ऋत्विजं यस्त्यजेद्याज्यो याज्यं च र्त्विक्त्यजेद्यदि । शक्तं कर्मण्यदुष्टं च तयोर्दण्डः शतं शतम् ।

जो यजमान काम करने में समर्थ और श्रेष्ठ पुरोहित को छोड़ दे और ऐसे ही यजमान को पुरोहित को छोड़ दे तो उन दोनों को सौ सौ पण दंड करना चाहिए ।

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