अलब्धं चैव लिप्सेत लब्धं रक्षेत्प्रयत्नतः । रक्षितं वर्धयेच्चैव वृद्धं पात्रेषु निक्षिपेत् ।

. राजा और राजसभा अलब्ध की प्राप्ति की इच्छा प्राप्त की प्रयत्न से रक्षा करे रक्षित को बढ़ावें और बढ़े हुए धन को वेद विद्या, धर्म का प्रचार, विद्यार्थी, वेदमार्गोपदेशक तथा असमर्थ अनाथों के पालन में लगावे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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