एवमादीन्विजानीयात्प्रकाशांल्लोककण्टकान् । निगूढचारिणश्चान्याननार्यानार्यलिङ्गिनः ।

रिश्वतखोर, भय दिखाकर धन लेने वाले ठग, ’जूआ’ से धन लेने वाले, ’तुम्हें पुत्र या धन प्राप्ति होगी’ इत्यादि मांगलिक बातों को कहकर धन लेने वाले, साधु-सन्यासी आदि भद्ररूप धारण करके धन लेने वाले, हाथ आदि देखकर भविष्य बताकर धन लेने वाले, धन, वस्तु आदि लेकर तरीकों से काम करने वाले उच्च राजकर्मचारी (मन्त्री आदि), अनुचित मात्रा में धन लेने वाले या अयोग्य चिकित्सक अनुचित मात्रा में धन लेने वाले शिल्पी, धन ठगने में चतुर वेश्याएं इत्यादियों को और दूसरे जो श्रेष्ठों का देश या चिह्न धारण करके गुप्तरूप से विचरण करने वाले दुष्ट या बुरे व्यक्ति है, उनको प्रकट लोककण्टक = प्रजाओं  को पीडित करने वाले चोर समझे ।

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