अदेश्यं यश्च दिशति निर्दिश्यापह्नुते च यः । यश्चाधरोत्तरानर्थान्विगीतान्नावबुध्यते ।

जो ऋणदाता १. झूठे गवाह और गलत प्रमाण प्रत्र प्रस्तुत करे, और २. जो किसी बात को प्रस्तुत करके या कहकर उससे मुकरता है या टालमटोल करता है, ३. जो कही हुई अगली – पिछली बातों को नहीं ध्यान में रखता अर्थात् जिसकी अगली – पिछली बातों में मेल न हो, ४. जो अपने तर्कों को प्रस्तुत करके फिर उनको बदल दे – उनमें फिर जाये, ५. जो पहले अच्छी प्रकार प्रतिज्ञा पूर्वक कही हुई बात को न्यायधीश द्वारा पुनः पूछने पर नहीं मानता, ६. जो एकान्त स्थान में जाकर साक्षियों के साथ घुल मिलकर चुप – चुप बात करे, ७. जांच के लिए पूछे गये प्रश्नों को जो पंसद न करे, ८. और जो इधर – उधर टलता फिरे तथा ९. ‘कहो’ ऐसा कहने पर कुछ न कहे, १०. और जो कही हुई बात को प्रमाणित न कर पाये, ११. पूर्वापर बात को न समझे अर्थात् विचलित हो जाये, वह उस प्रार्थना किये गये धन से हार जाता है अर्थात् न्यायाधीश ऐसे व्यक्ति को हारा हुआ मानकर उसे धन न दिलावे ।

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