न माता न पिता न स्त्री न पुत्रस्त्यागं अर्हति । त्यजन्नपतितानेतान्राज्ञा दण्ड्यः शतानि षट्

न माता, न पिता, न स्त्री और न पुत्र त्यागने योग्य होते हैं अपतित अर्थात् निर्दोष होते हुए जो इनको छोड़े तो राजा के द्वारा उस पर छह सौ पण दंड किया जाना चाहिए ।

अनुशीलन – ३८८ और ३८९ श्लोक विषयविरोध के अन्तर्गत आते हुए भी प्रक्षिप्त प्रतीत नहीं होते । इन्हें स्थानभ्रष्ट समझना चाहिए, क्यों कि १. इनका मनु की किसी मान्यता से विरोध नहीं है और न ये किसी अन्य आधार पर प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं, २. इस अध्याय में इनमें सम्बन्धित प्रसंग भी है । प्रतीत होता है कि ये श्लोक चौथे विवाद ‘मिलकर उन्नति या व्यापार करना’ विषय से खण्डित होकर स्थानभ्रष्ट हुए हैं ।

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