आददीताथ षड्भागं प्रनष्टाधिगतान्नृपः । दशमं द्वादशं वापि सतां धर्मं अनुस्मरन्

नष्ट या खोये धन के प्राप्त होने पर उसमें से राजा सज्जनों के धर्म का अनुसरण करता हुआ अर्थात् न्यायपूर्वक (धन के स्वामी की अवस्था को ध्यान में रखकर) छठा, दशंवां अथवा बारहवां – भाग करके रूप में ग्रहण करे ।

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