अनपेक्षितमर्यादं नास्तिकं विप्रलुंपकम् । अरक्षितारं अत्तारं नृपं विद्यादधोगतिम् ।

शास्त्रोक्त मर्यादा के अनुसार न चलने वाले ईश्वर से अविश्वास करने वाले लोभ आदि के वशीभूत प्रजाओं की रक्षा न करने वाले, और कर आदि का धन प्रजाओं के हित में न लगाकर स्वयं खा जाने वाले राजा को नीच समझना चाहिए अथवा यह समझना चाहिए कि उसकी शीघ्र ही अवनति या पतन हो जायेगा ।

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