देवदत्तां पतिर्भार्यां विन्दते नेच्छयात्मनः । तां साध्वीं बिभृयान्नित्यं देवानां प्रियं आचरन् ।

यह ’जूआ’ अब से पहले समय में भी महान् कष्ट एवं शत्रुता पैदा करने वाला देखा गया है इसलिये बुद्धिमान् मनुष्य हंसी-मजाक में भी जूआ न खेले ।

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