एतत्तु न परे चक्रुर्नापरे जातु साधवः । यदन्यस्य प्रतिज्ञाय पुनरन्यस्य दीयते ।

जहां किसी मुकद्दमे में ठीक निर्णय दिया जा चुका हो और किसी दण्ड का आदेश भी दिया जा चुका हो धर्मपूर्वक किये उस निर्णय को पूरा हुआ जानना चाहिए उस मुकद्दमे का पुनः निर्णय न करे । (यह लोभ या ममत्व आदि के कारण अथवा अकारण निर्णय न करने का कथन है, कारण विशेष होने पर तो पुनः निर्णय का कथन किया गया है ।

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