना उस लोक को गो-लोक कहते है जो ब्रह्माण्ड के सबसे ऊपर बिना आधार के है उसके निचे जितने भी लोक है उस सबका आधार वह गो-लोक ही है इसके अलावा स्वर्ग से लेकर तपलोक तक जाने वाले फिर अपने कर्म के अनुसार उनका पुनः आगमन होता है आपको लोको के बारे अधिक जानकारी ना होने के कारण यह आपके मनका शंका मात्र है मोक्ष का एकमात्र अर्थ है बारम्बार जीवन-मृत्यु के चक्र से सदा के लिए बंधन मुक्त हो जाना

    1. श्रवन झा जी चलिए आपको पहले पुराण के हिसाब से ही मोक्ष कि प्राप्ति कि जानकारी देने कि कोशिश करता हु क्यूंकि आपने गो लोक कि बात है वह गो लोक जहाँ तक मुझे याद आ रहा है उस हिसाब से श्रीमद देवी भागवत पुराण में आई है | पुरानो के हिसाब से मोक्ष प्रकार कि होती है | चलिए उस हिसाब से भी आपको चर्चा करता हु | १) मोक्ष कि प्राप्ति में उसे स्वर्ग कि प्राप्ति होती है मतलब जिसे आप गो लोक या जो बोलो और उस जगह आप कृष्ण कि सेवा करते हैं क्यूंकि गो लोक देवी भागवत और महाभारत के आधार पर कृष्ण को बोला गया है उनका निवास स्थान को | वहा उसे रहना परता है और हमेशा वही कृष्ण कि सेवा कि जाती है | वह वापस नहीं आता है | २) दूसरा मोक्ष पुराण के हिसाब से वो होता है जिसमे वह आत्मा उसी जगह गो लोक में तब तक रहता है जब तक उसका पुण्य ख़तम नहीं होता तब तक उसी जगह पर रहता है पुण्य ख़तम होने पर वह पृथ्वी पर भेज दिया जाता है | ३) तीसरा मोक्ष वह कहलाता है जिसमे वह कृष्ण में समाहित हो जाता है | ये पुराण के हिसाब से मैंने आपको मोक्ष कि जानकारी दी | यह गीता के आधार पर भी आपको जानकारी दी है | चलिए अब आपसे ही सवाल करता हु पुराण के हिसाब से जब कृष्ण गो लोक में हैं तो आपके हिसाब से उन्हें मोक्ष मिल गयी है तो फिर वे क्यों पृथ्वी पर आते हैं और अवतार लेते हैं ? इस हिसाब से जब कृष्ण को ही बार बार पृथ्वी पर आना परता है तो कृष्ण तक को मोक्ष कि प्राप्ति नहीं हुयी | फिर आत्मा को मोक्ष कि प्राप्ति कैसे होगी जो गो लोक में रहते है ? थोडा हमें बतलाने कि कोशिश किजियेअगा आपके पास जो जानकार हैं उनसे पूछकर हमें जानकारी देने कि कोशिश जरुर कीजियेगा जी | आप चाहो तो मैथिलि में सवाल कर सकते हो जी जिसका जवाब देने का कोशिश करूँगा | फिर वेद में जिस हिसाब से वर्णन कि गयी है मोक्ष कि उस हिसाब से हमारे आचार्य जी ने जवाब दिया है | थोडा आप हमारी शंका का सामाधान करना जी कि कृष्ण तक को पृथ्वी पर बार बार आना होता है तो आत्मा को क्यों नहीं आना होगा | आपके जवाब कि प्रतीक्षा में | धन्यवाद

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