जिस राजा के राज्य में न चोर न परस्त्रीगामी न दुष्टवचन का बोलने हारा न साहसिक डाकू और न दण्डघ्न अर्थात् राजा की आज्ञा का भंग करने वाला है वह राजा अतीव श्रेष्ठ है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
अनुशीलन – महर्षि ने यहां ‘शक्रलोकमाक्’ पद का अभिप्रायायं ग्रहणं किया है । जिन टीकाकारों ने ‘शक्रलोक भाक्’ का ‘इन्द्रलोक में जाने वाला’ या ‘स्वर्ग’ में जाने वाला अर्थ किया है वह उचित नहीं है । इस पद का अर्थ है कि वह राजा ‘इन्द्र’ पद का अधिकारी, अर्थात् इन्द्र के समान श्रेष्ठ और शक्तिशाली राजा माना जाता है, वह इन्द्र के समान प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली हो जाता है अगले श्लोक से इन अर्थ की पुष्टि हो जाती है ।