प्राजकश्चेद्भवेदाप्तः प्राजको दण्डं अर्हति । युग्यस्थाः प्राजकेऽनाप्ते सर्वे दण्ड्याः शतं शतम् ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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