इस संसार में एक धर्म ही सुहृद् (मित्र) है जो मृत्यु के पश्चात् भी साथ चलता है और सब पदार्थ वा संगी शरीर के नाश के साथ ही नाश को प्राप्त होते हैं अर्थात् सब संग छूट जाता है परन्तु धर्म का संग कभी नहीं छूटता ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
इस संसार में एक धर्म ही सुहृद् (मित्र) है जो मृत्यु के पश्चात् भी साथ चलता है और सब पदार्थ वा संगी शरीर के नाश के साथ ही नाश को प्राप्त होते हैं अर्थात् सब संग छूट जाता है परन्तु धर्म का संग कभी नहीं छूटता ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)