यावानवध्यस्य वधे तावान्वध्यस्य मोक्षणे । अधर्मो नृपतेर्दृष्टो धर्मस्तु विनियच्छतः ।

.    अदण्डनीय को दण्ड देने पर राजा को जितना अधर्म होना शास्त्र में माना गया है उतना ही दण्डनीय को छोड़ने में अधर्म होता है न्यायानुसार दण्ड देना ही धर्म है ।

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