जालान्तरगते भानौ यत्सूक्ष्मं दृश्यते रजः । प्रथमं तत्प्रमाणानां त्रसरेणुं प्रचक्षते ।

सूर्य की किरणों के मकान की खिड़कियों के अन्दर से प्रवेश करने पर उस प्रकाश में जो बहुत छोटा रजकण दिखाई पड़ता है वह प्रमाणों – मापकों से पहला प्रमाण है, और उसे ‘त्रसरेणु’ कहते हैं ।

महर्षि – दयानन्द ने इस श्लोक को ‘त्रसरेणु’ के लक्षण – प्रसंग में ‘पूना प्रवचन’ में पृष्ठ ८६ पर उद्धृत किया है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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