मिर्जाई मत की असलियत इस्लामी विद्वानों की दृष्टि में-

मिर्जाई मत की असलियत इस्लामी विद्वानों की दृष्टि में

– सत्येन्द्र सिंह आर्य

इण्टनेट पर कुछ कादियानी मतावलमबियों ने पुरानी घिसी-पिटी बातों को दोहराना आरमभ किया है। उनका उद्देश्य हिन्दुओं को भ्रमित करना एवं अपमानित करना होता है। आर्य विद्वान् इनकी सब आपत्तियों का उत्तर पहले ही दे चुके हैं।

भारत का विभाजन कराने में मिर्जाई समप्रदाय बहुत सक्रिय रहा। मिर्जा गुलाम अहमद अंग्रेज सरकार का चापलूस और प्रशंसक था। इन लोगों ने पाकिस्तान बनवाने के लिए कई पुस्तकें लिखीं। ‘‘खालसा होशियार बाश’’ ऐसी ही पुस्तक है। पाकिस्तान बनने पर ये मिर्जाई वहाँ गाजर मूली की तरह काटे गए। वर्तमान में इनको वहाँ की इस्लामिक सरकार एवं व्यवस्था ने काफिर घोषित किया हुआ है। देखो कैसी विचित्र बात है कि पाकिस्तान जितने बड़े इस्लामिक देश ने इन्हें गैर-इस्लामी (काफिर) घोषित किया हुआ है और ये ऐसे निर्लज्ज हैं कि अभी भी इस्लाम का ही दमभ भर रहे हैं। है न बात कि ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’।

इनके विषय में हम अपनी ओर से कुछ न कहकर मुस्लिम विद्वानों के  मिर्जाई मत के विषय में क्या विचार हैं, वही प्रस्तुत कर रहे हैं।

विश्व प्रसिद्ध लेखक व इस्लाम के मर्मज्ञ विद्वान् जनाब अनवर शेख की एक लोकप्रिय एवं पठनीय पुस्तक के अंश इस प्रकार हैं-

‘‘हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए कृष्ण महाराज होने का (मिर्जा ने) दावा किया। जबकि यह कतई कुफ्र है क्योंकि यह बुत परस्ती का अटूट अंग है।’’

– कादियानियत न केवल इस्लामी जगत् के लिए प्रत्युत सारे संसार के लिए एक फित्ना (शरारत) बनकर खड़ी हो जायेगी।

– इन मिर्जाईयों ने जो कुछ भी किया उसका अजाब (दारुण दुःख) मुसलमानों पर नाजिल हुआ।

– मिर्जा स्वयं को मसीह मौऊद (promised christ) घोषित करता रहा। अनवर शेख जी का कथन है, ‘‘कादियानियत इसी शर का एक फित्ना अंगेज शोला है’’ अर्थात् यह विश्वास शरारतपूर्ण है और विनाश की लपटों का दूसरा नाम है। ‘नजरीया मसीह मौऊद’।

– कादियानियों की प्रचार की विधि तावीलबाजी (व्याखयायें घड़ते जाना)है, जिससे अभिप्राय भेड़ को भेड़िया व भेड़िये को भेड़ कहना है। अंधकार को उजाला व उजाले को अंधेरे के रंग में प्रस्तुत करना है।

– यह रुहानी अफीम (आध्यात्मिक अफीम) मिर्जाइयत के रूप में प्रकट हुई जिसके व्यापारी मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी थे।

– मिर्जा की मसीहियत इस्लाम के पुर्नोत्थान के लिए नहीं, अंग्रेज भक्ति के द्वारा अंह पूजा थी।

एक और प्रतिष्ठित इस्लामी लेखक ने मिर्जा गुलाम अहमद के विषय में अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी थी जो इस्लामिक लिटरेचर पबलिशिंग हाऊस, कश्मीरी बाजार लाहौर से वर्ष 1935 में प्रकाशित हुई थी। उसकी प्रति इस समय परोपकारिणी सभी की समपत्ति है। उस पुस्तक का प्राक्कथन (foreword) भी एक अन्य प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान् ने लिखा है। मिर्जाई मत एवं उसके प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद के विषय में उनका अभिमत इस प्रकार है-

इस्लाम का इतिहास ऐसे नकली पैगमबरों से भरा पड़ा है जिनका अनिवार्यतः ही दुःखद अन्त हुआ। हमारे अपने समय में भी कादियाँ का मिर्जा गुलाम अहमद नाम का ऐसा महा पाखण्डी हुआ है।

उसके समबन्ध में सही बात कहनी हो तो कहना होगा कि कादियाँ का यह नकली पैगमबर बहाई (bahaism) तथा बाब (babism) जैसे नास्तिक मतों के तुलनात्मक अध्ययन का उत्साही विद्यार्थी था। अपने इच्छित लक्ष्य जो इस्लाम के धार्मिक प्रमुख का पद हासिल करने से तनिक भी कम नहीं था, को प्राप्त करने के लिए उसने चालाकी से काम किया और उसने वह प्रारमभिक गलती नहीं दोहरायी जो बहाउल्ला और बाब ने इस्लाम से अलग होकर एक नयी स्वतन्त्र आसमानी व्यवस्था (मत) स्थापित करने के रूप में की थी।

भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसाने और श्रद्धालु लोगों को ठगने के लिए वह बलपूर्वक कहता था कि वह अरबी पैगमबर का ही निष्ठावान् अनुयायी है, जिसका ताज (पद) अब उसके ऊपर एक जीवित अवतार के रूप में आ पड़ा है और उसकी नियति इस्लाम को उसका पुराना गौरव प्राप्त कराना है। उसने घोषणा की कि आज का इस्लाम अपने उच्च आदर्शों से गिर गया है। ऐसे में उसका उद्देश्य उसकी मौलिक पवित्रता को पुनः प्राप्त कराना है और सभी काफिरों को इस्लाम के बाड़े में लाना है। किसी भी मुस्लिम देश में उस (मिर्जा) की इन दुष्ट गतिविधियों को दबा दिया जाता। पर वे भारत में चलती रही।

मिर्जा गुलाम अहमद के दावों से कट्टर इस्लाम-अनुयायी घबरा गए। उसने जो घोषणाएँ कीं, वे इस प्रकार हैं-

  1. मैंने स्वप्न में देखा कि मैं सर्वशक्तिमान् ईश्वर बन गया हूँ और मैंने ऐसा होने का विश्वास कर लिया। इस सर्वातिरिक्त (विशेष) स्थिति में मैंने स्वर्ग और धरती को बनाया। मैंने मिट्टी से आदम बनाया और उसे सुन्दर आकार दिया। इस प्रकार मैं विश्व का सृष्टा बन गया।
  2. मैंने ईश्वर को यह कहते हुए सुना ‘‘ओ मिर्जा! तू मुझमें से है और मैं तुझमें से हूँ। तू मेरे लिए पुत्र के समान है।’’
  3. सर्व शक्तिमान् ईश्वर ने मुझे अंग्रेजी में समबोधित किया और आसमान से यह घोषणा की-

‘‘मैं तेरी सहायता करुंगा। मैं जो चाहूँगा, वह करुँगा। यद्यपि सब लोग नाराज होंगे, परन्तु अल्लाह तुमहारे साथ है। वह तुमहारी सहायता करेगा। अल्लाह के शबद बदल नहीं सकते।’’

  1. मैं अल्लाह का पैगमबर हूँ। जो मुझपर विश्वास नहीं करता, वह काफिर हैं।
  2. जो मेरी घोषणाओं को नहीं मानते, वे दुष्ट हैं।
  3. मैं जीजस क्राइस्ट से अच्छा हु, वह तो शराबी था, मलिन था, झूँठ बोलने वाला था और दुष्ट कामी लोगों का पक्षपाती था।
  4. मैं आदम, नूह, हुसैन, अबू-बकर और अन्य सभी सन्तों से ऊँचे नैतिक और आध्यात्मिक धरातल पर हूँ।
  5. जो अपने को मुसलमान कहते हें, मेरे लोग उनके साथ कोई समबन्ध न रखें। जो इमाम मुझमें (मिर्जा गुलाम अहमद में) विश्वास नहीं रखता उसके द्वारा कराये जा रहे किसी धार्मिक क्रिया कलाप (नमाज) आदि में भाग न लें। जो मेरे अनुयायी नहीं है, मेरे अनुयायी अपनी बेटी का विवाह उनके साथ न करें।

ये ऐसी कुछ विचित्र-सी शिक्षाएँ मिर्जा गुलाम अहमद की हैं। अतः यह कोई विस्मय की बात नहीं है कि इस्लाम के अग्रणी विद्वानों ने उसे सर्वसमति से इस्लाम से निष्कासित कर दिया है।

पिछले लगभग 50 वर्षों में कादियानी मत के सबन्ध में ऐसे बहुत से साहित्य का सृजन हुआ है जिसने मुहमद हजरत  के बताये गये इस्लाम के लिए मिर्जा गुलाम अहमद के मत को भयंकर पाखण्ड और खतरा बताया है।

उपरिलिखित आठ बिन्दुओं का मूल अंग्रेजी पाठ इस प्रकार है।

Mirza Ghulam Ahmad’s claim which horrified orthodox islam may, in his language, be thus summarized

  1. I saw in a vision that I had become god almighty and I believed that I was so infact . while in this transcendental state I created heaven and earth . I then created adam out of dust and moulded him in the best of forms. Thus I became the creater of the world.
  2. I heard the voice of god saying : o Mirza! I am from thee and thou art from me; thou art unto me like as a son.
  3. god almighty addressed me in the English language and declared from on high :

“ I shall help you. I can what I will do . though all men should be angry but god is with you . he shall help you : words of god cannot be change.”

  1. I am a prophet of god and he who does not believe in me is kafir.
  2. those who refused to attest the truth of my mission and bastards.
  3. I am better then jesus Christ who was a wine-biber, a foul-mouthed liar and had a predilection for the society of harlots.
  4. I am on a higher moral and spiritual plane then adam, noah, Husain, abu bakar, and all the saints put together.
  5. my people should have no part and lot with those who call themselves musalmans. They must not join any congregational prayers led by an imam who does not belive in me: they must not wed their daughters to the so called musalmans  who are not my disciples.

These are some peculiar teachings of mirza ghulam  ahmad and it is not surprising that the leading ulema of the Islamic world unanimiously pronounced his excommunication from the fold of islam. A mass of literature has sprung up during the last fifty years of dealing with qadiani-ism as the most dangerous heresy which has threatened islam as it was taught by the prophet.

प्रतिष्ठित मुस्लिम विद्वानों ने जिस मिर्जा गुलाम अहमद के विषय में ऐसी तल्ख टिपणियाँ की हों, उसके अनुयायी किसी मुँह से अपनी शेखी बघारते हैं?

 

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