अशासंस्तस्करान्यस्तु बलिं गृह्णाति पार्थिवः । तस्य प्रक्षुभ्यते राष्ट्रं स्वर्गाच्च परिहीयते ।

जो राजा चोर आदि को नियन्त्रित-दण्डित न करता हुआ प्रजाओं से कर आदि ग्रहण करता है उसके राष्ट्र में निवास करने वाली प्रजाएं क्षुब्द होकर विद्रोह कर देती है और वह राज्यसुख से क्षीण हो जाता है ।

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