कलिः प्रसुप्तो भवति स जाग्रद्द्वापरं युगम् । कर्मस्वभ्युद्यतस्त्रेता विचरंस्तु कृतं युगम् ।

जब राजा सोता है अर्थात् राज्यकार्य मे उपेक्षा बरतता है तो वह ’कलियुग’ होता है, जब वह जागता है अर्थात् राज्यकार्य को साधारणतः करता रहता है तो वह ’द्वापरयुग’ है, और राज्य और प्रजा हितकारी कार्यो में जब राजा सदा उद्यत रहता है वह ’त्रेतायुग’ है, जब राजा सभी कार्यो को तत्परतापूर्वक करते हुए अपनी प्रजा के दुःखों को जानने के लिए राज्य में विचरण करता है वह ’सतयुग’ है ।

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