आहवेषु मिथोऽन्योन्यं जिघांसन्तो महीक्षितः । युध्यमानाः परं शक्त्या स्वर्गं यान्त्यपराङ्मुखाः । ।

. जो संग्रामों में एक दूसरे को हनन करने की इच्छा करते हुए राजा लोग जितना अपना सामथ्र्य हो बिना डरे, पीठ न दिखा युद्ध करते हैं वे सुख को प्राप्त होते हैं ।

इससे विमुख कभी न हो किन्तु कभी – कभी शत्रु को जीतने के लिए उनके सामने छिप जाना उचित है । क्यों कि, जिस प्रकार से शत्रु को जीत सके वैसे काम करें । जैसे सिंह क्रोधाग्नि में सामने आकर शस्त्राग्नि में शीघ्र भस्म हो जाता है, वैसे मूर्खता से नष्ट – भ्रष्ट न हो जावें ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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