प्रत्यहं देशदृष्टैश्च शास्त्रदृष्टैश्च हेतुभिः । अष्टादशसु मार्गेषु निबद्धानि पृथक्पृथक्

. सभा, राजा और राजपुरूष सब लोग देशाचार और शास्त्रव्यवहार के हेतुओं से निम्नलिखित अठारह विवादास्पद मार्गों में विवादयुक्त कर्मों का निर्णय प्रतिदिन किया करें ।

और जो – जो नियम शास्त्रोक्त न पावें, और उनके होने की आवश्यकता जानें, तो उत्तमोत्तम नियम बांधे कि जिससे राजा और प्रजा की उन्नति हो ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

बांधे अर्थात् नियत किये गये………………….

अलग – अलग……………………..

स० प्र० षष्ठ समुल्लास में स्वामी जी ने पुनः श्लोक की प्रथम पंक्ति उद्धृत करके लिखा है – ‘‘जो नियम राजा और प्रजा के सुखकारक और धर्मयुक्त समझें, उन – उन नियमों को पूर्णविद्वानों की राज – सभा बांधा करे ।’’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *