तदध्यास्योद्वहेद्भार्यां सवर्णां लक्षणान्विताम् । कुले महति संभूतां हृद्यां रूपगुणान्वीताम् ।

इतना अर्थात् ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़के यहां तक राज – काम करके पश्चात् सौन्दर्यरूप गुणयुक्त हृदय को अतिप्रिय बड़े उत्तम कुल में उत्पन्न सुन्दर लक्षणयुक्त अपने क्षत्रिय कुल की कन्या जो कि अपने सदृश विद्यादि गुण – कर्म – स्वभाव में हो उस एक ही स्त्री के साथ विवाह करे । दूसरी सब स्त्रियों को अगम्य समझकर दृष्टि से भी न देखे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *