धन्वदुर्गं महीदुर्गं अब्दुर्गं वार्क्षं एव वा । नृदुर्गं गिरिदुर्गं वा समाश्रित्य वसेत्पुरम्

धन्वदुर्ग – मरूस्थल में बना किला जहां मरूभूमि के कारण जाना दुर्गम हो महीदुर्ग – पृथिवी के अन्दर तहखाने या गुफा के रूप में बना किला या मिट्टी की बड़ी – बड़ी मेढ़ों से घिरा हुआ जलदुर्ग – जिसके चारों ओर पानी हो अथवा वृक्षदुर्ग – जो घने वृक्षों के वन से घिरा हो नृदुर्ग – जो सेना से घिरा रहे, जिसके चारों ओर सेना वा निवास हो अथवा गिरिदुर्ग – पहाड़ के ऊपर बना या पहाड़ों से घिरा किला बनाकर और उसका आश्रय करके अपने निवास में रहे ।

महर्षि दयानन्द ने ‘धन्वदुर्गम्’ के स्थान पर ‘धनुदुर्गम्’ पाठ लेकर इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है –

‘‘इस लिए सुन्दर जंगल धन – धान्य युक्त देश में धनुर्धारी पुरूषों से गहन मिट्टी से किया हुआ जल से घेरा हुआ अर्थात् चारों ओर वन चारों ओर सेना रहे अर्थात् चारों ओर पहाड़ों के बीच में कोट बना के इस के मध्य में नगर बनावे ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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