न मित्रता, न पुष्कल धन की प्राप्ति से भी राजा सब प्राणियों को दुःख देने वाले साहसिक मनुष्य को बंधन – छेदन किये बिना कभी छोड़े ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
न मित्रता, न पुष्कल धन की प्राप्ति से भी राजा सब प्राणियों को दुःख देने वाले साहसिक मनुष्य को बंधन – छेदन किये बिना कभी छोड़े ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)