यादृग्गुणेन भर्त्रा स्त्री संयुज्येत यथाविधि । तादृग्गुणा सा भवति समुद्रेणेव निम्नगा

(क्षेत्रिणां तथा बोजिनाम्) खेतवालों और बीजवालों में (फलं तु अनभिसंघाय) फल के लेने के विषय में बिना निश्चय हुए कि इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला अन्न, सन्तान आदि फल किसका होगा बीज-वपन करने पर (प्रत्यक्ष क्षेत्रेणाम + अर्थः) वह स्पष्टरूप से क्षेत्रस्वामी का फल या उपलब्धि होती है, क्योंकि (बीजात् योनिः गरीयसी) ऐसी स्थिति में बीज से योनि बलवती होती है ।

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